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माइक्रो-कैप शेयरों में म्यूचुअल फंड्स का निवेश काफी तेजी से बढ़ा, क्या आपको भी लगाना चाहिए इन पर दांव ?

प्राइम एमएफ डेटाबेस के पास उपलब्ध आंकड़ों से पता चला है कि सभी म्यूचुअल फंड योजनाओं में माइक्रो-कैप शेयरों की वैल्यू सितंबर 2022 में 45482 करोड़ रुपये थी। जो अगस्त 2023 में बढ़कर 60229 करोड़ रुपये हो गई है। इस अवधि के दौरान इसमें 32 फीसदी की बढ़त हुई है। यह बढ़त इस अवधि के दौरान छोटी और मझोली कंपनियों के शेयर के कीमतों में आई तेज बढ़त को भी दर्शाता है

अपडेटेड Sep 25, 2023 पर 6:25 PM
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माइक्रो-कैप की सेबी की तरफ से कोई परिभाषा तय नहीं की गई है। लेकिन कुल मार्केट कैप के मामले में निफ्टी 500 के बाद आने वाली कंपनियों को आमतौर पर माइक्रो-कैप माना जाता है

महंगे वैल्यू्शन के बावजूद, भारतीय म्यूचुअल फंडों का माइक्रो-कैप शेयरों में निवेश काफी तेजी से बढ़ा है। माइक्रो-कैप में म्यूचुअल फंडों का निवेश सभी इक्विटी एसेट्स में हुई की बढ़त की तुलना में काफी तेज गति से बढ़ा है। जिससे म्यूचुअल फंडों के रिस्क से जुड़ी चिंता बढ़ गई है। प्राइम एमएफ डेटाबेस के पास उपलब्ध आंकड़ों से पता चला है कि सभी म्यूचुअल फंड योजनाओं में माइक्रो-कैप शेयरों की वैल्यू सितंबर 2022 में 45482 करोड़ रुपये थी। जो अगस्त 2023 में बढ़कर 60229 करोड़ रुपये हो गई है। इस अवधि के दौरान इसमें 32 फीसदी की बढ़त हुई है। यह बढ़त इस अवधि के दौरान छोटी और मझोली कंपनियों के शेयर के कीमतों में आई तेज बढ़त को भी दर्शाता है।

इसी अवधि के दौरान 46.33 लाख करोड़ रुपये की म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री की एसेट अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) 22 फीसदी बढ़कर 22.07 लाख करोड़ रुपये हो गई। बता दें कि निवेश करते समय, म्यूचुअल फंड्स को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) द्वारा 2017 में निर्धारित मार्केट कैप क्लॉसिफिकेशन का पालन करना होता। लार्ज-कैप में मार्केट कैप के लिहाज से पहली 100 कंपनियां आती हैं। वहीं मिडकैप में मार्केटकैप के लिहाज से 101वीं से 250वीं कंपनी तक आती है। जबकि स्मॉल-कैप मार्केट कैप के लिहाज से 251वीं कंपनी से आगे की कंपनियां आती। यह सूची इंडस्ट्री बॉडी और एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (एएमएफआई) द्वारा वर्ष में दो बार अपडेट की जाती है।

हालांकि माइक्रो-कैप की सेबी की तरफ से कोई परिभाषा तय नहीं की गई है। लेकिन कुल मार्केट कैप के मामले में निफ्टी 500 के बाद आने वाली कंपनियों को आमतौर पर माइक्रो-कैप माना जाता है। जून 2023 में AMFI की तरफ से जारी मार्केट-कैप सूची के मुताबिक रोलेक्स रिंग्स लिमिटेड का निफ्टी 500 में मार्केट-कैप सबसे कम 5225.98 करोड़ रुपये था।


पिछले एक साल की अवधि में निफ्टी 100 टोटल रिटर्न इंडेक्स (टीआरआई) में 10 फीसदी की तेजी देखने को मिली है। इसकी तुलना में निफ्टी माइक्रो-कैप 250 टीआरआई ने 44 फीसदी और निफ्टी स्मॉल-कैप 250 टीआरआई ने 28 फीसदी से ज्यादा रिटर्न दिया है। माइक्रो-कैप शेयरों में आई इस तेजी के साथ प्राइस टू अर्निंग रेसियो (पी/ई) के आधार पर माइक्रो-कैप का वैल्यूएशन महंगा हो गया है। हाई पी/ई का मतलब यह हो सकता है कि किसी शेयर की कीमत उसकी कमाई की तुलना में अधिक है और संभवतः वह ओवरवैल्यूड है।

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बाजार जानकारों का कहना है कि मध्यम से लंबी अवधि में माइक्रो-कैप शेयरों ने निफ्टी 50 इंडेक्स से काफी बेहतर प्रदर्शन किया है। मध्यम से लंबी अवधि में माइक्रो-कैप शेयर सभी इक्विटी एसेट्स की तुलाना में बेहतर प्रदर्शन करते दिखे हैं और शानदार वेल्थ क्रिएटर साबित हुए हैं। लेकिन अब ये शेयर महंगे दिख रहे हैं। ऐसे में इनमें निवेश करते समय सावधान रहने की जरूरत है

एक डिस्काउंट ब्रोकर एसएएस ऑनलाइन (SAS Online) के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) श्रेय जैन (Shrey Jain) का कहना है कि हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि माइक्रो-कैप सेगमेंट का वैल्यूएशन महंगा हो गया है। इस बात को ध्यान में रखते हुए निवेशकों को इस सेक्टर में निवेश करते समय सावधानी बरतनी चाहिए। इस स्पेस में कुछ ऐसे स्टॉक हैं जो अपने सही भाव से अधिक कीमतों पर कारोबार करते दिख रहे हैं।

 

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