उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है और पार्टी ने इस बार राहुल गांधी को यहां उम्मीदवार बनाया है, ताकि पार्टी अपने गढ़ को बरकरार रख सके। यह जगह बीजेपी के लिए भी काफी अहम है और यहां का मुकाबला उसके लिए भी कठिन परीक्षा की तरह है। प्रदेश के मंत्री दिनेश सिंह लगातार दूसरी बार बीजेपी के टिकट पर यहां चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि, इस चुनाव में रायबरेली सदर से बीजेपा विधायक अदिति सिंह की मौजूदगी नहीं देखने को मिल रही है, जिससे बीजेपी के चुनाव प्रचार अभियान को झटका लग सकता है।
कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट जीती थी और वह रायबरेली ही थी। बीजेपी ने पिछली बार अमेठी सीट जीत ली थी और इस बार उसकी योजना रायबरेली को भी गांधी परिवार और कांग्रेस से मुक्त करने की है। इस रणनीति के तहत पार्टी ने सबसे पहले कांग्रेस विधायक अदिति सिंह को अपनी पार्टी में लिया। उन्होंने 2022 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के टिकट पर लड़ा और जीत भी हासिल की। उन्हें बीजेपी की चुनावी संभावनाओं के लिए एक अहम माध्यम के तौर पर देखा जा रहा था।
इसके अलावा, दिसंबर में हुए राजनीतिक उठापटक के तहत बीजेपी को समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक मनोज पांडे का भी समर्थन मिल रहा है, जिन्होंने बीजेपी का दामन थामकर राज्यसभा चुनावों में पार्टी के उम्मीदवार का समर्थन किया था। पांडे रायबरेली के ऊंचाहार से हैं। रायबरेली के दो विधायकों को अपने पाले में कर बीजेपी जीत की आस लगाए बैठी थी। हालांकि, सिंह और पांडे दोनों ने ऐन मौके पर चुप्पी साध रखी है और इससे इस क्षेत्र में बीजेपी की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए मुश्किल पैदा हो गई है।
रायबरेली सदर सीट पर अदिति सिंह का काफी राजनीतिक प्रभाव पर है, लिहाजा उन्हें बीजेपी के लिए ताकत माना जा सकता है। हालांकि, पार्टी के रणनीतिकार चुनाव परिदृश्य से उनकी गैर-मौजूदगी को लेकर चिंता जता रहे हैं। अदिति सिंह ने हाल में ट्वीट कर कहा था, 'सिद्धांतों के साथ कोई समझौता नहीं।' इसके बाद राजनीतिक हलकों में अटकलों का बाजार गर्म हो गया है। हालांकि, वह 12 मई को वह अमित शाह की चुनावी रैली में मौजूद थीं, लेकिन उनकी चुप्पी चौंकाने वाली है।