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Lok Sabha elections 2024: कभी गढ़ माने जाने वाले बिहार में आज वामदलों का एक भी लोकसभा सांसद नहीं, जानिए इस बार क्या है संभावना

Lok Sabha elections 2024: देश की आजादी के बाद लंबे समय तक बिहार वामदलों का गढ़ रहा। यह राज्य कई दिग्गज वामपंथी नेताओं की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही। वामदलों की राज्य में कमजोर स्थिति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनका एक भी लोकसभा सांसद आज राज्य में नहीं है

अपडेटेड Apr 10, 2024 पर 11:29 AM
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1999 के बाद वामदलों को लोकसभा चुनावों में बिहार में एक भी सीट नहीं मिली है। अंतिम बार 1999 के लोकसभा चुनावों में माकपा उम्मीदवार सुबोध राय भागलपुर से जीत हासिल करने में सफल हुए थे।

Lok Sabha elections 2024: कभी बिहार के कई हिस्सों में वामदलों (Left Parties) की तूती बोलती थी। अब हालात बदल गए हैं। इस बार लोकसभा चुनावों में वामदल फिर से पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं। 2020 के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने वामदलों के लिए उम्मीद की किरण जगाई थी। वाम दलों को एक दर्जन से ज्यादा सीटें मिली थीं। इस बार उन्हें उम्मीद है कि लोकसभा चुनावों में उनका खाता जरूर खुलेगा। वामदल राजद की अगुवाई वाले महागठबंधन का हिस्सा हैं। आज भी राज्य की कुछ लोकसभा सीटों में वामदलों का अच्छा प्रभाव है। लेकिन, चुनावों में इसका फायदा उन्हें किस तरह मिलेगा? इस सवाल का जवाब मुश्किल है।

कई दिग्गज वामपंथी नेताओं की कर्मभूमि रहा बिहार

वामदलों का चुनावों में प्रदर्शन पिछले कुछ दशकों में लगातार घटा है। ऐसा न सिर्फ बिहार बल्कि दूसरे राज्यों में भी देखने को मिला है। लेकिन, वामदलों के लिए बिहार खास रहा है। इसकी वजह यह है कि यह राज्य कई बड़े वामपंथी नेताओं की जन्मभूमि और कर्मभूमि रही है। इनमें एके रॉय, चतुरानन मिश्र, भोगेंद्र झा जैसे दिग्गज राजनेता शामिल हैं। एक रॉय की धनबाद और आसपास के इलाकों में अच्छी पकड़ थी। धनबाद अब झारखंड का हिस्सा है। रॉय ने दो बार लोकसभा में धनबाद का प्रतिनिधित्व किया। पहली बार 1977 और दूसरी बार 1980 में वह इस सीट से जीते थे।


दो बड़े नेताओं की राज्य में हत्या

माकपा के बड़े नेता अजीत सरकार ने चार बार बिहार विधानसभा में पूर्णिया का प्रतिनिधित्व किया था। करीब दो दशक तक पूर्णिया का प्रतिनिधित्व करने वाले सरकार की हत्या कर दी गई थी। सीपीआई-माले के उभरते नेता चंद्रशेखर प्रसाद की भी सीवान में हत्या कर दी गई थी। उनकी बढ़ती लोकप्रियता को उनकी हत्या का कारण माना जाता था। सीवान शहर में मार्च 1997 में एक भीड़भाड़ वाले इलाके में उन्हें गोली मार दी गई थी। तब सीवान में बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन की तूती बोलती थी। वह राजद के टिकट पर चुनाव लड़ते थे।

पिछले चार लोकसभा चुनावों में खाता नहीं खुला

1999 के बाद वामदलों को लोकसभा चुनावों में बिहार में एक भी सीट नहीं मिली है। अंतिम बार 1999 के लोकसभा चुनावों में माकपा उम्मीदवार सुबोध राय भागलपुर से जीत हासिल करने में सफल हुए थे। 2004, 2009, 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में वामदलों का कोई उम्मीदवार बिहार में जीत नहीं हासिल कर सका। यह बिहार के राजनीतिक मैदान में वामदलों की लगातार घटती ताकत का संकेत है।

इस बार 5 सीटों पर चुनाव लड़ रहे वामदल

2024 के लोकसभा चुनावों में वामदल राज्य की 40 लोकसभा सीटों में से 5 पर चुनाव लड़ रहे हैं। सीपीआई-एमएल ने तीन सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं। इनमें आरा, कराकाट और नालंदा शामिल हैं। सीपीआई ने बेगुसराय और सीपीाई-एम ने खगड़िया से उम्मीदवार खड़ा किया है। पिछले दो दशक से ज्यादा समय के बाद लोकसभा चुनावों में बिहार में वामदलों का खाता खुलेगा या नहीं, इसका पता 4 जून को लगेगा। 4 जून को लोकसभा चुनावों के नतीजे आएंगे।

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