मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (Marcellus Investment Managers) के प्रमोद गुब्बी (Pramod Gubbi) की राय है कि भारतीय बाजार के भी वैश्विक मंदी से प्रभावित होने की संभावना है। लेकिन भारत की स्थिति दूसरे उभरते बाजारों (इमर्जिंग मार्केट) के की तुलना में काफी अच्छी है। इसकी वजह ये है कि भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक घरेलू खपत पर आधारित है। जिसके चलते भारतीय बाजारों की चाल तय करने में घरेलू स्थितियां ज्यादा अहम भूमिका निभाती हैं।
CNBC-TV18 के साथ हुई बातचीत में प्रमोद गुब्बी ने कहा कि दूसरे उभरते बाजारों से तुलना करें तो इसे सौभाग्य कहें या दुर्भाग्य, हम एक्सपोर्ट के मामले में दूसरे उभरते देशों की तुलना में पीछे हैं। जिसकी वजह से अमेरिका और यूरोप जैसी विकसित इकोनॉमीज में आने वाली किसी मंदी का हमारे ऊपर तुलनात्मक रूप से कम असर होगा। लेकिन हम इस असर से अछूते नहीं रहेंगे।
कुछ एनालिस्ट का मानना है कि भारतीय शेयर बाजार अपने इमर्जिंग मार्केट समकक्षों की तुलना में अलग दिख रहे हैं। जहां MSCI इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स 12 महीनों में 31 अगस्त तक लगभग 21.8 फीसदी गिर गया है।, वहीं इसी अवधि में MSCI इंडिया इंडेक्स सिर्फ 3.17 फीसदी गिरा है। इसी तरह इमर्जिंग मार्केट इंडेक्स 3 महीनों की अवधि में 6.49 फीसदी टूटा है। जबकि MSCI इंडिया इंडेक्स इस अवधि में 6.14 फीसदी भागा है।
प्रमोद गुब्बी ने आगे कहा कि अगर कुछ समय तक महंगाई बनी रहती है तो इस स्थिति में बेहतर यही होगा कि निवेशक उन स्टॉक्स पर फोकस करें जिनकी अपने प्रोडक्ट्स की मूल्य निर्धारण शक्ति मजबूत है। यानी ऐसी कंपनियों के शेयरों पर दांव लगाएं जो बढ़ती उत्पादन लागत की स्थिति से निपटने के लिए अपने प्रोडक्ट्स के दाम बढ़ानें की क्षमता रखती हैं।
प्रमोद गुब्बी का मानना है कि अगले दशक में बाजार में अच्छी ग्रोथ देखने को मिलेगी। ये इंफ्रा और फाइनेंशियल जैसे सेक्टरों के लिए अच्छा संकेत है। सप्लाई से जुड़ी समस्याओं और COVID की चुनौती के बावजूद नियर टर्म में ऑटो शेयरों में रिकवरी देखने को मिलेगी। हालांकि सेमी-कंडक्टर की आपूर्ति के लेकर अभी भी दिक्कतें हैं। लेकिन इसकी कमी कुछ हद तक कम हो गई है। अब अगले 2-3 साल ऑटो शेयरों में तेजी रहेगी।
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