सेंसेक्स (Sensex) और निफ्टी (Nifty) नई ऊंचाई पर पहुंच चुके हैं, लेकिन रुपया कमजोरी के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है। इस विरोधाभास की कई वजहें हो सकती हैं, जिनमें एक वजह लिक्विडिटी डेफिसिट का 5 साल के निचले स्तर पर पहुंचना है। ऐसी स्थिति में रिजर्व बैंक (RBI) डॉलर बेचकर फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में दखल नहीं दे सकता है। इसके अलावा, ऑयल और गोल्ड के इंपोर्टर्स की तरफ से डॉलर की जबरदस्त मांग के कारण भी ट्रेड डेफिसिट बढ़ रहा है।
बहरहाल, मार्केट एनालिस्ट भारतीय बाजार को लेकर पॉजिटिव संकेत दे रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि विदेशी निवेशकों की बाजार में वापसी हो सकती है। इन अनुमानों को ध्यान में रखते हुए ट्रेडर्स ने रुपये पर बारीक निगाह बना रखी है और उन्हें डॉलर के मुकाबले रुपया 83.00 से 83.40 के बीच रहने की उम्मीद है। डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी से कई सेक्टरों पर अच्छा और बुरा असर देखने को मिल सकता है। ऐसे में यहां कुछ उदाहरण पेश किए जा रहे हैं:
रुपये में कमजोरी से विदेशों में हमारी खरीदारी की क्षमता कम होती है, जिससे इंपोर्ट किए जाने वाले सामान और सेवाओं की लागत बढ़ जाती है। इस असर को कम करने के लिए भारत को इंपोर्ट के विकल्प के तौर पर मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना होगा। जानकारों का मानना है कि महंगे इंपोर्ट का विकल्प तैयार कर आर्थिक मोर्चे पर बेहतर नतीजे हासिल लिए जा सकते हैं।
चॉइस ब्रोकिंग (Choice Broking) के एनालिस्ट अक्षत गर्ग (Akshat Garg) के मुताबिक, रुपये में कमजोरी से इंपोर्टेड इनफ्लेशन की गुंजाइश बनती है, खास तौर पर ऑयल जैसी कमोडिटी के जरिये ऐसा होता है और इसका असर महंगाई दर पर पड़ता है। इससे ट्रेड का संतलुन भी बिगड़ता है और करेंट एकाउंट डेफिसिट में बढ़ोतरी की आशंका रहती है। हालांकि, कमजोर रुपये की वजह से विदेशी निवेशक बेहतर रिटर्न के लिए आकर्षित हो सकते हैं, लेकिन मुद्रा की स्थिरता को लेकर उनकी चिंता बनी रहती है।
कमजोर रुपया एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने में कारगर है, क्योंकि इससे विदेशी बाजारों में लागत कम हो जाती है। ऐसी स्थिति में आईटी, टेक्सटाइल और मैन्युफैक्चरिंग जैसी इंडस्ट्रीज में मांग बढ़ सकती है। मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ 7.6 पर्सेंट रही। जानकारों का मानना है कि यह ट्रेंड इन सेक्टरों के एक्सपोर्ट में शानदार बढ़त की संभावना की तरफ इशारा करता है। डॉलर के मुकाबले कमजोरी का फायदा टेक्सटाइटल, टूरिज्म, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, फार्मास्युटिकल्स और कमोडिटीज व नेचुरल रिसोर्सेज आदि सेक्टरों को मिलता है।
जिन सेक्टरों को रुपये में कमजोरी से नुकसान होता है, उनमें इंपोर्ट पर निर्भर रहने वाली इंडस्ट्रीज शामिल हैं। इनमें इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मशीनरी सेक्टर भी शामिल है, जो बढ़ती लागत के कारण मुश्किल दौर से गुजर रहा है। इसके अलावा, कंज्यूमर गुड्स और ऑयल एंड गैस सेक्टरों को भी रुपये की कमजोरी से नुकसान होता है। रुपये में कमजोरी से कंज्यूमर गुड्स का प्रोडक्शन खर्च बढ़ जाता है, जिसका असर उत्पादकों और खरीदार, दोनों पर पड़ता है। तेल की इंपोर्ट कॉस्ट बढ़ने से उन इंडस्ट्रीज पर असर पड़ता है, जो ट्रांसपोर्टेशन पर निर्भर हैं।