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'लखनऊ में आशिक कम और मरीज ज्यादा हैं' नवाबों के शहर का वो चुनावी किस्सा, जिसकी हर चुनाव में होती है चर्चा

UP Lok Sabha Election 2024: डॉ. रवि भट्ट ने बताया कि साल 1920 में लखनऊ अपनी तवायफों और कोठों के लिए भी मशहूर था। तमाम राजा, महाराजा, नवाब और निजाम अक्सर लखनऊ के कोठों पर शाम की महफिलों में नजर आया करते थे। उन दिनों लखनऊ के चौक इलाके में एक तवायफ हुआ करती थी, जिसका नाम 'दिलरुबा' था

अपडेटेड May 17, 2024 पर 9:22 PM
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UP Lok Sabha Election 2024: नवाबों के शहर लखनऊ का वो चुनावी किस्सा, जिसके हर चुनाव में होती है चर्चा

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 20 मई को लोकसभा चुनाव के लिए मतदान होगा। ऐसे में चारों ओर चुनावी माहौल अपने चरम पर है। ऐसे में लखनऊ में चाहे लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा, यहां का एक किस्सा चुनावी माहौल में चर्चा का विषय बन ही जाता है। बड़े से बड़े नेता और मंत्री तक इसकी चर्चा करते हैं, जिसमें कहा गया था कि 'लखनऊ में आशिक कम और मरीज ज्यादा रहते हैं।' आखिर ऐसा किसने और कब कहा था? यही जानने के लिए जब देश के जाने-माने इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट से पूछा गया, तो उन्होंने विस्तार से पूरे किस्से को सुनाया।

डॉ. रवि भट्ट ने बताया कि साल 1920 में लखनऊ अपनी तवायफों और कोठों के लिए भी मशहूर था। तमाम राजा, महाराजा, नवाब और निजाम अक्सर लखनऊ के कोठों पर शाम की महफिलों में नजर आया करते थे। उन दिनों लखनऊ के चौक इलाके में एक तवायफ हुआ करती थी, जिसका नाम 'दिलरुबा' था।

साल 1920 में लखनऊ में नगर पालिका का चुनाव होना था। दिलरुवा ने ये चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया और सभी को चौंका दिया। उन्होंने बताया कि दिलरुबा जब चुनाव प्रचार के लिए निकलती थीं, तो उनके पीछे हजारों की भीड़ चलती थी, इसीलिए उनको कोई टक्कर नहीं देना चाहता था।


लोकसभा चुनाव 2024: हकीम ने यूं दी टक्कर

इतिहासकार बताते हैं कि उन दिनों लखनऊ में एक हकीम हुआ करता था, जिसाका नाम शमसुद्दीन था। वो भी लखनऊ चौक के करीब अकबरी गेट इलाके में रहता था। उस हकीम पर उनके चाहने वालों ने चुनाव लड़ने का दबाव बनाया और वो तैयार भी हो गया, लेकिन कुछ दिनों में उन्हें लगने लगा कि चुनाव जीतना मुश्किल है।

ऐसा इसलिए क्योंकि उनके पीछे गिने-चुने लोग थे, जबकि दिलरुबा के पीछे पूरा हुजूम। वो दौर चुनावी नारों का था। हकीम साहब ने लखनऊ के तमाम इलाकों में दीवारों पर ऐसा नारा लिखवाया, जो देखते-देखते सबकी जुबान पर चढ़ गया।

वो नारा था- 'है हिदायत लखनऊ के तमाम वोटर-ए-शौकीन को, दिल दीजिए दिलरुबा को, वोट शमसुद्दीन को' इस नारे से डरी दिलरुबा ने भी एक नारा दे दिया - 'है हिदायत लखनऊ के तमाम वोटर-ए-शौकीन को, वोट देना दिलरुबा को, नब्ज शमसुद्दीन को'

चुनाव में हुई मरीजों की जीत

डॉ. भट्ट ने बताया कि जब चुनाव का नतीजा आया, तो दिलरुबा जान भले ही लोगप्रिय थीं और उनके पीछे भीड़ थी, लेकिन जनता ने उनको वोट नहीं दिया था, जबकि हकीम शमसुद्दीन चुनाव जीत गए थे। उन्होंने आगे बताया कि उस वक्त जब दिलरुबा शमसुद्दीन को बधाई देने पहुंचीं, तो शमसुद्दीन ने कहा इस चुनाव से एक बात तो साफ हो गई कि 'लखनऊ में आशिक कम हैं और मरीज ज्यादा।'

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