सेबी शॉर्ट सेलिंग और सिक्योरिटीज लेंडिंग एंड बॉरोइंग (एसएलबी) फ्रेमवर्क की समीक्षा करेगा। इन दोनों से जुड़े नियम करीब दो दशक पहले बनाए गए थे। सेबी के चेयरमैन तुहिन कांत पांडेय ने यह जानकारी दी। सीएनबीसी-टीवी18 के ग्लोबल लीडरशिप समिट 2025 में पांडेय ने कहा कि शॉर्ट सेलिंग के नियम 2007 में आए थे, जबकि एसएलबी के 2008 में आए थे। तब से इन दोनों में ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है।
शॉर्ट सेलिंग के नियम 2007 में आए थे
Tuhin Kanta Pandey ने कहा, "2007 में आए शॉर्ट सेलिंग के फ्रेमवर्क में तो कोई बदलाव नहीं आया है। एसएलबी का फ्रेमवर्क 2008 में आया था। इनमें कुछ बार बदलाव हुए हैं। लेकिन, यह सेगमेंट दूसरे सेगमेंट की तरह विकसित नहीं हुआ है। हम जल्द एक वर्किंग ग्रुप बनाने वाले हैं, जो शॉर्ट सेलिंग और एसएलबी फ्रेमवर्क पर व्यापक विचार करेगा।"
Naked Short Selling की इजात नहीं
सेबी के शॉर्ट सेलिंग के 2007 के फ्रेमवर्क के मुताबिक, Naked Short Selling पर पूरी तरह से रोक है। नेकेड शॉर्ट सेलिंग का मतलब ऐसी स्थति से है, जब इनवेस्टर उधार लिए बगैर शेयरों को सेल करता है। उसे सेटलमेंट के वक्त उधार लिए गए शेयरों की डिलीवरी करनी पड़ती है। इस फ्रेमवर्क में इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टर्स को इंट्राडे में शॉर्ट-सेलिंग पोजीशन स्केवयर ऑफ करने की इजाजत नहीं होती है।
एसएलबी फ्रेमवर्क शॉर्ट सेलिंग में आसानी के लिए
सेबी ने शॉर्ट सेलिंग को आसान बनाने के लिए 2008 में एसएलबी फ्रेमवर्क पेश किया था। सेबी का मानना था कि इसके सेटलमेंट फेल होने के मामलों पर रोक लगेगी। क्लियरिंग कॉर्पोरेशंस एसएलबी सिस्टम को मैनेज करता है। सेबी के चेयरमैन ने यह भी कहा कि रेगुलेटर लिस्टिंग ऑब्लिगेशंस एंड डिसक्लोजर रिक्वायरमेंट (LODR) के नियमों की भी समीक्षा करेगा।
एसएलबी का सिस्टम ऐसे काम करता है
SLB के सिस्टम के तहत इनवेस्टर्स या इंस्टीट्यूशंस अपने डीमैट अकाउंट में रखे शेयरों को दूसरे मार्केट पार्टिसिपेंट्स को उधार दे सकते हैं। इसके बदले में उन्हे फीस मिलती है। यह ट्रांजेक्शन स्टॉक एक्सचेंज के प्लेटफॉर्म के जरिए होता है। क्लियरिंग कॉर्पोरेशन सेटलमेंट की काउंटर गारंटी देता है। इस सिस्टम से इनवेस्टर्स को अपने डीमैट अकाउंट में रखे शेयरों से कुछ कमाई हो जाती है। इससे लिक्विडिटी भी बढ़ती है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि आम तौर पर बॉरोइर्स शॉर्ट सेलिंग या सेटलमेंट में शेयरों की डिलीवरी में फेल होने से बचने के लिए सिक्योरिटी उधार लेते हैं। दुनिया के विकसित बाजारों में एसएलबी का काफी इस्तेमाल होता है। यहां तक कि म्यूचुअल फंड्स भी अपनी सिक्योरिटी उधार देते हैं और इससे अतिरिक्त कमाई करते हैं।