सेबी ट्रेड्स में पंचिंग एरर के मामले में रियायत देना चाहता है, लेकिन उसे इसके दुरुयापयोग की चिंता है। उसे डर है कि सिक्योरिटी मार्केट में क्लाइंट कोड मॉडिफिकेशन (सीसीएम) और कस्टोडियन पार्टिसिपेंट (सीपी) एलोकेशन का दुरुपयोग हो सकता है। वह भी चाहता है कि इस रियायत की वजह से मार्केट इंटिग्रिटी पर किसी तरह का असर नहीं पड़ना चाहिए। यह यह भी पता लगा रहा है कि क्या 'genunine errors' की परिभाषा का विस्तार किया जा सकता है।
क्लाइंट कोड मॉडिफिकेशन का मतलब
क्लाइंट कोड मॉडिफिकेशन (CCM) का मतलब ट्रेड एग्जिक्यूट होने के बाद क्लाइंट के आइडेंटिफिकेशन कोड में बदलाव करना है। ऐसा मुख्य रूप से पंचिंग एरर या एंट्री के वक्त गलती को ठीक करने के लिए किया जाता है। सेबी का यह भी मानना है कि एक्सचेंज या क्लियरिंग कॉर्पोरेशन लेवल पर क्लाइंट कोड में मॉडिफिकेशन से टैक्स चोरी का रास्ता नहीं खुलना चाहिए। फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टर्स (FPI) के मामले में अलग-अलग पर्मानेंट अकाउंट नंबर्स (PAN) में इंट्रा-ग्रुप रीएलोकेशन की वजह से बेनेफिशियल ओनरशिप में बदलाव हो सकता है।
एक से ज्यादा क्लाइंट कोड की इजाजत से बढ़ता है रिस्क
इसी तरह प्रति पैन एक से ज्यादा क्लाइंट कोड्स की इजाजत से सर्कुलर ट्रेडिंग का रिस्क बढ़ जाता है। साथ ही आर्टफिशियल वॉल्यूम क्रिएट होने का भी रिस्क रहता है। अभी बैंक, म्यूचुअल फंड्स, पेंशन फंड्स, इंश्योरेंस और पब्लिक फाइनेंस इंस्टीट्यूशंस के CP कोड का ऐलोकेशन क्लियरिंग कॉर्पोरेशन के लेवल पर होता है। हालांकि, बेनेफिशियल ओनरशिप में बदलाव की मॉनिटरिंग नहीं होती है। सेबी ने ऐसे मामलों में एक्सचेंज और क्लियरिंग कॉर्पोरेशन में पेनाल्टी फ्रेमवर्क में फर्क पर भी गौर किया है।
ईटीएफ मार्केट मेकर्स को एग्जेम्प्शन देने पर विचार
सूत्रों के मुताबिक, सेबी यह देख रहा है कि क्या एक्सचेंज को सुरक्षा के उपायों के साथ प्रति पैन एक से ज्यादा PAN की इजाजत देनी चाहिए। सेबी ट्रेड को एसेट मैनेजमेंट कंपनियों को ट्रांसफर करने में ईटीएफ मार्केट मेकर्स को एग्जेम्प्शन देने पर भी विचार कर रहा है। इस मामले से जुड़े पक्षों का मानना है कि अभी ट्रेड वैल्यू का एक फीसदी पेनाल्टी लगती है। क्या यह एरर्स के अनुपात के हिसाब से है। खासकर तब जब एफपीआई और इंस्टीट्यूशनल क्लाइंट्स का वॉल्यूम काफी ज्यादा होता है।