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दूसरी तिमाही में BFSI,ऑटो और फार्मा कंपनियों के नतीजे रहेंगे मजबूत, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से खतरा

कैपिटल मार्केट का 16 साल से ज्यादा का अनुभव रखने वाले दीपक का ये भी कहना है कि ग्लोबल कारोबार में मंदी के चलते केमिकल और सेक्टर के नतीजे कमजोर रह सकते हैं। वहीं, चाइना में गिरती कीमतों और अप्रत्याशित मौसमी पैटर्न के कारण जेनेरिक दवाओं से जुड़े एग्रोकेमिकल सेगमेंट को कीमतों में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा दूसरी तिमाही में आईटी कंपनियों के नतीजे भी कमजोर रह सकते हैं

अपडेटेड Oct 10, 2023 पर 1:13 PM
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अगर ईरान इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष में हमास की मदद करता दिखाता है और उनके तेल निर्यात पर नए प्रतिबंध लगाए जाते हैं तो पहले से ही तंग आपूर्ति के माहौल में कच्चे तेल की कीमतें और ज्यादा बढ़ सकती हैं

वित्त वर्ष 2024 की दूसरी तिमाही में बीएफएसआई (बैंकिंग, वित्तीय सेवाएं और बीमा), ऑटो (लो बेस के कारण) और फार्मा कंपनियों के नतीजे अच्छे रह सकते हैं। इसके अलावा इस अवधि में खेल आयोजनों, जी20, उपभोक्ता कंपनियों के बढ़ते मीडिया खर्च और राजनीतिक विज्ञापनों के चलते मीडिया कंपनियों के नतीजे भी बेहतर रह सकते हैं। ये बातें मनीकंट्रोल को दिए एक साक्षात्कार में एचडीएफसी सिक्योरिटीज के रिटेल रिसर्च हेड दीपक जसानी ने कही हैं।

कैपिटल मार्केट का 16 साल से ज्यादा का अनुभव रखने वाले दीपक का ये भी कहना है कि ग्लोबल कारोबार में मंदी के चलते केमिकल और टेक्सटाइल कंपनियों के नतीजे कमजोर रह सकते हैं। वहीं, चाइना में गिरती कीमतों और अप्रत्याशित मौसमी पैटर्न के कारण जेनेरिक दवाओं से जुड़े एग्रोकेमिकल सेगमेंट को कीमतों में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा दूसरी तिमाही में आईटी कंपनियों के नतीजे भी कमजोर रह सकते हैं।

क्या आपको लगता है कि इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष इक्विटी बाजारों के लिए एक बड़ा जोखिम है? इसके अलावा, क्या इस संघर्ष से तेल की कीमतें बढ़ेंगी? इसके जवाब में दीपक ने कहा कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चे तेल का आयातक है। अगर ईरान इस संघर्ष में हमास की मदद करता दिखाता है और उनके तेल निर्यात पर नए प्रतिबंध लगाए जाते हैं तो पहले से ही तंग आपूर्ति के माहौल में कच्चे तेल की कीमतें और ज्यादा बढ़ सकती हैं।


जब भी तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो अक्सर हर चीज की कीमतें बढ़ जाती हैं। इससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है और आर्थिक विकास धीमा हो सकता है। इससे ब्याज दरें भी लंबे समय तक ऊंची रह सकती हैं। बढ़ती ऊर्जा लागत के कारण कई क्षेत्र पहले से ही दबाव में हैं। आगामी चुनावों को देखते हुए, कच्चे तेल की कीमतों में बढ़त के बावजूद ईंधन (पेट्रोल, डीजल आदि) की कीमतों को बढ़ाया नहीं जा सकता है। एक सीमा तक ही महंगाई के असर को नियंत्रित किया जा सकता है।

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महंगाई और व्यापार घाटे पर पड़ने वाले प्रभाव के कारण कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से भारतीय बाजार भी नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकते हैं। मध्य पूर्व का हालिया संघर्ष और आगामी राज्य चुनावों के असंतोषजनक नतीजे इस नकारात्मक प्रभाव को और बढ़ा सकते हैं। हालंकि पिछले 7 चुनावों के आंकड़ों के आधार पर देखें तो भारतीय बाजार चुनावी साल के पहले के 12 महीनों और बाद के 12 महीनों में अच्छा प्रदर्शन करते दिखे हैं।

 

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