Market News: फंड मैनेजर्स बाजार में निवेश करते समय बरत रहे सावधानी, महंगे वैल्यूएशन और भारी वोलैटिलिटी से हो रही परेशानी

Market News: इक्विटी म्यूचुअल फंडों ने अगस्त में कैश बफर घटाकर 1.49 लाख करोड़ रुपये कर दिया, लेकिन महंगे वैल्यूएशन और बाजार की भारी वोलैटिलिटी को देखते हुए फंड मैनेजन सतर्कका की रुख बनाए हुए हैं

अपडेटेड Sep 15, 2025 पर 8:46 AM
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फंड मैनेजरों का यह सतर्क रुख अगस्त में बाजार में भारी उतार-चढ़ाव के बाद देखने को मिला है। इस अवधि में बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स और निफ्टी 1.6 फीसदी और 1.4 फीसदी गिरे थे। वहीं, बीएसई मिडकैप इंडेक्स में 2.5 फीसदी और स्मॉलकैप इंडेक्स 3.7 फीसदी की गिरावट देखने को मिली

Markets : एक्टिव इक्विटी म्यूचुअल फंडों ने अगस्त में अपने नकदी स्तर में मामूली कटौती की, हालांकि कुल मिलाकर इनका कैश बफर ऊंचे स्तर पर बना हुआ है। ये इस बात का संकेत हैं कि महंगे वैल्यूएशन और बाजार की भारी वोलैटिलिटी को देखते हुए फंड मैनेजर सतर्कका की रुख बनाए हुए हैं। ACE इक्विटीज के आंकड़ों से पता चलता है कि इक्विटी सेगमेंट में नकदी भंडार जुलाई के 1.57 लाख करोड़ रुपये से मामूली रूप से घटकर अगस्त में 1.49 लाख करोड़ रुपये पर रहा।

इन फंडों के पास है सबसे ज्यादा कैश बैलेंस

एसबीआई म्यूचुअल फंड के पास सबसे ज़्यादा इक्विटी कैश बैलेंस 23,600 करोड़ रुपये था,जो जुलाई में 27,750 करोड़ रुपये था। एचडीएफसी म्यूचुअल फंड और आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल के पास 22,613 करोड़ रुपये और 20,508 करोड़ रुपये की नकदी थी,जबकि एक महीने पहले यह 23,050 करोड़ रुपये और 20,914 करोड़ रुपये थी। बड़े कैश पाइल पर बैठे दूसरे बड़े फंड हाउसों में पीपीएफएएस, एक्सिस म्यूचुअल फंड, निप्पॉन इंडिया, कोटक महिंद्रा और डीएसपी के नाम शामिल हैं।


अनिवेशित कैश का स्तर सामान्य से ज़्यादा

मार्केट एनालिस्ट्स का कहना है कि फंडों के कैश बफर में गिरावट के बावजूद, इनके पास पड़े अनिवेशित कैश का स्तर सामान्य से ज़्यादा है। महंगे वैल्यूएशन और बाजार की भारी वोलैटिलिटी को देखते फंड मैनेजर बहुत अक्रामक होकर निवेश करने से बच रहे है। अर्निंग ग्रोथ और वैल्यूएशन निवेश रणनीति में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि नकदी रखने से वोलेटाइल मार्केट में लचीलापन मिलता है,लेकिन एक्सपर्ट्स यह भी आगाह कर रहे हैं कि अगर इक्विटी में तेज़ी लौटती है,तो इससे अपॉर्चुनिटी कॉस्ट बढ़ जाएगी।

क्या होती है अपॉर्चुनिटी कॉस्ट ?

बताते चलें कि अपॉर्चुनिटी कॉस्ट (Opportunity Cost), जिसे अवसर लागत या विकल्प लागत भी कहते हैं,उस लाभ को कहते हैं जिसे आप किसी विकल्प को दूसरे पर विकल्प पर प्राथमिकता देकर खो देते हैं। जब आपको कई विकल्पों में से एक को चुनना पड़ता है तो यह स्थिति सीमित संसाधनों की वजह से पैदा होती है। अवसर लागत सिर्फ़ पैसे से ही जुड़ी नहीं होती, बल्कि इसमें समय और ऊर्जा जैसे गैर-वित्तीय संसाधन का त्याग भी शामिल हो सकता है। सही निर्णय लेने के लिए हर विकल्प के लाभ और लागतों की तुलना करना जरूरी होता है, ताकि आप अपने संसाधनों का सबसे अच्छा इस्तेमाल कर सकें।

महंगे वैल्यूएशन और वोलैटिलिटी ने बढ़ाई चिंता

फंड मैनेजरों का यह सतर्क रुख अगस्त में बाजार में भारी उतार-चढ़ाव के बाद देखने को मिला है। इस अवधि में बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स और निफ्टी 1.6 फीसदी और 1.4 फीसदी गिरे थे। वहीं, बीएसई मिडकैप इंडेक्स में 2.5 फीसदी और स्मॉलकैप इंडेक्स 3.7 फीसदी की गिरावट देखने को मिली।

अगस्त में गिरावट से पहले, नकदी होल्डिंग अप्रैल में 1.73 लाख करोड़ रुपये से कम होकर मई में 1.65 लाख करोड़ रुपये और जून में 1.50 लाख करोड़ रुपये हो गई थी। एक्सपर्ट्स का मानना ​​है कि शुरुआती गिरावट का कारण ब्लॉक डील और आईपीओ में किया गया निवेश था।

 

 

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First Published: Sep 15, 2025 8:46 AM

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