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इंडियन मार्केट पर फोकस वाली फार्मा कंपनियों में निवेश से होगी मोटी कमाई, जानिए आदित्य खेमका ने क्यों कही यह बात

खेमका ने कहा कि फार्मा सेक्टर की मौजूदा तस्वीर को समझने के लिए हमें पिछले दो सालों पर नजर डालना होगा। फाइनेंशियल ईयर 2021 और फाइनेंशियल ईयर 2023 के दौरान फार्मा और डायग्नॉस्टिक कंपनियों के रेवेन्यू में अच्छा उछाल देखने को मिला। दरअसल, कंपनी की कोरोना से संबंधित इनकम बढ़ी, लेकिन दूसरे बिजनेसेज में गिरावट आई। चूंकि कोरोना से जुड़ी दवाओं में मार्जिन ज्यादा था, जिससे प्रॉफिट में उछाल आया। लेकिन कोरोना की महामारी खत्म होने पर रेवेन्यू और मार्जिन में आया उछाल गायब हो गया

अपडेटेड Sep 14, 2023 पर 2:58 PM
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Nifty Pharma Index ने पिछले छह महीनों में 33 फीसदी रिटर्न दिया है। एक साल में इसका रिटर्न 21.82 फीसदी रहा है।

फॉर्मा स्टॉक्स में रौनक लौट आई है। 13 सितंबर को Nifty Pharma Index 1 फीसदी चढ़कर 15,448 प्वाइंट्स पर बंद हुआ। पिछले छह महीनों में इस इंडेक्स ने 33 फीसदी रिटर्न दिया है। एक साल में इसका रिटर्न 21.82 फीसदी रहा है। यह फार्मा स्टॉक्स में निवेशकी की दिलचस्पी की वजह हो सकती है। लेकिन, सवाल है कि आगे फॉर्मा स्टॉक्स का प्रदर्शन कैसा रहेगा, अभी किन फॉर्मा स्टॉक्स में निवेश के मौके दिख रहे हैं और फार्मा सेक्टर में निवेश करने में किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है? इन सवालों के जवाब जानने के लिए मनीकंट्रोल ने आदित्य खेमका से बातचीत की। उन्हें फार्मा सेक्टर का 17 साल का अनुभव है। वह बतौर एनालिस्ट और फंड मैनेजर इस सेक्टर को ट्रैक करते आ रहे हैं। अभी वह Incred PMS में 200 करोड़ रुपये के हेल्थकेयर फंड का प्रबंधन कर रहे हैं।

पिछले दो साल के मुकाबले तस्वीर बदली है

खेमका ने कहा कि फार्मा सेक्टर की मौजूदा तस्वीर को समझने के लिए हमें पिछले दो सालों पर नजर डालना होगा। फाइनेंशियल ईयर 2021 और फाइनेंशियल ईयर 2023 के दौरान फार्मा और डायग्नॉस्टिक कंपनियों के रेवेन्यू में अच्छा उछाल देखने को मिला। दरअसल, कंपनी की कोरोना से संबंधित इनकम बढ़ी, लेकिन दूसरे बिजनेसेज में गिरावट आई। चूंकि कोरोना से जुड़ी दवाओं में मार्जिन ज्यादा था, जिससे प्रॉफिट में उछाल आया। लेकिन कोरोना की महामारी खत्म होने पर रेवेन्यू और मार्जिन में आया उछाल गायब हो गया। बिजनेस में दूसरे बिजनेसेज की हिस्सेदारी बढ़ गई। उधर, चीन को लॉकडाउन से बाहर आने में काफी समय लगा। इससे केमिकल की कीमतें काफी बढ़ गईं। इंडियन फार्मा कंपनियों की जरूरत का करीब 80-90 फीसदी कच्चा माल चीन से आता है। इसलिए महंगे केमिकल की वजह से इन कंपनियों के मार्जिन पर दबाव बढ़ गया। इसका कंपनियों के मुनाफे और रेवेन्यू पर काफी असर पड़ा।


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इन वजहों से फार्मा सेक्टर में बढ़ी है दिलचस्पी

उन्होंने कहा कि चीन अब लॉकडाउन से बाहर आ चुका है। इससे केमिकल की कीमतें लुढ़क गई हैं। यह केमिकल कंपनियों के लिए खराब खबर है। लेकिन फार्मा कंपनियों के लिए अच्छी खबर है। इस बीच, फ्रेट और पावर कॉस्ट में भी कमी आई है। इससे फार्मा कंपनियों का मार्जिन बहुत बढ़ा है। इसी वजह से फार्मा कंपनियों में निवेशकों की दिलचस्पी बढ़ी है। खासकर अनब्रांडेड जेनेरिक्स में निवेशक सबसे ज्यादा दिलचस्पी दिखा रहे हैं। दरअसल, फार्मा कंपनियों के प्रोडक्ट्स को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। पहला, अनब्रांडेड जेनेरिक्स है, जिसका मार्केट अमेरिका और यूरोप है। दूसरा है ब्रांडेड जेनेरिक्स जिसका मार्केट इंडिया और दूसरे उभरते मार्केट्स हैं। तीसरा, एपीआई या बल्क ड्रग से जुड़ी कंपनियां हैं।

इंडिया का मार्केट अमेरिकी मार्केट से काफी अलग है

खेमका ने कहा कि अनब्रांडेड बिजनेस का मॉडल टिकाऊ (sustainable) नहीं है। कमोडिटी बिजनेस है, जिसमें सप्लाई डिमांड से ज्यादा है। मैं ब्रांडेड जेनरिक कंपनियों में इनवेस्ट कर रहा हूं। इन कंपनियों का अमेरिका में थोड़ा बिजनेस है। इनका ज्यादातर बिजनेस इंडिया और इमर्जिंग मार्केट्स में है। इंडिया और इमर्जिंग मार्केट्स अमेरिका से अलग हैं, क्योंकि फार्मा कंपनियां अपना ब्रांड लॉन्च कर सकती हैं। अमेरिका में कंपनियों का अपना ब्रांड नहीं हो सकता। वहां अगर बुखार होने पर एक व्यक्ति डॉक्टर के पास जाता है तो डॉक्टर Paracetamol लेने को कहता है। वह दवा की दुकान पर जाता है और पैरासीटामोल मांगता है। दुकानदार उसे बताएगा कि उसके पास एक पैरासीटामोल डॉ रेड्डी का है, एक सिप्ला का है और एक कैडिला का है। आपको कौन सा पैरासीटामोल चाहिए? व्यक्ति कहेगा कि उसे सबसे सस्ता पैरासीटोमोल चाहिए। वह ब्रांड की चिंता नहीं करता हैष। उसे सिर्फ सस्ती दवा चाहिए।

इंडिया में डॉक्टर की लिखी दवा खरीदता है ग्राहक

इंडिया में जब एक व्यक्ति डॉक्टर के पास जाता है तो डॉक्टर उसे Dolo लिख देता है। व्यक्ति दवा की दुकान से डोलो खरीद लेता है। वह इसकी कीमत नहीं पूछता क्योंकि डॉक्टर ने अपनी पर्ची पर डोलो लिखा है। एक ब्रांड और कमोडिटी मार्केट के बीच यही फर्क है। उन्होंने कहा कि इंडिया में अनब्रांडेड जेनेरिक्स का इस्तेमाल बढ़ाने की कोशिश 1992 में शुरू हुई थी। इस बारे में कई बार गाइडलाइंस आईं। लेकिन कोई बदलाव नहीं आया। इसके इंडिया में काम नहीं करने की कई वजहे हैं। सबसे पहले यह धारणा जिम्मेदार है कि अनब्रांडेड जेनेरिक्स सस्ते होते हैं। अमेरिका अनब्रांडेड जेनेरिक्स का सबसे बड़ा मार्केट है और यह दुनिया में सबसे महंगा फार्मा मार्केट है। इस मामले में इंग्लैंड दूसरा सबसे महंगा है। उसके बाद ऑस्ट्रेलिया का नंबर आता है।

इंडियान मार्केट में ब्रांडेड दवाओं की डिमांड

दूसरी वजह रोजगार से जुड़ी है। इंडिया में दवा की दुकानों पर काम करने वाले लोगों की संख्या 50 लाख है। यहां 14 लाख मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव (MR) हैं। अगर मौजूदा स्थिति बदलती है तो सभी MR बेरोजगार हो जाएंगे। दवा की दुकानों में बहुत कम स्टाफ की जरूरत रह जाएगी। मार्जिन बहुत घट जाएगा और दुकानदारों को अपनी फिक्स्ड कॉस्ट घटाने को मजबूर होना पड़ेगा। लेकिन, सबसे बड़ा मसला क्वालिटी का है। जिन देशों में अनब्रांडेड जेनेरिक्स का मार्केट है, वहा क्वालिटी कंट्रोल के स्टैंडर्ड बहुत हाई हैं। इंडिया में ऐसा नहीं है। अगर आप दवा बनाने वाली किसी कंपनी में जाए तो आप दवा खाना बंद कर देंगे। मैंने कई लोगों को मशीन में पाउडर डालने के लिए Shovel का इस्तेमाल करते देखा है।

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