NDA की ओर से नेता चुने जाने के बाद बीजेपी के नरेंद्र दामोदर दास मोदी आज (9 जून 2204) प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बन रहे हैं। शपथ ग्रहण समारोह के दौरान पीएम मोदी के साथ कई लोगों के कैबिनेट मंत्री के तौर पर भी शपथ लेने की संभावना जताई जा रही है। ऐसे में क्या आपके मन में कभी यह विचार आया कि आखिरकार शपथ ग्रहण समारोह इतना महत्वपूर्ण क्यों होता है। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री, मंत्री और पंचायत के पंच और सरपंच तक आखिरकार क्यों और किस बात की शपथ लेते हैं?
हमारे देश के संविधान में शपथ ग्रहण को लेकर क्या नियम हैं? शपथ तोड़ने या इस उल्लंघन करने पर देने पर सजा का प्रावधान है? क्या इसका हमारे देश के इतिहास से कोई खास संबंध है? ऐसे तमाम जानकारी हम आपको मुहैया करा रहे हैं।
शपथ के बारे में संविधान में क्या कहा गया है?
भारत के संविधान में राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री, सांसद, विधायक आदि के शपथ ग्रहण करने का प्रावधान किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि प्रधानमंत्री को राष्ट्रपित के सामने शपथ लेना होगा। अनुच्छेद 75 (4) में प्रधानमंत्री और मंत्रियों के शपथ का प्रारूप भी दिया दिया है। इसी तरह अनुच्छेद 99 में संसद के सभी सदस्यों के शपथ से जुड़ा प्रावधान है। संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति देश के नए प्रधानमंत्री को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं। इसके साथ ही मंत्रियों को भी शपथ दिलाई जाती है। पहले कैबिनेट मंत्रियों को फिर स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्रियों को और सबसे आखिर में राज्य मंत्रियों को शपथ दिलाई जाती है। शपथ के दो हिस्से हैं. पहला पद और दूसरा गोपनीयता का है।
शपथ के बाद प्रधानमंत्री को एक प्रमाण पत्र जारी किया जाता है। जिस पर शपथ लेने की तारीख और समय लिखा होता है। इस पत्र पर पीएम के हस्ताक्षर भी होते हैं।
प्रधानमंत्री और सांसदों की शपथ में कितना अंतर?
मंत्रियों की शपथ का प्रारूप और सांसदों के शपथ का प्रारूप लग-अलग होता है। वैसे तो ये सभी संविधान के अनुसार काम करने की शपथ लेते हैं। लेकिन प्रधानमंत्री और मंत्री अपने पद के अनुसार संविधान के तहत काम करने की प्रतिज्ञा करते हैं। वहीं संसद के सदस्य खुद को सदन के लिए चुने जाने, संविधान के प्रति आस्था रखने और अपने पद के अनुसार कर्तव्यों का पालन करने की शपथ लेते हैं।
लोकसभा सदस्यों को शपथ दिलाएंगे प्रोटेम स्पीकर
लोकसभा के गठन से ठीक पहले यानी लोकसभा की पहली बैठक से पहले पुराने स्पीकर अपने पद से इस्तीफा दे देते हैं। ऐसे में लोकसभा का न कोई अध्यक्ष होता है और न ही कोई उपाध्यक्ष। लिहाजा इनका चुनाव होने तक राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 95 (1) के तहत चुनकर आए नए सदस्यों में से किसी एक को लोकसभा की पहली बैठक के लिए प्रोटेम स्पीकर यानी सामयिक अध्यक्ष के रूप में चुनकर अन्य सदस्यों को शपथ दिलाते हैं।
आमतौर पर सीनियर सांसद को ही प्रोटेम स्पीकर के तौर पर चुना जाता है। प्रोटेम स्पीकर ही सदन की पहली बैठक संचालित करते हैं और दूसरे सभी सदस्यों को शपथ दिलाते हैं। अगर किसी कारण से नया चुनकर आया कोई सदस्य पहली बैठक के दौरान शपथ नहीं ग्रहण कर पाता है तो वह बाद में भी शपथ ले सकता है। इसके लिए उसे लोकसभा महासचिव को पहले से सूचित करना होता है। उधर, लोकसभा के नए अध्यक्ष का चुनाव होने पर प्रोटेम स्पीकर का पद अपने आप खत्म हो जाता है।