PMS AIF World के फाउंडर और सीईओ कमल मनोचा ने मनीकंट्रोल के साथ देश की इकोनॉमी, बाजार और देश दुनिया की स्थितियों पर लंबी बातचीत की। इस बातचीत में उन्होंने कहा कि यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी और कुछ एशियाई देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंध से इस तनाव मे कोई कमी नहीं आएगी।
गौरतलब है कि रूस और यूक्रेन की वजह से उत्पन्न जियोपॉलिटिकल तनाव ने पूरी दुनिया के बाजारों में पिछले कुछ दिनों के दौरान भारी दबाव बना है। कमल मनोचा को इन्वेस्टमेंट एडवाइजर के तौर पर 15 साल से ज्यादा का अनुभव है। उन्होंने कहा कि बाजार के वर्तमान गिरावट के दौर में ऐसी कंपनियों पर दांव लगाएं जिनकी ब्रांड इक्विटी काफी मजबूत है और जिनके साथ कंज्यूमर का गहरा लगाव है। ऐसी कंपनियां कीमत बढ़ोतरी का उपाय अपनाकर इन्फ्लेशन के दबाव से निपटने में ज्यादा सक्षम होंगी। समय बीतने के साथ मुद्रास्फीति का दबाव कम होगा और इस दौरान कीमतों में की गई बढ़ोतरी के चलते कंपनियों के मार्जिन में बढ़ोतरी आएगी।
यूक्रेन और रशिया के तनाव पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि यूक्रेन NATO संगठन में शामिल होना चाहता है। उसको लगता है कि ऐसा करके वह अपनी स्वतंत्रता को बचाए रखने में सफल रहेगा। रूस इसका विरोध कर रहा है। उन्होंने कहा कि रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों से इस पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने आगे कहा कि रूस 1.8 लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी है। इसके पास 600 अरब का विदेशी मुद्रा भंडार है। इसका अधिकांश रिजर्व गोल्ड के रूप में है। ग्लोबल इकोनॉमी के नजरिए से रूस काफी अहम है। यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल निर्यात करने वाला देश है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गैस उत्पादन करने वाला देश है।
रूस से उत्पादित करीब 40 फीसदी गैस का एक्सपोर्ट यूरोपियन देशों को होता है औऱ उसमें से भी 20 फीसदी गैस का वितरण यूक्रेन से जाने वाले गैस पाइपलाइन से होता है। ऐसे में इस लड़ाई का आर्थिक और गैर आर्थिक प्रभाव काफी गहरा हो सकता है और इस तनाव को सिर्फ बातचीत के जरिए ही हल किया जा सकता है और यही अकेला रास्ता है।
यूक्रेन-रूस के तनाव और इसके कारण कच्चे तेल की कीमतों में आई बढ़त पर बात करते हुए 2022 में कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर जाने की पूरी संभावना है जब तक क्रूड 100- 120 डॉलर के रेंज में रहता है तब तक भारत थोड़ी परेशानी के साथ इस स्थिति से निपटने में सक्षम रहेगा लेकिन अगर कच्चे तेल की कीमत 120 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर जाती है तब स्थितियां बिगड़ती नजर आएंगी और देश के व्यापार घाटे में भी बढ़ोतरी दिखेगी। अगर तेल की कीमतें 125 डॉलर प्रति बैरल पहुंच जाती हैं तो भारत का व्यापार घाटा 140 अरब डॉलर तक जा सकता है।
बाजार की हालिया उतार-चढ़ाव पर उन्होंने कहा कि मार्केट कैप का जियोपॉलिटिकल तनाव से कोई खास संबंध नहीं होता। लॉर्ज, मिड और स्मॉलकैप स्टॉक्स का चुनाव निवेशकों के निवेश अवधि पर ज्यादा निर्भर होता है। सामान्य तौर पर स्मॉलकैप में 7 साल से ज्यादा की अवधि को ध्यान में रखकर निवेश करना चाहिए। वहीं मिडकैप में 5-7 साल की अवधि सबसे बेहतर रिटर्न देने जाने वाली मानी जाती है जबकि लॉर्जकैप में 3-5 साल की निवेश अवधि काफी अच्छी मानी जाती है। लेकिन बाजार के ज्यादा वॉलेटाइल होने की स्थिति में लॉर्जकैप शेयरों पर ज्यादा फोकस करना चाहिए क्योंकि सामान्य तौर पर भारी उतार-चढ़ाव की स्थिति में इनमें कम गिरावट देखने को मिलती है। पिछले साल मिड और स्मॉलकैप ने लॉर्जकैप की तुलना में दोगुना रिटर्न दिया है ऐसे में अगर किसी निवेशक की निवेश अवधि 5 -10 साल की नहीं है तो उसको लॉर्ज कैप में निवेश करना चाहिए।