Lok Sabha Elections 2024: वाराणसी में कौन देगा PM मोदी को चुनौती, विपक्ष दो बार हो चुका है धराशायी, पढ़ें काशी की कहानी
Lok Sabha Elections 2024: विपक्षी यह साबित करने में लगे हैं कि पीएम मोदी के लिए यह लड़ाई आसान नहीं है, क्योंकि सपा और कांग्रेस एक हो चुके हैं। यह अलग बात है की 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा एकजुट थे लेकिन पीएम मोदी कही ज्यादा अंतर से जीत गए
Lok Sabha Elections 2024: 2014 से अब तक पीएम मोदी की स्थिति दिन पर दिन मजबूत हुई है (File Photo-AFP)
Lok Sabha Elections 2024: बाबा विश्वनाथ की नगरी बनारस (Varanasi) अपनी मस्ती और फक्कड़ पन के लिए दुनियाभर में जानी जाती है। लोगों का विश्वास है कि काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी हुई है। इस धरती के मिट्टी की ही महिमा है जिसके कारण यहां पर कबीर से लेकर रामानंदाचार्य, तुलसी और संत रविदास ने भक्ति की नई धारा बहाई। बिस्मिल्लाह खान की शहनाई यहीं गंगा तट पर गूंजी और यहीं पर उन्हें साक्षात भगवान शिव की कृपा का एहसास भी हुआ। यहां भांग की तरंग की मस्ती भी है और बनारसी पान का मजा भी...।
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री पंडित कमलापति जब लखनऊ में रहते थे तो उनके लिए पान बनारस से ही जाता था। लेकिन अब इसकी एक और पहचान हो चुकी है कि बनारस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के निर्वाचन क्षेत्र है। पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के कारण ही सभी विपक्षी दलों की यह चाहत ज्यादा प्रबल है कि किसी तरह मोदी के किले को ढहा दें। इसके लिए बनारस में चुनावी चक्रव्यूह सजाया जा रहा है।
PM पीएम के सामने कहां खड़ा है विपक्ष?
विपक्षी यह साबित करने में लगे हैं कि पीएम मोदी के लिए यह लड़ाई आसान नहीं है, क्योंकि सपा और कांग्रेस एक हो चुके हैं। यह अलग बात है की 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा एकजुट थे लेकिन पीएम मोदी कही ज्यादा अंतर से जीत गए। बीजेपी यह बताने में लगी हुई है कि पीएम मोदी के खिलाफ इस बार विपक्ष की जमानत जप्त हो जाएगी। इस चुनावी जंग में जो भी विपक्षी चेहरा आया तमाम उम्मीदें लेकर आया कि यदि पीएम मोदी को कड़ी टक्कर ही दे दे तो इतिहास बन जाएगा। लेकिन आंकड़े यही बताते हैं कि पीएम मोदी के जीतने का इतिहास बनता जा रहा है।
पीएम के सामने विपक्ष हुआ धराशायी
जब 2014 में पहली बार नरेंद्र मोदी बनारस से चुनाव लड़ने आए तो दिल्ली से आकर अरविद केजरीवाल ने यह कहकर यहां झंडा गाड़ा था कि वह चुनावी दौड़ में बहुत आगे चल रहे हैं और नरेंद्र मोदी को हराकर जाएंगे। लेकिन केजरीवाल को बुरी तरह पराजित होकर राजधानी लौट जाना पड़ा। यही नहीं पिछले चुनाव में भी तमाम बड़े-बड़े दावे किए जा रहे थे। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लगभग 63 प्रतिशत वोट मिला और यह अपने में एक रिकॉर्ड है। पीएम मोदी को टक्कर देने की कमान इस बार कांग्रेस ने अपने हाथ में ली है। कांग्रेस नेताओं ने यह सीट समाजवादी पार्टी से मांगी थी, क्योंकि उन्हें लगता है की उनकी पार्टी के अध्यक्ष अजय राय या 2004 में लोकसभा चुनाव जीते राजेश मिश्रा बहुत लोकप्रिय है और इस बार नरेंद्र मोदी को कठिन चुनौती देंगे।
सपा से गठबंधन के बाद कांग्रेस उत्साहित
कोशिश यह हो रही है इस चुनाव को द्विकोणीय बना दिया जाए और फिर लड़ाई का परिणाम देखा जाए। कांग्रेस इतना उत्साहित है कि उसे लगता है कि यदि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा वाराणसी के मैदान में उतर जाएं तब चुनाव बहुत ही रोचक हो जाएगा। लेकिन कांग्रेस के एक नेता कहते हैं कि उन्हें नहीं लगता कि प्रियंका गांधी मैदान में आएंगी। वह पहला चुनाव लड़े और उसमें भी धोखा हो जाए यह कोई नहीं चाहेगा। फिलहाल विपक्ष की ओर से बनारस में पूरी ताकत लगाने की तैयारी हो रही है, जिससे पीएम मोदी को संकट में डाला जा सके। लेकिन आंकड़े इसका साथ नहीं दे।
पहले से काफी मजबूत हुए हैं पीएम मोदी
2014 से अब तक पीएम मोदी की स्थिति दिन पर दिन मजबूत हुई है। इसका मुख्य कारण यह है कि बनारस बदल चुका है। वहां जो विकास कार्य हुए हैं वह पीएम मोदी की विरोधियों को परेशानी में डाल देते हैं। वर्ष 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किया तो बीजेपी में इस बात पर विचार होने लगा कि मोदी को उत्तर प्रदेश या बिहार में किसी सीट से चुनाव मैदान में उतारा जाए। वास्तव में इस फैसले का बहुत असर होने वाला था। आखिरकार नरेंद्र मोदी ने अपने लिए विश्वनाथ धाम वाराणसी को चुना और अपने निर्णय के संबंध में उन्होंने बताया भी उन्हें 'मां गंगा ने बुलाया है।'
इसी जगह से चुनावी लड़ाई का बिगुल बज गया। उधर विपक्षी दल इस बात को समझ नहीं पा रहे थे कि नरेंद्र मोदी कुछ असर भी दिखा पाएंगे या नहीं। ज्यादातर की यही धारणा थी की गुजरात के एक नेता की उत्तर प्रदेश में क्या जगह है और इसको वह डंके की चोट पर कहते थे कि यूपी में आपकी क्या भूमिका है। 'मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है' के गीत गाते थे। आप वापस गुजरात चले जाएं, क्योंकि उत्तर प्रदेश आपको स्वीकार नहीं करेगा। विपक्ष की इस राजनीति के कुछ कारण भी थे। उत्तर प्रदेश की राजनीति के जातीय टुकड़ों में बंटी हुई थी और विपक्षी दलों को लगता था की जातिय समीकरण पीएम मोदी के पक्ष में नहीं है और उनको निराश होकर उत्तर प्रदेश से जाना पड़ेगा।
केजरीवाल खा चुके हैं मात
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल जब राजनीति में नए-नए थे और उन्हें लगता था की पूरा भारत आशा भरी निगाहों से उनकी ओर देख रहा है। AAP ने घोषित कर दिया की एक नया इतिहास बनने वाला है, क्योंकि अरविंद केजरीवाल बनारस जा रहे हैं और यहीं से नरेंद्र मोदी की पराजय का सिलसिला शुरू जाएगा। वास्तव में विपक्षी नेता जमीनी आकलन नहीं कर पा रहे थे। लेकिन जैसे ही मोदी की रैलियां शुरू हुई विपक्षी नेताओं को ही एहसास हो गया कि जितना कमजोर वह समझ रहे थे वह उससे ज्यादा मजबूत है। अरविंद केजरीवाल ने बनारस में डेरा डाल दिया था। पूरे देश के तमाम मोदी विरोधी बनारस पहुंचने लगे और यह घोषणा हो गई कि अरविंद केजरीवाल बहुत आगे चल रहे हैं।
उस चुनाव में कई दिन रुककर मैं खुद रिपोर्टर के तौर पर अरविंद केजरीवाल के आक्रामक प्रचार को देखा था। लेकिन मतदान हुआ और अरविंद केजरीवाल लगभग 3 लाख से ज्यादा वोटो से हार गए। 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी की जीत का अंतर और बढ़ गया वास्तव में बनारस वह सीट है जो बीजेपी के लिए काफी मदद करने वाली साबित हुई। 2004 में कांग्रेस के टिकट पर राजेश मिश्रा चुनाव जीत गए, लेकिन इसके पीछे बीजेपी के उम्मीदवार शंकर प्रसाद जायसवाल के प्रति नाराजगी का कारण बताया गया।
प्रयोग की राजनीतिक नगरी बनी काशी
वास्तव में बनारस पर कई प्रयोग किए गए। एक प्रयोग मायावती ने भी किया जब 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी के दिग्गज नेता मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ कुख्यात डान मुख्तार अंसारी को मैदान में उतार दिया और उसका प्रचार करने खुद गई। यही नहीं मायावती ने मुख्तार अंसारी को रॉबिनहुड करार दिया। यही उत्तर प्रदेश की राजनीति की असलियत रही है।
यहां पर जीतने के लिए हर दांव चले गए। परिणाम यह हुआ कि जोशी बमुश्किल 17 हजार वोटो से जीत सके। इसी सीट से राम जन्मभूमि आंदोलन की प्रमुख नेता एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी चंद दीक्षित भी चुनाव लड़े और जीते। अब एक बार फिर मैदान सज रहा है। पीएम मोदी तो मैदान में है ही लेकिन विपक्षियों की रणनीति कितनी सफल होगी यह समय बताएगा।