Why Mahayuti losses in Maharashtra: लोकसभा चुनाव शुरू होने पर महाराष्ट्र में बीजेपी के गठबंधन महायुति ने 45 से अधिक सीटों का लक्ष्य रखा था। यूपी के बाद महाराष्ट्र में ही देश भर में सबसे अधिक लोकसभा सीटें हैं। यहां लोकसभा की 48 सीटें है तो हर पार्टी का जोर यहां अधिक से अधिक सीट हासिल करने का रहता है। हालांकि आज जब नतीजे आ रहे हैं तो महायुति को तगड़ा झटका लगा है। महायुति अपने लक्ष्य से आधी से भी कम सीटें ही ला सकी। राम मंदिर का उद्घाटन भी महाराष्ट्र के मतदाताओं के बीच गूंजने में विफल रहा। यहां महाराष्ट्र में महायुति के कमजोर प्रदर्शन की अहम वजहों के बारे में बताया जा रहा है।
'दागी' नेताओं को शामिल करने की रणनीति पड़ी उल्टी
जिन विपक्षी नेताओं के खिलाफ केंद्रीय जांच एजेंसियों ने मामला दर्ज किया था, उन्हें महायुति में शामिल करने की रणनीति वोटर्स को पसंद नहीं आई। एक दिन किसी नेता को भ्रष्ट कहना और दूसरे दिन उसे पार्टी में ले लेना, इससे महायुति की विश्वसनीयता को धक्का लगा। अशोक चव्हाण, अजीत पवार, भावना गवली, प्रताप सरनाईक, यामिनी जाधव जैसे नेताओं को पहले बीजेपी भ्रष्टाचार को लेकर निशाना बनाती थी लेकिन फिर इन्हें अपनी ही पार्टी में शामिल कर लिया। इससे फायदा तो नहीं मिला, बल्कि वोटर्स का सेंटिमेंट ही बिगड़ गया।
NDA की तरफ से कैंडिडेट्स के ऐलान में देरी
सीट बंटवारे को लेकर एनडीए के घटक दलों के बीच विवाद के चलते उम्मीदवारों के ऐलान में देरी हुई। नासिक, दक्षिण मुंबई, उत्तर पश्चिम मुंबई और ठाणे जैसी सीटों पर नॉमिनेशन की आखिरी तारीख से ठीक पहले उम्मीदवारों के नामों की घोषणा की गई। इससे विपक्षियों को प्रचार के लिए अधिक समय मिल गया।
उद्धव ठाकरे और शरद पवार को लेकर सहानुभूति
पिछसे साल 2023 में एनसीपी और उसके पिछले साल वर्ष 2022 में शिवसेना दोफाड़ हो गई। चुनाव आयोग ने विद्रोही गुटों को मूल पार्टियों के रूप में मान्यता दी और उन्हें पार्टी का आधिकारिक चिन्ह अलॉट कर दिया। इसे वोटर्स ने शरद पवार और उद्धव ठाकरे को धोखे के शिकार के रूप में देखा और उनके लिए सहानुभूति की लहर बनी।
संकट से जूझ रहे किसान और सूखा
उत्तरी महाराष्ट्र, पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में किसान संकट ने एनडीए को लेकर निगेटिव माहौल बनाया। उत्तरी महाराष्ट्र के प्याज किसान निर्यात पर प्रतिबंध के चलते गुस्साए थे जबकि मराठवाड़ा के किसान सूखे और बेमौसम बारिश से हुए नुकसान के कारण पर्याप्त राहत की मांग कर रहे थे।
मराठवाड़ा में शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण के लिए मराठा समुदाय के आंदोलन ने महायुति को नुकसान पहुंचाया। मराठा आंदोलन के दौरान यह इलाका हिंसा का केंद्र था। छगन भुजबल और पंकजा मुंडे जैसे ओबीसी नेताओं की बयानबाजी ने एनडीए को लेकर माहौल और खराब किया। कई सीटों पर मुकाबला मराठा बनाम ओबीसी का बन गया। महायुति उम्मीदवारों को मराठा मतदाताओं के गुस्से का सामना करना पड़ा।