बढ़ते लड़ाई-झगड़े से देश के डूबने का भी खतरा, IMF ने सुझाई बचने की तरकीब भी

तेजी से बढ़ती महंगाई, सुस्त ग्रोथ, और बढ़ते कर्ज के साथ-साथ वैश्विक बाजारों को एक और वजह से तगड़ा झटका लग रहा है और वह वजह है-जियो पॉलिटिल रिस्क। जियोपॉलिटिकल रिस्क देखने में अप्रत्याशित और अनियंत्रित लगते हैं लेकिन आईएमएफ का मानना है कि इस लेकर देश और वित्तीय संस्थान बेहतर तरीके से तैयार हो सकते हैं और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए। जानिए इसे लेकर कैसी तैयारी होनी चाहिए?

अपडेटेड Apr 21, 2025 पर 8:22 PM
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आमतौर पर स्टॉक मार्केट को सरप्राइज नहीं पसंद आते हैं और भू-राजनीतिक तनावों के चलते तो निवेशकों को तगड़ा शॉक लगता है। हालांकि उभरते बाजारों को तो और अधिक झटका लगता है।

तेजी से बढ़ती महंगाई, सुस्त ग्रोथ, और बढ़ते कर्ज के साथ-साथ वैश्विक बाजारों को एक और वजह से तगड़ा झटका लग रहा है और वह वजह है-जियो पॉलिटिल रिस्क। डराने वाली बात ये है कि युद्ध, प्रतिबंध, कूटनीतिक गतिरोध और कारोबारी विवाद अब केवल कूटनीतिक बातचीत के मुद्दे नहीं रह गए हैं, बल्कि वे सीधे तौर पर एसेट की कीमतों को प्रभावित कर रहे हैं और वित्तीय प्रणाली पर दबाव डाल रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की लेटेस्ट ग्लोबल फाइनेंशियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार भू-राजनीतिक तनाव कई दशकों के रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक युद्धों और कारोबारी रुकावटों के चलते शेयरों की कीमतें गिर रही हैं और उधारी की लागत बढ़ रही है। इसका भी झटका सबसे अधिक उभरती बाजारों में दिख रहा है।

शेयरों को लग रहा करारा शॉक

आमतौर पर स्टॉक मार्केट को सरप्राइज नहीं पसंद आते हैं और भू-राजनीतिक तनावों के चलते तो निवेशकों को तगड़ा शॉक लगता है। हालांकि उभरते बाजारों को तो और अधिक झटका लगता है। IMF के मुताबिक किसी बड़ी भू-राजनीतिक घटना पर वैश्विक स्टॉक इंडेक्स आमतौर पर लगभग 1% गिरते हैं, लेकिन उभरते बाजारों में औसतन 2.5% के करीब गिरावट आती है। हालांकि जब यह तनाव अंतरराष्ट्रीय सैन्य संघर्ष जुड़ा होता है, तो इन अर्थव्यवस्थाओं में मासिक नुकसान 5% तक पहुंच जाता है। सैन्य संघर्षों का एसेट्स प्राइस पर असामान्य रूप से बड़ा और स्थायी प्रभाव होता है। निवेशकों के भरोसे और कारोबारी गतिविधि पर प्रभाव आमतौर पर उन देशों में अधिक गंभीर होता है जिनकी वैश्विक पूंजी तक पहुंच सीमित होती है, या संस्थान कमजोर होते हैं।


सरकारी उधारी भी हो जाती है महंगी

भू-राजनीतिक खतरों के बढ़ने पर सिर्फ इक्विटी मार्केट ही नहीं कांपता, बल्कि विकासशील देशों की सरकारों के लिए कर्ज जुटाना महंगा हो जाता है। हालांकि विकसित और विकासशील देशों पर इसके असर में बड़ा गैप दिखता है। किसी देश के डिफॉल्ट को लेकर इंश्योरेंस प्रीमियम के तौर पर सोवरेन क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप विकसित देशों के लिए 0.30 फीसदी तक बढ़ जाता है जबकि विकासशील देशों में यह बढ़ोतरी चार गुना तक हो सकती है। सैन्य संघर्षों के मामले में तो विकसित देशों में स्प्रेड 0.40 फीसदी और विकासशील देशों में एक महीने में ही 1.80 फीसदी तक की तेजी दिख जाती है। यह तेजी इस कारण आती है कि युद्ध से जुड़ी लागत बढ़ने के चलते बिना राजकोषीय संकट में पड़े सरकारें खर्च को बनाए रख सकती हैं या नहीं। आईएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक जीडीपी के मुकाबले सरकारी कर्ज के अधिक होने पर यह प्रीमियम और बढ़ता है।

बचाव के लिए क्या करना चाहिए देशों को?

जियोपॉलिटिकल रिस्क देखने में अप्रत्याशित और अनियंत्रित लगते हैं लेकिन आईएमएफ का मानना है कि इस लेकर देश और वित्तीय संस्थान बेहतर तरीके से तैयार हो सकते हैं और उन्हें ऐसा करना भी चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक बैंकों और रेगुलेटर्स को इन भू-राजनीतिक खतरों की पहचान, इनके असर और मैनेज करने के लिए पर्याप्त रिसोर्सेज लगाने चाहिए। उनके पास पर्याप्त पूंजी और लिक्विडिटी होनी चाहिए। रिपोर्ट के मुताबिक उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को अपने वित्तीय बाजारों को मजबूत करने और निगरानी में सुधार करने के प्रयास जारी रखने चाहिए। वहीं जिन देशों के रिजर्व और इंटरनेशनल होल्डिंग्स कम हैं, उन्हें झटकों को सहने के लिए तैयारी करनी चाहिए।

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First Published: Apr 21, 2025 8:22 PM

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