लोकसभा चुनाव में जनता सीधे मतदान करती है। जबकि राज्यसभा का चुनाव दो तरह से किया जाता है। पहला राज्यसभा का चुनाव विधानसभा के प्रतिनिधित्व के जरिए होता है। दूसरा अलग-अलग क्षेत्र से राष्ट्रपति की ओर से मनोनीत किया जाता है। राज्यसभा एक स्थायी सदन होता है। लोकसभा भंग हो सकती है, लेकिन राज्यसभा कभी भंग नहीं होती है। लोकसभा के मुकाबले राज्यसभा में सीटें कम होती हैं। संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार, राज्यसभा में सांसदों की कुल संख्या 250 हो सकती है। इनमें से 238 सदस्य चुने जाते हैं, जबकि बाकी 12 सदस्यों को राष्ट्रपति की ओर से मनोनीत किया जाता है।
कुल मिलाकर राज्यसभा के चुनाव में आम जनता हिस्सा नहीं लेती है। उसके चुने हुए विधायक इसमें हिस्सा लेते हैं। इसीलिए इसके चुनाव को अप्रत्यक्ष चुनाव भी कहा जाता है। भारत में संसद के दो हिस्से हैं। लोकसभा और राज्यसभा सदनों से कोई विधेयक पास होने के बाद राष्ट्रपति के पास जाता है। उनके हस्ताक्षर के बाद विधेयक कानून का रूप ले लेता है और पूरे देश में उसका पालन होने लगता है।
राज्यसभा का इतिहास 1919 के समय का है। ब्रिटिश इंडिया में उस समय एक ऊपरी सदन बनाया गया था। तब इसे काउंसिल ऑफ स्टेट कहा जाता था। वहीं आजादी के बाद 3 अप्रैल 1952 को राज्यसभा का गठन हुआ था। इसके बाद 23 अगस्त 1954 को इसका नाम काउंसिल ऑफ स्टेट से बदलकर राज्यसभा कर दिया गया था। हालांकि आधिकारिक तौर पर अभी भी इसे उच्च सदन या ऊपरी सदन कहा जाता है। लेकिन आमभाषा में कभी भी लोग इसे उच्च सदन नहीं कहते हैं। ज्यादातर लोग इसे राज्यसभा के नाम से ही जानते हैं। संसद के उच्च सदन को राज्यसभा और निचली सदन को लोकसभा कहा जाता है।
राज्यसभा कभी नहीं होती भंग
राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है। इसे कभी भंग नहीं किया जा सकता है। किस राज्य से कितने राज्यसभा सदस्य होंगे, ये वहां की आबादी के आधार पर तय होता है।
हर दो साल में पूरा हो जाता है एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल
व्यवस्था ऐसी है कि राज्यसभा के एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल हर दूसरे साल पूरा होता रहता है। उनकी जगह पर नया चुनाव होता है। वैसे अगर राज्यसभा का कोई सदस्य इस्तीफा दे दे या किसी की मृत्यु हो जाए अथवा किसी कारण से किसी सदस्य को सदन के अयोग्य घोषित कर दिया जाए, तो उसकी जगह पर उप चुनाव भी होता है। जिस सीट के लिए बीच में चुनाव होता है, उस पर चुना गया सांसद पूरे छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं करता, बल्कि वह उतने ही समय के लिए सांसद बनता है, जितना समय पहले के सदस्य के कार्यकाल का बचा होता है।