सेबी इक्विटी डेरिवेटिव्स में ओपन इंटरेस्ट (ओआई) के कैलकुलेशन का तरीका बदलने जा रहा है। मार्केट रेगुलेटर ने इस बारे में 24 फरवरी को एक कंसल्टेशन पेपर किया। इसमें कहा गया है कि अब शेयरों के ओपन इंटरेस्ट के कैलकुलेशन की तरीका बदल जाएगा। अभी ओपन इंटरेस्ट के कैलकुलेशन के लिए नोशनल वैल्यू का इस्तेमाल होता है। सेबी इसकी जगह फ्यूचर्स इक्विवैलेंट या डेल्टा-बेस्ड ओपन इंटरेस्ट कैलकुलेशन का इस्तेमाल करेगा।
अभी किस तरीके का इस्तेमाल होता है?
अभी हर ट्रेडर का ट्रेड एफएंडओ कॉन्ट्रैक्ट में जुड़ जाता है। इसके आधार पर ऑप्शंस स्पेस में ओपन इंटरेस्ट के कैलकुलेशन के लिए नोशनल वैल्यू का इस्तेमाल किया जाता है। ऑप्शंस की नोशनल वैल्यू के इस्तेमाल से मार्केट वाइड पोजीशन लिमिट (MWPL) जल्द 95 फीसदी के पार चली जाती है, जो किसी स्टॉक के F&O बैन की लिस्ट में आने के लिए तय लिमिट है। ऑप्शन स्ट्रॉइक प्राइस को नोशनल वैल्यू माना जाता है।
कंसल्टेशन पेपर में ओपन इंटरेस्ट के कैलकुलेशन के लिए आउट-ऑफ-द-मनी-कॉल के डेल्टा के इस्तेमाल की बात कही गई है। ऑप्शंस डेल्टा एक सैद्धांतिक अनुमान है, जो यह बताता है कि स्ट्राइक प्राइस के ऊपर या नीचे जाने की स्थिति में ऑप्शंस की वैल्यू में कितना बदलाव आ सकता है। ओपन इंटरेस्ट के कैलकुलेशन के लिए इस नए फॉर्मूला के इस्तेमाल से स्टॉक के बैन पीरियड में आने के मामले घटकर 27 फीसदी रह जाएंगे। यह 90 फीसदी की कमी होगी।
सेबी क्यों बदल रहा तरीका?
सेबी ने ओआई के कैलुकलेशन का तरीका बदलने का फैसला दो वजहों से लिया है। पहला, रिस्क बढ़े बगैर स्टॉक्स के बैन पीरियड में जाने के मामलों में कमी आएगी। दूसरा, इंडेक्स डेरिवेटिव्स के लिए पोजीशन लिमिट को जानबूझकर क्रॉस करने की संभावना कम हो जाएगी। कंसल्टेशन पेपर में कहा गया है कि इस बदलाव से छोटे इनवेस्टर्स पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सिर्फ स्टॉक्स के बैन पीरियड में जाने के मामलों में कमी आएगी। इससे छोटे इनवेस्टर्स को ट्रेडिंग में आसानी होगी।
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अभी टोटल OI निकालने के लिए नोशनल ओआई का इस्तेमाल होता है। अंडरलाइंग एसेट के प्राइस और कॉन्ट्रैक्ट मल्टीप्लायर को ओआई (कॉन्ट्रैक्ट की संख्या) से गुना किया जाता है। इस तरह फ्यूचर्स या ऑप्शंस के हर डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट का रिस्क-मल्टीप्लायर एक होगा। इसका मतलब है कि एक कॉन्ट्रैक्ट रिस्क के एक यूनिट के बराबर होगा। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। अगर किसी स्टॉक का प्राइस मान लीजिए एक्स अमाउंट बढ़ जाता है तो फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट का प्राइस भी करीब उतना ही बढ़ जाता है। लेकिन, ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट का प्राइस उसके डेल्टा जितना ही बदलता है।