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तीन साल में सबसे कम गिरा रुपया, वैश्विक झटके से ऐसे संभली अपनी करेंसी

Rupee in FY24: मजबूत डॉलर और तेल के बढ़ते भाव के बावजूद रुपये ने अपनी मजबूती बनाए रखा। इस वित्त वर्ष 2024 में रुपया 1.5 फीसदी कमजोर हुआ लेकिन पिछले तीन साल की बात करें तो यह सबसे बेहतर साल रहा। जानिए रुपये पर किन वजहों से दबाव बना और इससे रुपया संभला कैसे? इसके अलावा इकनॉमिस्ट्स का रुझान क्या है

अपडेटेड Mar 29, 2024 पर 9:06 AM
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वित्त वर्ष 2025 के आखिरी तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 82 रुपये के भाव पर रह सकता है।

Rupee in FY24: इस वित्त वर्ष 2024 में कारोबार समाप्त हो चुका है। इसमें अमेरिकी डॉलर की तुलना में रुपया 1.5 फीसदी कमजोर हुआ लेकिन पिछले तीन साल की बात करें तो यह सबसे बेहतर साल रहा। वित्त वर्ष 2023 में तो रुपया करीब 8 फीसदी टूटा था। इसके अलावा वित्त वर्ष 2024 में रुपया बाकी विकासशील देशों की करेंसी के मुकाबले अधिक मजबूत रही। मजबूत डॉलर और तेल के बढ़ते भाव के बावजूद रुपये ने अपनी मजबूती बनाए रखा। इस वित्त वर्ष 2024 के आखिरी कारोबारी दिन यानी 28 मार्च को एक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले यह 83.40 रुपये के भाव पर बंद हुआ।

कच्चे तेल और डॉलर ने मारी कितनी छलांग?

दिसंबर के निचले स्तर से कच्चा तेल करीब 19 फीसदी चढ़ चुका है। इसके अलावा डॉलर इंडेक्स भी इस दौरान 3.5 फीसदी उछलकर 105 पर पहुंच गया। कच्चे तेल के भाव उछलने पर भारत को काफी झटका लगता है क्योंकि यह अपनी जरूरत का करीब 87 फीसदी हिस्सा आयात करता है। तेल की ऊंचाई कीमतों से देश के चालू खाते का घाटा बढ़ता है और इससे करेंसी पर दबाव बनता है।


फिर Rupee को कैसे मिला सपोर्ट

रूस से सस्ते तेल आयात, सर्विस सेक्टर के मजबूत निर्यात और विदेशों से भेजे गए पैसों के तगड़े प्रवाह ने तेल की कीमतों में अस्थिरता को कम कर दिया है। वित्त वर्ष 2024 में भारत ने अपने कच्चे तेल के आयात का 35% से अधिक हिस्सा रूस से आयात किया। भारत के कुल आयात में रूसी कच्चे तेल की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2022 में मात्र 2 फीसदी और वित्त वर्ष 2023 में 20 फीसदी थी। इसके अतिरिक्त इक्विटी और डेट मार्केट्स में 4000 करोड़ डॉलर की विदेशी आवक से भी रुपये को सपोर्ट मिला।

एक्सपर्ट्स का क्या कहना है?

यूबीएस के इकनॉमिस्ट्स का मानना ​​है कि बाकी सभी फैक्टर्स में कोई बदलाव न हो तो वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल का भाव 90 डॉलर तक पहुंच जाए, भारत पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। वहीं यह इस लेवल से जितना नीचे आएगा, उतना ज्यादा अच्छा होगा। ब्रेंट फिलहाल 87 डॉलर के आसपास है। यूबीएस का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025 के आखिरी तक अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 82 रुपये के भाव पर रह सकता है। पहले यह अनुमान 84 रुपये का था।

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