Loksabha Election 2024: बिना संतोष गंगवार के इस बार बरेली कैसे जीत पाएगी बीजेपी? बसपा मैदान से बाहर, अब सपा के साथ होगा मुकाबला
UP Lok Sabha Elections 2024: बरेली के लोगों को इस बात पर बहुत गर्व है कि उनके शहर के बाजार में फिल्म के एक गाने के बोल के अनुसार, कहीं झुमका गिर गया था। राज खोसला द्वारा निर्देशित 1966 में बनी फिल्म हम साया का यह गाना ऐसा चला कि लोगों की जुबान पर रट गया। फिल्म का यह गीत लोग गुनगुनाते मिल जाएंगे कि "झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में..." यह झुमका तो आज तक नहीं मिला
Loksabha Election 2024: बिना संतोष गंगवार के इस बार बरेली कैसे जीत पाएगी बीजेपी?
35 साल के बाद पहली बार बरेली लोकसभा सीट का चुनाव बिना संतोष गंगवार के हो रहा है। ये वही सीट है, जिस पर संतोष गंगवार आठ बार लोकसभा चुनाव जीते और केवल 2009 में सिर्फ 9,000 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी से चुनाव हार गए थे। इस बार बीजेपी नेतृत्व ने संतोष गंगवार की उम्र को देखते हुए उन्हें टिकट नहीं दिया। इसलिए इस सीट पर लड़ाई बहुत रोचक हो रही है। भारतीय जनता पार्टी ने संतोष गंगवार की जगह छत्रपाल सिंह गंगवार को प्रत्याशी बनाया है। सपा ने यहां पर 2009 में कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते प्रवीण सिंह एरन को टिकट दिया है। बसपा ने यहां पर छोटेलाल गंगवार को टिकट दिया था, लेकिन उनका पर्चा खारिज हो गया। इसका पूरा लाभ भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी छत्रपाल सिंह गंगवार को मिल रहा है। बसपा प्रत्याशी के रहते कुर्मी वोटों में जो बटवारा होता, वो अब नहीं होगा। इस लिए लड़ाई यहां बहुत ही रोचक है, लेकिन कुर्मी बहुल इस सीट पर बीजेपी का असर साफ दिखता है।
बरेली के लोगों को इस बात पर बहुत गर्व है कि उनके शहर के बाजार में फिल्म के एक गाने के बोल के अनुसार, कहीं झुमका गिर गया था। राज खोसला द्वारा निर्देशित 1966 में बनी फिल्म हम साया का यह गाना ऐसा चला कि लोगों की जुबान पर रट गया। फिल्म का यह गीत लोग गुनगुनाते मिल जाएंगे कि "झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में..." यह झुमका तो आज तक नहीं मिला, लेकिन अब यहां पर एक झुमका चौराहा जरूर है, जिसमें लटका खूबसूरत झुमका लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहा है।
संतोष गंगवार एक आदर्श सांसद
बांस और लकड़ी के फर्नीचर के लिए मशहूर बरेली अपने खानपान के लिए भी जाना जाता है। रोहिलखंड क्षेत्र का ये सबसे अहम शहर है। इस लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) में जब संतोष गंगवार का टिकट कटा, तो वो नाराज भी हुए और चुपचाप अपने घर भी बैठ गए। असल में एक आदर्श सांसद का कामकाज कैसा होना चाहिए संतोष गंगवार की कार्यशैली को देखकर समझा जा सकता है। समस्या किसी की हो वो तत्काल उसके साथ चल देते हैं। कभी स्कूटर पर कभी मोटरसाइकिल पर, तो कभी कार में।
बीजेपी ने उन्हें टिकट भले ही न दिया हो, लेकिन उनका महत्व अभी भी पार्टी में बना हुआ है। जब प्रधानमंत्री ने बरेली में रोड शो किया, तो उन्होंने संतोष गंगवार को बहुत महत्व दिया। इसकी काफी चर्चा भी रही। अब बीजेपी प्रत्याशी के सामने जो दिक्कत थी, वो थोड़ी कम हुई है। वास्तव में बसपा ने यहां पर कुर्मी समाज के ही छोटेलाल गंगवार को टिकट दिया था, लेकिन उनका जब पर्चा खारिज हो गया, तो सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को मिला।
संतोष गंगवार अब खुलकर पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में हैं। अब कुर्मी बहुल सीट पर पिछड़ों और अति पिछड़ों का वोट एक जुट होकर, बीजेपी के पक्ष में जा रहा है। बरेली से लगभग 15 किलोमीटर दूर परसा खेड़ा की मोहन पाल कहते हैं कि उनके गांव का ज्यादातर वोट फूल पर जाएगा। वह कहते हैं कि मोदी ने उन लोगों के लिए बहुत कुछ किया है, इसलिए वो बीजेपी के साथ हैं, लेकिन इस बात की शिकायत भी करते हैं कि परसा खेड़ा से गोटिया के लिए सड़क नहीं है।
सपा की रणनीति अब काम नहीं आ रही
बरेली के ही जतन सिंह कहते हैं कि प्रवीण सिंह एरन समाज सेवा में अगुवा हैं और लोगों को उनका समर्थन करना चाहिए। समाजवादी पार्टी ने पूर्व सांसद और पूर्व विधायक प्रवीण सिंह एरन को मैदान में उतारा है। समाजवादी पार्टी ने यह कदम एक रणनीति के तहत उठाया, जिससे वैश्य समुदाय का वोट पार्टी को हासिल हो जाए। प्रवीण एरन वैश्य समुदाय से आते हैं, लेकिन सपा की रणनीति अब काम नहीं आ रही है।
असल में प्रवीण सिंह लगभग सभी चुनाव में मैदान में उतरे, लेकिन वो बहुत करिश्मा नहीं कर पाए। इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में उनकी पकड़ बहुत कमजोर है । समाजवादी पार्टी के एक समर्थक बताते हैं कि उनके प्रत्याशी की पकड़ शहर में तो बहुत अच्छी है। लेकिन गांव में वह बहुत करिश्मा नहीं कर पाएंगे और पार्टी के बल पर जो वोट मिल जाएगा वही वोट उन्हें मिलेगा।
वैश्य मतदाता बीजेपी में जा रहा है
बरेली के ही देवेंद्र गुप्ता कहते हैं कि उनका वोट मोदी को जाएगा, जाति के नाम पर किसी को वोट नहीं देते हैं। वैश्य मतदाता बीजेपी में जा रहा है । वैसे प्रवीण सिंह एरन को मुस्लिम वोट एकजुट होकर मिल रहा है लेकिन दलित वोटो में वह सेंध नहीं लगा पा रहे हैं । दलित वोट यहां इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं, क्योंकि बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी का पर्चा खारिज हो चुका है और अब उसका कोई प्रत्याशी मैदान में नहीं है।
इसलिए दलित मतदाताओं का समर्थन पाने के लिए भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी में काफी जोरदार आजमाइश चल रही है। वैसे नॉन-जाटव मतदाता पूरी तरह से बीजेपी के साथ जा रहा है और जाटव मतदाताओं में बंटवारा हो सकता है। बरेली के ही रामखेलावन वाल्मीकि कहते हैं कि वो भारतीय जनता पार्टी को वोट देंगे, क्योंकि उन्हें मदद मिल रही है। फिलहाल यहां पर लड़ाई भारतीय जनता पार्टी और सपा के बीच हो गई है और बीच में कोई तीसरा है नहीं।
बरेली शहर में भी मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में है और भोजीपुरा में भी मुस्लिम मतदाताओं की संख्या काफी है। समाजवादी पार्टी को इसी वोट का सहारा है। छत्रपति गंगवार पूर्व मंत्री हैं और उनका भी गहरा असर है।
बरेली में भारतीय जनता पार्टी का असर काफी समय से है। यही नहीं लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली पांच सीटों में से चार पर भाजपा का कब्जा है और भोजीपुरा पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है। 2019 में बरेली लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी के संतोष गंगवार ने एक लाख अरसठ हजार वोटो से चुनाव जीता था। जबकि 2014 में गंगवार 2.5 लाख वोटों से सफल रहे थे। इस बार लड़ाई तो सीधी है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी कहीं ज्यादा मजबूत दिखाई दे रही है।