Explained: रुपया में इंटरनेशनल ट्रेड सेटलमेंट का सिस्टम कैसे काम करेगा ?
आरबीआई ने कहा है कि सेटलमेंट की नई व्यवस्था शुरू करने का मकसद इंडिया के एक्सपोर्ट को बढ़ावा देना है। भारतीय रुपया में ट्रेड करने में देशों की दिलचस्पी बढ़ी है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि आरबीआई के इस कदम का मकसद रूस के साथ ट्रेड बढ़ाना है
इस तरह का सिस्टम कुछ साल पहले ईरान के साथ शुरू किया गया था। लेकिन, 2019 में ईरान से तेल का इंपोर्ट बंद करने के इंडिया के फैसले के बाद यह सिस्टम बेकार हो गया।
अब इंटरनेशनल ट्रेड का सेटलमेंट रुपया में होगा। RBI इसके लिए सिस्टम शुरू करने जा रहा है। अभी ज्यादातर इंटरनेशनल ट्रेड का सेटलमेंट (नेपाल और भूटान को छोड़) दुनिया की प्रमुख करेंसी में होता है। इनमें डॉलर, स्टर्लिंग पाउंड, यूरो और येन शामिल हैं। RBI के नई व्यवस्था शुरू करने के बाद अब इंटरनेशनल ट्रेड का सेटलमेंट रुपया में भी हो सकेगा।
आरबीआई ने ट्रेड सेटलमेंट का नया सिस्टम क्यों शुरू किया?
आरबीआई ने कहा है कि सेटलमेंट की नई व्यवस्था शुरू करने का मकसद इंडिया के एक्सपोर्ट को बढ़ावा देना है। भारतीय रुपया में ट्रेड करने में देशों की दिलचस्पी बढ़ी है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि आरबीआई के इस कदम का मकसद रूस के साथ ट्रेड बढ़ाना है। यूक्रेन पर हमले के बाद से रूस अमेरिका, इंग्लैंड और ईयू में अपने डॉलर रिजर्व का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है।
RBI के इस कदम की कुछ और वजहें भी हैं। इंडिया विदेशी मुद्रा भंडार 588.3 अरब डॉलर है। यह 10 महीनों के आयात के लिए पर्याप्त है। लेकिन, पिछले कुछ समय से आरबीआई इसका इस्तेमाल रुपया को सहारा देने के लिए कर रहा है। डॉलर के मुकाबले में रुपया में लगातार गिरावट आ रही है। इस साल डॉलर के मुकाबले रुपया 6 फीसदी से ज्यादा गिर गया है।
उधर, विदेशी फंड पिछले 8-9 महीनों से इंडियन स्टॉक मार्केट में लगातार बिकवाली कर रहे हैं। इधर, जून में इंडिया का ट्रेड डेफिसिट बढ़कर 25.63 अरब डॉलर पहुंच गया है। यह पिछले साल जून के मुकाबले ढ़ाई गुना है। RBI ने विदेशी मुद्रा भंडार के लिए भी कुछ उपायों का ऐलान किया है। इसने NRI के फॉरेन करेंसी होल्डिंग अकाउंट्स पर इंटरेस्ट बढ़ाने की इजाजत बैंकों को दे दी है। एक फाइनेंशियल ईयर में ऑटोमैटिक रूच से विदेश से कर्ज जुटाने की सीमा भी बढ़ा दी है।
कैसे काम करेगा रुपया में इंटरनेशनल ट्रेड सेटलमेंट सिस्टम?
ट्रेड सेटलमेंट के नए सिस्टम में अगर कोई देश रुपया में पेमेंट लेने को तैयार हो जाता है तो इससे इंडिया के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव घट जाएगा। आरबीआई यही चाहता है। Federation of Indian Export Organizations (FIEO) के डायरेक्टर जनरल एवं सीईओ अजय सहाय के मुताबिक, दूसरे देश को भी रुपया में पेमेंट लेने का सिस्टम बनाना होगा। तभी उस देश के केंद्रीय बैंक और आरबीआई बराबर-बराबर अमाउंट के साथ फंड का कॉमन पूल बना सकेंगे।
आरबीआई कुछ इंडियन बैंकों को इस ट्रेड सेटलमेंट सिस्टम को ऑपरेट करने का निर्देश देगा। आरबीआई के नोट में ऐसे बैंकों को अथॉराइज्ड डीलर बैंक कहा गया है। इंडिया में ऐसे बैंक दूसरे देशों के सेंट्रल बैंक की करेंसी को रुपया में रखेंगे। इसे आरबीआई के नोट में 'Rupee Vostro Accounts' कहा गया है।
Vostro का मतलब है आपका पैसा हमारे अकाउंट में। रुपी वोस्त्रो अकाउंट में विदेशी एन्टिटी का पैसा इंडियन बैंक में रुपया में होगा। जब कोई इंडियन ट्रेडर एक्सपोर्ट करेगा तो वह अपने रेगुलर बैंक को एप्रोच कर सकता है। वह इंडियन AD बैंक को इनवॉयस भेजेगा। इंडियन एडी बैंक रुपी वोस्त्रो अकाउंट को डेबिट करेगा और पैसा एक्सपोर्टर के रेगुलर बैंक में क्रेडिट कर देगा। जिसके बाद वह पैसा एक्सपोर्टर के बैंक अकाउंट में क्रेडिट कर देगा।
जब कोई इंडियन ट्रेडर इंपोर्ट करेगा, वह अपने रेगुलर बैंक को पेमेंट ट्रांसफर करेगा, जिसे वह एडी बैंक को ट्रांसफर कर देगा। एडी बैंक रुपी वोस्त्रो अकाउंट को क्रेडिट करेगा और दूसरे देश के एक्सपोर्टर को अथॉराइज्ड बैंक के जरिए पेमेंट कर दिया जाएगा। यह पमेंट लोकल करेंसी में होगा।
इस तरह जब तक यह व्यवस्था रहेगी, रेगुलर इंटरवल पर सेट्रल पूल ऑफ मनी से पैसा डेबिट और क्रेडिट होगा। जिस देश का बैलेंस ऑफ पेमेंट उसके फेवर में होगा वह यह तय करेगा कि पूल में बचे पैसे का क्या करना है। सहाय ने कहा कि यह फैसला लेने वाला देश यह पैसा दूसरे देश में इनवेस्ट कर सकता है। वह इस पैसे को दूसरे देश को रेमिट भी कर सकता है। यह दोनों देशों की करेंसी के एक्सचेंज रेट के हिसाब से होगा।
सहाय ने कहा कि इसी तरह का सिस्टम कुछ साल पहले ईरान के साथ शुरू किया गया था। लेकिन, 2019 में ईरान से तेल का इंपोर्ट बंद करने के इंडिया के फैसले के बाद यह सिस्टम बेकार हो गया। उन्होंने कहा कि हमने ईरान को ऑयल का बाकी पैसा रुपया में कनवर्ट कर दिया था और इंडियन एक्सपोर्टर को उस अकाउंट से पेमेंट किया जा रहा था।
RBI के नोट के मुताबिक, इस प्रोसेस की शुरुआत तब होती है, जब दूसरे देश का एक बैंक इंडिया में एडी बैंक को एप्रोच करता है। वह इंडिया में एडी बैंक से कहेगा कि हम रुपी सेटल्ड ट्रेड के लिए एक वोस्त्रो अकाउंट शुरू करना चाहते हैं। इसके बाद इंडियन बैंक मुंबई स्थित आरबीआई के सेंट्रल ऑफिस में फॉरेन एक्सचेंज डिपार्टमेंट के पास इस रिक्वेस्ट को भेजेगा। इंडियन बैंक को इस बात की जांच करनी होगी कि पार्टनर बैंक 'हाई रि्क और नॉन-कोऑपेरेटिव ज्यूडिक्शंस' का तो नहीं है। फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की लिस्ट से इसकी जानकारी मिल जाएगी।
एक्सपोर्टर इस सिस्टम के जरिए रुपया में एडवान्स पेमेंट ले सकता है। अगर एक्सपोर्टर विदेश में अपने पार्टनर से इंपोर्ट भी करता है तो एक्सपोर्टर इंपोर्ट पेएबल से एक्सपोर्ट रिसीवएबल्स को सेट-ऑफ भी कर सकेगा। फिर बाकी पैसा एक्सपोर्टर को मिल जाएगा। इस ट्रेड ट्रांजेक्शन को बैंक गारंटी का सपोर्ट हासिल होगा।