अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2 अप्रैल को रेसिप्रोकल टैरिफ या जवाबी टैरिफ (Reciprocal Tariff) की घोषणा आखिरकार कर ही दी। भारत से अमेरिका में आने वाले सामानों पर 27 प्रतिशत का भारी भरकम टैरिफ लगाया गया है। लेकिन यह फिर भी अन्य देशों के मुकाबले कम है। अमेरिका ने बांग्लादेश पर 37 प्रतिशत, चीन पर 54 प्रतिशत (नया 34 प्रतिशत+इस साल पहले लगाए जा चुके 20 प्रतिशत), वियतनाम पर 46 प्रतिशत और थाइलैंड पर 36 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है। ट्रंप ने लगभग 60 देशों पर जवाबी टैरिफ लगाने की घोषणा की है।
अमेरिका की ओर से रेसिप्रोकल टैरिफ उन देशों पर लगाए गए हैं, जो अपने यहां आने वाले अमेरिकी सामान पर टैरिफ लगाते हैं। इन नए टैरिफ की घोषणाओं के बाद लोग यह जानने की कोशिश करने लगे कि आखिर अमेरिका ने टैरिफ के रेट तय कैसे किए हैं। इस सवाल के जवाब में इंटरनेट पर वह फॉर्मूला वायरल हो रहा है, जिसे लेकर कहा जा रहा है कि इसी के बेसिस पर ट्रंप प्रशासन ने जवाबी टैरिफ तय किए हैं। यह फॉर्मूला सोशल मीडिया पर भी शेयर किया जा रहा है।
सीएनएन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रंप प्रशासन द्वारा इस्तेमाल की गई कैलकुलेशन बिल्कुल भी रेसिप्रोकल नहीं है। देशों के टैरिफ को डॉलर के हिसाब से मैच करना एक बेहद कठिन काम है। इसमें हर देश के टैरिफ शेड्यूल पर गहनता से विचार करना और प्रोडक्ट्स के एक जटिल व्यूह का मिलान करना शामिल है, जिनमें से प्रत्येक में अलग-अलग वेरिएंट के लिए अलग-अलग चार्ज हैं।
कहा जा रहा है कि ट्रंप प्रशासन ने रेसिप्रोकल टैरिफ के लिए एक बेहद सरल कैलकुलेशन चुनी। वह है- 'किसी देश के साथ अमेरिका के व्यापार घाटे को, अमेरिका में उस देश के निर्यात से डिवाइड करना और फिर मिलने वाली संख्या में 2 से भाग दे देना।' CNN की रिपोर्ट के मुताबिक, इस कैलकुलेशन के बारे में सबसे पहले पोस्ट पत्रकार जेम्स सुरोवेकी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर शेयर की। इसे वॉल स्ट्रीट के एनालिस्ट्स ने सपोर्ट किया। ट्रंप प्रशासन ने बाद में पुष्टि की कि उसने इसी कैलकुलेशन का इस्तेमाल किया।
उदाहरण के लिए, साल 2024 में चीन के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा 295.4 अरब डॉलर था। 2024 में अमेरिका ने 439.9 अरब डॉलर के चीनी सामान इंपोर्ट किए। अब इस व्यापार घाटे को अगर अमेरिका द्वारा चीन से किए गए इंपोर्ट से भाग दें तो मिलेगा 0.67 या 67 प्रतिशत। इसे 2 से भाग देने पर नतीजा मिलेगा 33.5 या लगभग 34 प्रतिशत। यही चीन पर नए लगाए गए रेसिप्रोकल टैरिफ का आंकड़ा है।
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि 67 प्रतिशत वह दर है, जिसे चीन ने टैरिफ के तौर पर अमेरिका पर लगाया है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं था। अमेरिका के साथ चीन का ट्रेड सरप्लस उसके एक्सपोर्ट की वैल्यू का 67% था।
बड़े ट्रेड सरप्लस वाले देश हैं टारगेट
CNN के मुताबिक, जोन्स ट्रेडिंग के चीफ मार्केटिंग स्ट्रैटेजिस्ट माइक ओ'रूर्के का कहना है कि वैसे तो इन नए टैरिफ उपायों को जवाबी टैरिफ के रूप में तैयार किया गया है, लेकिन यह पता चला है कि नीति वास्तव में सरप्लस को टारगेट करने की है। ऐसा लगता है कि रेसिप्रोकल टैरिफ की कैलकुलेशन में किसी भी टैरिफ का इस्तेमाल नहीं किया गया है। ट्रंप प्रशासन संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ बड़े ट्रेड सरप्लस वाले देशों को टारगेट कर रहा है। टैरिफ के रेट आम तौर पर उन देशों पर सबसे ज्यादा तगड़े होंगे, जिन पर अमेरिकी कंपनियां अपनी सप्लाई चेन में बहुत ज्यादा निर्भर हैं।
इनवेस्टमेंट फर्म एक्सेलरेट एफटी के CEO और CIO जूलियन क्लाइमोचको ने ट्रंप के इस कदम को अब तक की सबसे बड़ी आर्थिक भूल बताया है। X पर एक पोस्ट में उन्होंने भी कहा कि ट्रंप प्रशासन जिन फिगर्स को अमेरिका पर दूसरे देशों द्वारा लगाए गए टैरिफ बता रहा है, वे वास्तव में टैरिफ नहीं हैं। उन्होंने कहा कि पूरी तरह से असंगत नॉन-टैरिफ कैलकुलेशंस के आधार पर रेसिप्रोकल टैरिफ का स्तर निर्धारित करना समझ से परे है।