2020 से 2030 के दशक में भी जारी रह सकती है मंदी, वर्ल्ड बैंक ने दी चेतावनी- सुस्त ग्रोथ रेट के कारण 2020-30 होगा 'Lost Decade'
वर्ल्ड बैंक की की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक EMDEs में चल रही मंदी का दौर 2020 से 2030 के दशक में भी जारी रह सकता है और यदि इसने अपनी चपेट में विकसित अर्थव्यवस्थाओं को भी ले लिया, तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है
यदि दुनिया की सभी सरकारें इस दुश्चक्र से निकलना चाहती हैं, तो उन्हें मिलकर नीतिगत स्तर पर प्रयास करने होंगे
कोरोना महामारी के आने के साथ 2020 के दशक ने पूरी दुनिया में आर्थिक गतिविधियों को अभूतपूर्व झटका दिया। लेकिन जिस तेजी से दुनिया के भर के केंद्रीय बैंकों ने आम लोगों से लेकर उद्योग जगत तक को राहत पहुंचाने के लिए अपनी तिजोरी खोली, उससे 2022 आते-आते ऐसा लगने लगा कि बुरा दौर पीछे छूट गया है और दुनिया की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट गई है। भारत के नेतृत्व में अमेरिका, यूरोप और यहां तक कि कई अफ्रीकी देशों ने भी कोविड से पहले की वृद्धि दर के करीब पहुंचना शुरू कर दिया था।
लेकिन तभी 2020-21 के दौरान हुई क्वांटिटेटिव ईजिंग (सेंट्रल बैंकों द्वारा आसान दरों व शर्तों पर बाजार में पूंजी उपलब्ध कराना) और 2022 की शुरुआत में यूक्रेन पर रूस के हमले के असर से अमेरिका और यूरोप के कई देशों में महंगाई दर ने दशकों का अपना उच्चतम स्तर तोड़ना शुरू कर दिया। भारत में भी महंगाई रिजर्व बैंक के कम्फर्ट रेंज से ऊपर गई और फिर फेडरल बैंक की अगुवाई में पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू की। ब्याज दरों का बढ़ना मतलब ग्रोथ पर लगाम।
पिछले करीब 3 साल की इस कहानी के बाद, अब पूरी दुनिया के नीति निर्माताओं, उद्योगों और अर्थशास्त्र के विद्यार्थियों के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि ग्रोथ का सामान्य दौर वापस कब लौटेगा। विश्व बैंक की हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की गई है। यह रिपोर्ट 2015 में किए गए एक अध्ययन का अगला चरण है, जिसमें 2010-15 के दौरान इमर्जिंग मार्केट्स एंड डेवलपिंग इकोनॉमीज (EMDEs) में व्याप्त मंदी के कारणों की छानबीन की गई थी। इस स्टडी का यह निष्कर्ष था कि ये अर्थव्यवस्थाएं कमजोरी के एक दीर्घकालिक दुश्चक्र में फंस चुकी हैं। हालांकि इस अध्ययन का निष्कर्ष यह भी था कि इन अर्थव्यवस्थाओं में जो मंदी चल रही है, उसका एक कारण साइक्लिकल है और उसे सही नीतिगत हस्तक्षेप से ठीक किया जा सकता है।
अब ताजा रिपोर्ट के मुताबिक EMDEs में चल रही मंदी का दौर 2020 से 2030 के दशक में भी जारी रह सकता है और यदि इसने अपनी चपेट में विकसित अर्थव्यवस्थाओं को भी ले लिया, तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है। “फॉलिंग लॉन्ग टर्म ग्रोथ प्रॉस्पेक्ट्स: ट्रेंड्स, एक्सपेक्टेशंस एंड पॉलिसीज” (दीर्घकालिक ग्रोथ के कम होते अवसर: रुझान, अपेक्षाएं और नीतियां) के संपादकों एम. आइहान कोजे और फ्रांजिस्का ऑनसोर्ज के मुताबिक, “पिछले दो दशकों के अनुभव ने बताया है कि वित्तीय संकट और मंदी ग्रोथ को दूरगामी चोट पहुंचाते हैं; यह ग्रोथ के लिए आवश्यक मुख्य कारकों में पहले से ही मौजूद कमजोरी को तेज गति से और बढ़ाते हैं।
इसके साथ ही इस परिस्थिति से निपटने में जो नीतिगत हस्तक्षेप जरूरी है, उसमें और देरी हो सकती है जैसा कि हमने पिछले दशक में भी देखा है। इन सब कारणों से 2020 का दशक हमें एक बार फिर निराश कर सकता है।”
विश्व बैंक ने दुनिया भर की सरकारों को इस आसन्न संकट से निपटने का जो समाधान बताया है, उसके मुताबिक पिछले दशक की औसत वृद्धि दर को वापस हासिल करने के लिए सारे देशों की सरकारों को मिलकर नीतिगत स्तर पर भगीरथ प्रयास करने होंगे। राष्ट्रीय स्तर पर जहां सरकारों को हर छोटे-बड़े आर्थिक क्षेत्रों से संबद्ध नीतियों के मामले में अपने स्वयं के पिछले 10-वर्षों के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को दुहराना होगा, वहीं ग्रोथ से जुड़ी अनेक चुनौतियों की अंतरराष्ट्रीय प्रकृति को देखते हुए नीतिगत पहलों में ज्यादा मजबूत सहयोग, व्यापक फाइनेंसिंग और निजी क्षेत्र से पूंजी का निवेश बढ़ाने पर नए सिरे से जोर की आवश्यकता होगी।
पिछले एक दशक से ज्यादा में वैश्विक अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर लगातार धीमी पड़ी है। जहां 2010 में वैश्विक अर्थव्यवस्था 4.5% की दर से बढ़ रही थी, वहीं 2023 में इसका प्रोजेक्शन 1.7% रह गया है। और ऐसा नहीं है कि वैश्विक वृद्धि दर में दिख रही यह गिरावट सिर्फ चीन, अमेरिका, भारत और यूरोपीय संघ की देन है। इसका विस्तार वास्तव में व्यापक है। विकसित देशों के 80% और EMDEs के 75% में 2011-21 के दौरान औसत सालाना ग्रोथ रेट 2000-11 के दौरान औसत सालाना ग्रोथ रेट की तुलना में कम रही है।
चिंता की बात यह है कि ग्रोथ रेट में इस गिरावट को सिर्फ एक या दो घटनाओं से नहीं जोड़ा जा सकता। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रोथ में यह कमी आर्थिक विकास के लगभग सभी बुनियादी कारकों में कमजोरी आने से आ रही है। इनमें एक महत्वपूर्ण कारक अंतरराष्ट्रीय व्यापार है, जो 2010-19 के दौरान आर्थिक वृद्धि दर के बराबर दर से बढ़ा है, जबकि 1990-2011 के दो दशकों में इसकी वृद्धि दर कुल वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर से दोगुनी थी।
महामारी के पहले शुरू हुई मंदी के असर से EMDEs में 2022-24 के दौरान निवेश (निजी और सरकारी मिलाकर ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन) में सिर्फ 3.5% की वृद्धि का अनुमान जताया गया है, जो 2000-21 के दौरान निवेश में हुई वृद्धि का लगभग आधा है। तीसरा महत्वपूर्ण कारक कार्यशील उम्र की जनसंख्या है। पिछले कुछ दशकों तक लगातार बढ़ने के बाद 2017 में विश्व की कुल जनसंख्या के हिस्से के तौर पर वर्किंग एज पॉपुलेशन अपने निम्नतम स्तर पर पहुंच गई है।
इन तमाम आर्थिक मानकों के कमजोर पड़ने का साइड-इफेक्ट यह हुआ है कि पिछले एक दशक में स्वास्थ्य, शिक्षा और गरीबी उन्मूलन की गति धीमी पड़ी है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा वैश्विक वृद्धि दर पर 2030 तक एक्स्ट्रीम पॉवर्टी (1.90 डॉलर प्रतिदिन से कम पर जीवन व्यतीत करने वाले) का स्तर 3% तक लाने का लक्ष्य हासिल करना बहुत मुश्किल है। जाहिर है कि यदि दुनिया की सभी सरकारें इस दुश्चक्र से निकलना चाहती हैं, तो उन्हें मिलकर नीतिगत स्तर पर प्रयास करने होंगे। और यदि यह न हो सका तो विश्व के आर्थिक इतिहास में 2020-30 एक ‘लॉस्ट डिकेड’ के रूप में दर्ज हो जाएगा।