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रुपये में रिकॉर्ड कमजोरी: किन सेक्टरों को होगा फायदा और किन सेक्टरों को झेलना पड़ेगा नुकसान

रुपये में कमजोरी से विदेशों में हमारी खरीदारी की क्षमता कम होती है, जिससे इंपोर्ट किए जाने वाले सामान और सेवाओं की लागत बढ़ जाती है। इस असर को कम करने के लिए भारत को इंपोर्ट के विकल्प के तौर पर मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना होगा। जानकारों का मानना है कि महंगे इंपोर्ट का विकल्प तैयार कर आर्थिक मोर्चे पर बेहतर नतीजे हासिल लिए जा सकते हैं

MoneyControl Newsअपडेटेड Dec 05, 2023 पर 6:17 PM
रुपये में रिकॉर्ड कमजोरी: किन सेक्टरों को होगा फायदा और किन सेक्टरों को झेलना पड़ेगा नुकसान
कमजोर रुपया एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने में कारगर है, क्योंकि इससे विदेशी बाजारों में सामान बेचने की लागत कम हो जाती है।

सेंसेक्स (Sensex) और निफ्टी (Nifty) नई ऊंचाई पर पहुंच चुके हैं, लेकिन रुपया कमजोरी के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है। इस विरोधाभास की कई वजहें हो सकती हैं, जिनमें एक वजह लिक्विडिटी डेफिसिट का 5 साल के निचले स्तर पर पहुंचना है। ऐसी स्थिति में रिजर्व बैंक (RBI) डॉलर बेचकर फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में दखल नहीं दे सकता है। इसके अलावा, ऑयल और गोल्ड के इंपोर्टर्स की तरफ से डॉलर की जबरदस्त मांग के कारण भी ट्रेड डेफिसिट बढ़ रहा है।

बहरहाल, मार्केट एनालिस्ट भारतीय बाजार को लेकर पॉजिटिव संकेत दे रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि विदेशी निवेशकों की बाजार में वापसी हो सकती है। इन अनुमानों को ध्यान में रखते हुए ट्रेडर्स ने रुपये पर बारीक निगाह बना रखी है और उन्हें डॉलर के मुकाबले रुपया 83.00 से 83.40 के बीच रहने की उम्मीद है। डॉलर के मुकाबले रुपये में कमजोरी से कई सेक्टरों पर अच्छा और बुरा असर देखने को मिल सकता है। ऐसे में यहां कुछ उदाहरण पेश किए जा रहे हैं:

रुपये में कमजोरी से विदेशों में हमारी खरीदारी की क्षमता कम होती है, जिससे इंपोर्ट किए जाने वाले सामान और सेवाओं की लागत बढ़ जाती है। इस असर को कम करने के लिए भारत को इंपोर्ट के विकल्प के तौर पर मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना होगा। जानकारों का मानना है कि महंगे इंपोर्ट का विकल्प तैयार कर आर्थिक मोर्चे पर बेहतर नतीजे हासिल लिए जा सकते हैं।

चॉइस ब्रोकिंग (Choice Broking) के एनालिस्ट अक्षत गर्ग (Akshat Garg) के मुताबिक, रुपये में कमजोरी से इंपोर्टेड इनफ्लेशन की गुंजाइश बनती है, खास तौर पर ऑयल जैसी कमोडिटी के जरिये ऐसा होता है और इसका असर महंगाई दर पर पड़ता है। इससे ट्रेड का संतलुन भी बिगड़ता है और करेंट एकाउंट डेफिसिट में बढ़ोतरी की आशंका रहती है। हालांकि, कमजोर रुपये की वजह से विदेशी निवेशक बेहतर रिटर्न के लिए आकर्षित हो सकते हैं, लेकिन मुद्रा की स्थिरता को लेकर उनकी चिंता बनी रहती है।

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