इस साल की शुरुआत से अब तक Nifty IT इंडेक्स 20 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई है। आईटी शेयरों में बिकवाली से 7 अप्रैल को दिन में यह लगभग 8 प्रतिशत तक लुढ़का लेकिन फिर 2.5 प्रतिशत की गिरावट के साथ बंद हुआ। एनालिस्ट्स को ग्लोबल ग्रोथ में कमी और अमेरिका में मांग में मंदी से और अधिक परेशानी पैदा होने का डर है। प्री-कोविड पीई मल्टीपल्स की तुलना में वैल्यूएशंस भी उच्च स्तर पर बनी हुई हैं।
गोल्डमैन सैक्स और यूबीएस जैसी ब्रोकरेज कंपनियों ने इंफोसिस, टीसीएस और एचसीएल टेक जैसी विभिन्न भारतीय आईटी कंपनियों के शेयर के लिए टारगेट प्राइस कम कर दिया है।
जेपी मॉर्गन ने एक नोट जारी कर कहा है कि वह अभी स्टॉक खरीदने की सिफारिश नहीं करती है। साथ ही यह भी कहा कि कंपनियों की ओर से कंजर्वेटिव गाइडेंस कीमतों को नीचे ले जाएगा, जिससे एक अच्छा एंट्री पॉइंट मिलेगा।
जेफरीज ने कहा है कि भारत पर अमेरिका का 26 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ बहुत अधिक नुकसान कराने वाला नहीं होगा। लेकिन बड़ी चिंता अमेरिकी अर्थव्यवस्था का निगेटिव आउटलुक होगी, जो भारतीय आईटी सर्विसेज और अन्य निर्यातकों के लिए नकारात्मक होगी। नोमुरा ने कहा है कि टैरिफ वॉर निकट भविष्य में भारत को प्रभावित कर सकती है, लेकिन इससे देश की अमेरिकी बाजार तक पहुंच बेहतर हो सकती है।
सभी IT कंपनियों पर एक जैसा नहीं होगा असर
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के सीनियर ग्रुप वाइस प्रेसिडेंट और रिसर्च हेड (रिटेल) सिद्धार्थ खेमका का कहना है कि सभी आईटी कंपनियों पर समान रूप से असर नहीं पड़ेगा। अमेरिका से 30-40 प्रतिशत रेवेन्यू वाली कंपनियों पर इसका असर पड़ेगा। ब्रोकरेज जियोजित ने अपनी रिपोर्ट में अमेरिकी बाजार में प्रमुख आईटी कंपनियों के एक्सपोजर को ट्रैक किया है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कौन सी कंपनी सबसे ज्यादा असुरक्षित हो सकती है।
शेयर बाजार के दिग्गज अंबरीश बालिगा का मानना है कि बाजार किसी भी दिशा में दांव लगाने से पहले कुछ समय लेगा। उन्होंने कहा, "बाजार अनिश्चितता से नफरत करता है और टैरिफ की घोषणा अनप्रेडिक्टेबिलिटी का एक नया मोर्चा खोलती है। इसलिए अभी आप अचानक से रिएक्शन देखेंगे कि ऑटो, आईटी, बड़े निर्यात वाली कंपनियां प्रभावित हो रही हैं। लेकिन अगले कुछ दिनों में, शेयर बाजार कोई भी डायरेक्शनल बेट लगाने से पहले यह देखने के लिए इंतजार करेगा कि देश कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।"
असली तस्वीर अभी सामने आना बाकी
मार्सेलस इनवेस्टमेंट मैनेजर्स के अरिंदम मंडल की भी यही राय है कि असली तस्वीर अभी सामने आनी बाकी है। यह एक कठोर नीतिगत बदलाव की तुलना में बातचीत के रुख की तरह अधिक दिखता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हमेशा टैरिफ का इस्तेमाल देशों को द्विपक्षीय वार्ता में शामिल करने के लिए एक टूल के रूप में किया है, खासकर इलेक्शन साइकिल के दौरान। इसलिए भले ही यह चिंताजनक लग रहा है, लेकिन संभावना है कि अगर दूसरा पक्ष साथ देता है, तो वह इसे कम करने की गुंजाइश छोड़ रहे हैं।" उन्होंने कहा।
हो सकता है कि सबसे खराब पॉइंट पार हो गया हो
व्हाइटओक कैपिटल मैनेजमेंट के फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर प्रशांत खेमका का कहना है कि वे मैक्रोइकानॉमिक आउटलुक और टॉप-डाउन आउटलुक का इस्तेमाल करके बड़े निवेश फैसले नहीं लेते हैं। CNBCTV18 के एडिटर्स राउंडटेबल में उन्होंने कहा कि यह भी हो सकता है कि सबसे खराब पॉइंट पार हो गया हो और अब आगे खबर बेहतर हो सकती है। उन्होंने कोविड के टाइम का उदाहरण देते हुए कहा कि जब टेक स्टॉक गिर रहे थे उस वक्त आम धारणा यह थी कि निवेशकों को सेक्टर से बाहर निकलना होगा।
खेमका के मुताबिक, अगर उन्होंने 5 साल पहले टेक सेक्टर में होल्डिंग बेचकर फार्मा में निवेश किया होता तो यह उस वक्त तार्किक लगता लेकिन वह सबसे विनाशकारी फैसला होता। इस तरह के मैक्रो फैसलों ने कुछ लोगों के पूरे करियर को बर्बाद कर दिया है। पांच साल पहले, आम सहमति यह थी कि फार्मा ही सबसे बेहतर जगह है, लेकिन कोविड के बाद से फार्मा सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले क्षेत्रों में से एक बन गया है।