Credit Cards

अमेरिकी सॉवरेन रेटिंग घटने से इंडिया सहित उभरते बाजारों में आएगा ज्यादा निवेश : Mark Mobius

मार्क मोबियस को इनवेस्टमेंट की दुनिया का तीन दशक से ज्यादा का अनुभव है। 2018 में अपनी इनवेस्टमेंट कंपनी Mobius Capital Partners शुरू करने से पहले तीन दशक से ज्यादा समय तक वह Templeton Emerging Market Group का नेतृत्व किया। उन्होंने कहा कि अमेरिका की सॉवरेन रेटिंग घटने के बाद इनवेस्टर्स डायवर्सिफिकेशन पर ज्यादा फोकस करेंगे। वे दूसरे मार्केट्स और एसेट्स में भी निवेश करना चाहेंगे

अपडेटेड Aug 03, 2023 पर 9:46 AM
Story continues below Advertisement
मोबियस ने डॉलर में आई नरमी के बारे में कहा कि पिछले साल के हाई लेवल से यह करीब 18 फीसदी गिर चुका है। यह बड़ी गिरावट है। इसका मतलब है कि यूरो सहित दूसरी करेंसीज में मजबूती आई है। उनका प्रदर्शन डॉलर के मुकाबले बेहतर रहा है।

अमेरिकी सॉवरेन रेटिंग घटने की खबर ने 2 अगस्त को इंडियन स्टॉक मार्केट की हवा निकाल दी। Sensex और Nifty में पिछले चार महीनों की सबसे बड़ी गिरावट आई। सवाल है कि अमेरिकी सॉवरेन रेटिंग का कितना असर ग्लोबल फाइनेंशियल और स्टॉक मार्केट पर पड़ेगा? इस सवाल का जवाब मार्क मोबियस ने दिया। मनीकंट्रोल से बातचीत में उन्होंने बताया कि विदेशी निवेशकों पर फिच के अमेरिकी सॉवरेन रेटिंग का किस तरह से असर पड़ेगा। मार्क मोबियस को इनवेस्टमेंट की दुनिया का तीन दशक से ज्यादा का अनुभव है। 2018 में अपनी इनवेस्टमेंट कंपनी Mobius Capital Partners शुरू करने से पहले तीन दशक से ज्यादा समय तक वह Templeton Emerging Market Group का नेतृत्व किया। इसलिए उनकी हर बात बहुत अहम होती है।

इमर्जिंग मार्केट्स पर बढ़ेगा इनवेस्टर्स का फोकस

मोबियस ने कहा कि अमेरिका की सॉवरेन रेटिंग घटने के बाद इनवेस्टर्स डायवर्सिफिकेशन पर ज्यादा फोकस करेंगे। वे दूसरे मार्केट्स और एसेट्स में भी निवेश करना चाहेंगे। वे अमेरिका से बाहर निवेश बढ़ाने के बारे में सोचेंगे। खासकर उभरते बाजारों और इंडिया पर उनका फोकस बढ़ेगा। उन्हें यह समझ आएगा कि अमेरिकी मार्केट पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता ठीक नहीं है। हालांकि, अमेरिकी मार्केट फिर भी दुनिया का सबसे बड़ा मार्केट बना रहेगा।


यह भी पढ़ें : नए निवेशकों को MF की इन चार कैटेगरी में निवेश करना चाहिए, HSBC MF की सलाह

अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कुछ करेंसी का प्रदर्शन बेहतर

डॉलर में आई नरमी के बारे में उन्होंने कहा कि पिछले साल के हाई लेवल से डॉलर करीब 18 फीसदी गिर चुका है। यह बड़ी गिरावट है। इसका मतलब है कि यूरो सहित दूसरी करेंसीज में मजबूती आई है। उनका प्रदर्शन डॉलर के मुकाबले बेहतर रहा है। यह बताता है कि इनवेस्टर्स को दूसरी करेंसीज में डायवर्सिफाय करने की जरूरत है। मैंने लोगों को अक्सर यह कहते सुना है-ओह, उभरते देशों की करेंसीज में हमेशा कमजोरी बनी रहती है। लेकिन, यह सही नहीं है। कुछ उभरते बाजारों की करेंसीज का प्रदर्शन डॉलर के मुकाबले अच्छा रहा है। इसलिए अमेरिकी सॉवरेन रेटिंग में आई कमी ने इनवेस्टर्स को अपनी स्ट्रेटेजी में बदलाव के बारे में सोचने का मौका दिया है।

करेंसी में कमजोरी निवेशकों के लिए हमेशा खराब नहीं

करेंसी में कमजोरी का इनवेस्टमेंट पर असर के बारे में मोबियस ने कहा कि निवेशकों के लिए करेंसी में कमजोरी हमेशा निगेटिव नहीं होती है। इंडिया की कई कंपनियां डॉलर, यूरो और दूसरी करेंसीज में एक्सपोर्ट करती हैं। ऐसे में अगर आपकी कमाई डॉलर या यूरो में हो रही है और आप गिरते रुपये में पेमेंट कर रहे हैं तो आपका मार्जिन बेहतर हो रहा है। इसलिए आपको इस बारे में अलग नजरिए से देखना होगा। अगर आप शेयरों में निवेश करते हैं तो करेंसी में कमजोरी हमेशा खराब नहीं होती है। मेरा मानना है कि इंडिया की ग्रोथ स्टोरी के आगे बढ़ने के साथ इंटरनेशनल लेवल पर रुपये की स्वीकार्यता बढ़ेगी। आपको रुपये को लेकर लोगों की सोच में बदलाव देखने को मिलेगा।

हिंदी में शेयर बाजार स्टॉक मार्केट न्यूज़,  बिजनेस न्यूज़,  पर्सनल फाइनेंस और अन्य देश से जुड़ी खबरें सबसे पहले मनीकंट्रोल हिंदी पर पढ़ें. डेली मार्केट अपडेट के लिए Moneycontrol App  डाउनलोड करें।