Loksabha Chunav 2024: कहां खो गए वो 2009 वाले वरुण गांधी? वोट यात्रा में जानें पीलीभीत की जनता के मन की बात
Loksabha Chunav 2024: मेनका गांधी को यह क्षेत्र इसीलिए प्रिय लगता रहा, क्योंकि सिखों का समर्थक उन्हें हासिल रहा। 1989 में जब वीपी सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर जनता दल बनाई, तो मेनका गांधी यहां से चुनाव लड़ने आईं और वह जीत गईं। साफ है कि 2024 के चुनाव में यहां पर गांधी परिवार का कोई सदस्य नहीं दिखेगा और यह 35 साल में पहली बार हो रहा है
Loksabha Chunav 2024: इस बार पीलीभीत में लोकसभा चुनाव वरुण गांधी और मेनका गांधी के बिना ही लड़ा जा रहा है
Loksabha Chunav 2024: गांधी परिवार यानी मेनका गांधी (Maneka Gandhi) और वरुण गांधी (Varun Gandhi) का मजबूत किला पीलीभीत (Pilibhit), लेकिन इस चुनाव में यहां पर न मेनका के दर्शन हो रहे हैं और न ही वरुण के। पिछले दो साल से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के खिलाफ आक्रामक रवैया अपनाने वाले वरुण गांधी को इस बार BJP नेतृत्व ने टिकट नहीं दिया। बहुत चर्चाएं थीं कि वरुण गांधी बगावत करके पीलीभीत से ही चुनाव लड़ेंगे और संपूर्ण I.N.D.I.A. गठबंधन उनकी मदद में खड़ा हो जाएगा। विपक्षी I.N.D.I.A. गठबंधन उनकी मदद करता न करता यह अलग विषय है, लेकिन खुद वरुण ने अपने कदम वापस पीछे खींच लिए हैं और पीलीभीत के मतदाताओं के नाम एक भावुक पत्र लिखकर इस चुनाव के लिए पीलीभीत से वह विदा हो गए।
समाजवादी पार्टी अंतिम समय तक वरुण गांधी (Varun Gandhi) का इंतजार करती रही कि शायद वह चुनाव लड़ें और सपा इस बात के लिए तैयार भी थी कि वह पीलीभीत से वरुण गांधी को चुनाव लड़वाएगी। साफ है कि 2024 के चुनाव में यहां पर गांधी परिवार का कोई सदस्य नहीं दिखेगा और यह 35 साल में पहली बार हो रहा है।
इस चुनाव की यही विडंबना है
रतीय जनता पार्टी की ओर से उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री जितिन प्रसाद मैदान में हैं। समाजवादी पार्टी की ओर से भागवत सरन गंगवार चुनाव लड़ रहे हैं और BSP ने यहां पर एक ऐसे प्रत्याशी को उतार दिया है, जो सपा की नींद उड़ाए हुए हैं। वह है अनीस अहमद उर्फ फूल बाबू। फूल बाबू कई बार क्षेत्र से विधायक रहे। आम लोगों में उनकी मजबूत पकड़ है। मुसलमान मतदाताओं का समर्थन उन्हे मिलता रहा है, लेकिन वह BSP के टिकट पर कितना अच्छा लड़ पाएंगे यह कहना अभी कठिन है।
दिलचस्प तथ्य यह है कि जितिन प्रसाद की अपनी भी राजनीतिक हैसियत है, लेकिन उन्होंने अपने को पीछे कर रखा है। हर जगह मोदी का नाम ले रहे हैं। उन्हीं के लिए वोट मांग रहे हैं। इस चुनाव की यही विडंबना है। अनीस अहमद के समर्थक दलितों के बीच अपने को पीछे कर लेते हैं और बहन जी के नाम पर वोट देने की गुजारिश करते हैं।
पीलीभीत के ही मोहम्मद इश्तियाक कहते हैं कि अब देखो लड़ाई में नंबर एक, नंबर दो और तीन पर कौन रहता है, लेकिन इतना साफ है कि बसपा और सपा दोनों ही भाजपा से लड़ रहे हैं।
कहां खो गए वो 2009 वाले वरुण गांधी?
अमरिया गांव के पास एक चाय की दुकान पर इस बात पर राजनीतिक चिंतन चल रहा था कि वरुण गांधी चुनाव लड़ने क्यों नहीं आए। उन्होंने केवल पत्र लिखकर ही अपनी दावेदारी क्यों खत्म कर दी। राजनीतिक चर्चा में तल्लीन सुनील गंगवार कहते हैं कि वरुण गांधी इतनी जल्दी पीछे हटने वालों में नहीं है, लेकिन पता नहीं क्यों इस मामले पर कुछ बोला भी नहीं और अपने कदम भी पीछे कर लिए।
वह कहते हैं कि लगता है, अब वह अपनी मां मेनका गांधी (Maneka Gandhi) को एक बार फिर संसद में देखना चाहते हैं। इसके बाद वह चुनाव लड़ें या न लड़ें। इसलिए विवाद बढ़ाना उचित नहीं समझा, लेकिन शैलेंद्र मिश्रा कहते हैं की वरुण गांधी विवादों से डरने वाले नहीं हैं। वह 2009 में चुनाव लड़ने के लिए आए, तो बरखेड़ा में मुसलमानों के खिलाफ ऐसा उत्तेजक भाषण दे दिया कि पूरे प्रदेश नहीं बल्कि देश में इसकी गूंज हुई और वरुण को जेल जाना पड़ा।
इसी क्षेत्र के अमित गंगवार कहते हैं कि वरुण गांधी ने विकास तो बहुत नहीं किया, लेकिन फिर भी उनको मानने वाले बहुत हैं। वह कहते हैं कि आज वरुण होते, तो लड़ाई बहुत ही दिलचस्प होती। अब तो यहां पर मोदी के नाम पर हार-जीत होगी। अब इस क्षेत्र में लड़ाई त्रिकोणीय जरूर है, लेकिन इतनी दिलचस्पी नहीं है जितनी वरुण गांधी के रहने पर होती थी।
मुस्लिम वोट बांट सकते हैं फूल बाबू?
मुस्लिम मतदाता किसको वोट देगा? इस सवाल के जवाब में मोहम्मद उमर कहते हैं की मुसलमान कांग्रेस-सपा गठबंधन के साथ है, लेकिन फूल बाबू ने लोगों के लिए बहुत कुछ किया है। इसलिए मुसलमान वोट का एक हिस्सा फूल बाबू ले जा सकते हैं। लेकिन यह चुनाव है अभी कुछ कहा नहीं जा सकता है। फूल बाबू को वोट बसपा के कारण मिलेगा या उनके अपने कारण।
वजाहत भाई कहते हैं कि BSP के कारण तो दो वोट नहीं मिलता, लेकिन फूल बाबू का अपना योगदान है। वह सब की मदद करते हैं। इसलिए उन्हें वोट मिल रहा है। लड़ाई किससे होगी इस पर सभी इस बात पर एकमत हैं कि लड़ाई त्रिकोणीय ही होगी। बसपा को कमजोर समझ लेना गलत होगा। जहां तक सपा की बात है वह मुस्लिम और कुर्मी वोट के सहारे ही मैदान में है, लेकिन अगर मुस्लिम वोट खिसका तो सपा पिछड़ सकती हैं।
भगवत शरण गंगवार पीलीभीत के नहीं हैं, वह बरेली के रहने वाले हैं और उस इलाके में उनका प्रभाव रहा है, लेकिन चुनाव देखने के बाद यह साफ हो जाता है कि बसपा के मजबूत प्रत्याशी अगर लोकप्रिय हैं, तो समाजवादी पार्टी के तमाम प्रयासों के बावजूद मुसलमान वोटों का एक हिस्सा अपने साथ ले ही जाएंगे। अब इससे किसका लाभ और नुकसान होगा यह अलग बात है।
पीलीभीत में एक फल की दुकान के पास अरशद मियां बैठे हुए हैं और लोग उन्हें छेड़ रहे हैं कि इस बार हाथी पर सवारी करनी है। मोहर लगेगी हाथी पर, लेकिन अरशद मियां कहते हैं कि साइकिल चलेगी साइकिल। वास्तव में BSP का मुस्लिम प्रत्याशी होने के बावजूद यह कहना मुश्किल है कि पूरा का पूरा मुस्लिम वोट किसी मुस्लिम प्रत्याशी को ही मिल जाएगा।
मोदी नाम के सहारे जितिन प्रसाद
समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन को मुस्लिम वोटो का समर्थन हासिल है। यह अलग बात है कि अगर कोई मुस्लिम प्रत्याशी बहुत लोकप्रिय है, तो वो वोटो का बंटवारा कर सकता है। जहां तक जितिन प्रसाद का सवाल है, तो वह सिर्फ मोदी का नाम ले रहे हैं। यहां एक इलाके में सिखों के बड़े-बड़े फार्म हाउस हैं। जंगलात से घिरे पीलीभीत में पंजाब से आकर सिखों ने बड़े-बड़े फार्म हाउस बनाए और उन्हें हरा भरा कर दिया और इसे मिनी पंजाब के रूप में देखा जाता है।
इसीलिए जितिन प्रसाद जब चुनाव लड़ने के लिए पीलीभीत आए, तो सबसे पहले वह सिखों के पास गए और उनके साथ बैठक की। मेनका गांधी को यह क्षेत्र इसीलिए प्रिय लगता रहा, क्योंकि सिखों का समर्थक उन्हें हासिल रहा। 1989 में जब वीपी सिंह ने कांग्रेस से अलग होकर जनता दल बनाई, तो मेनका गांधी यहां से चुनाव लड़ने आईं और वह जीत गईं।
मां बेटे का गढ़ रहा पीलीभीत
1991 में राम लहर के बीच भारतीय जनता पार्टी ने मेनका को शिकस्त दे दी, लेकिन इसके बाद से इस क्षेत्र में या तो मेनका गांधी या उनके बेटे वरुण गांधी चुनाव जीते। 2014 में वह सुलतानपुर सीट पर चले गए और मेनका गांधी वापस पीलीभीत आ गईं। इस चुनाव में मां और बेटे दोनों जीते।
2019 में वरुण गांधी भारी मतों से चुनाव जीते और उनकी मां मेनका गांधी सुल्तानपुर से चुनाव जीतीं, लेकिन इस बार बिना मेनका और वरुण के बिना हो रहा पीलीभीत लोकसभा सीट का चुनाव मोदी को जीताने और हराने के नाम पर लड़ा जा रहा है।