भुवन भास्कर
भुवन भास्कर
शेयर बाजार में ट्रेडिंग जोखिमों से भरा है। इस बात की गवाही कोई भी ट्रेडर दे सकता है। शुक्रवार 16 सितंबर को सेंसेक्स और निफ्टी 2-2% गिरे थे। इसके बाद सोमवार को भी बाजार में बड़ी गिरावट रही। सोमवार को शेयर बाजार में जबरदस्त गिरावट रही। सेंसेक्स 953 अंक यानि 1.64% टूटकर 57,145.22 के लेवल पर बंद हुआ। वहीं निफ्टी भी 311.05 अंक यानि 1.80% गिरकर 17000 के मनोवैज्ञानिक लेवल से ऊपर 17.016.30 पर बंद होने में कामयाब रहा।
मुद्दा था पिछले हफ्ते होने वाली अमेरिकी फेड की मीटिंग, जिसमें ब्याज दरें 75 बेसिस प्वाइंट तक बढ़ने की संभावना थी। फिर जब मंगलवार की रात को वास्तव में यह फैसला होना था, उससे पहले दो दिनों के सत्र में सूचकांकों ने शुक्रवार को हुई लगभग सारी गिरावट को पाट लिया। शुक्रवार को 1.94% की गिरावट दर्ज करने वाला निफ्टी सोमवार और मंगलवार को 1.6% चढ़ चुका था। और मंगलावर की रात को फेडरल रिजर्व के ब्याज दरों में 75 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि के बाद डाओ जोंस 500 अंकों से ज्यादा गिरकर बंद हुआ था। लेकिन बुधवार को जब भारतीय बाजार खुले, तो उनमें मामूली गिरावट दिखी। वृहस्पतिवार को बाजार हालांकि गिरकर बंद हुए लेकिन निफ्टी की क्लोजिंग अपने ओपनिंग लेवल से 20 प्वाइंट ऊपर थी। यानी कुल मिलाकर कहा जाए तो निफ्टी-सेंसेक्स पर फेडरल रिजर्व के फैसले का कोई असर नहीं पड़ा।
पिछले हफ्ते का शुक्रवार यानी 23 सितंबर एक बार फिर उससे पिछले शुक्रवार का मिरर इमेज जैसा दिखा। निफ्टी लगभग 1.7% गिरकर 302 अंक नीचे बंद हुआ। एक बार फिर शुक्रवार की इस गिरावट को इस हफ्ते होने वाली भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की मीटिंग से जोड़ कर देखा जा सकता है। फेडरल रिजर्व की मीटिंग के बाद पूरी दुनिया के केंद्रीय बैंकों ने अपने-अपने देशों के लिए ब्याज दरें बढ़ानी शुरू कर दी हैं।
बैंक ऑफ इंगलैंड ने जहां दरें 50 बेसिस प्वाइंट बढ़ाई हैं, वहीं स्विस नेशनल बैंक ने 75 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की है। अमेरिका पहले ही तकनीकी रूप से मंदी में पहुंच चुका है। जून में फेडरल रिजर्व ने अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2022 के लिए 1.7% वृद्धि का अनुमान जताया था, लेकिन अब इस अनुमान को घटा कर 0.2% कर दिया है। ब्रिटेन और यूरो जोन इस साल के आखिर तक मंदी में जाने वाले हैं।
भारत में हालांकि मंदी का डर नहीं है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि पूरी दुनिया में आर्थिक गतिविधियों में आने वाली कमी का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। फिर भी, RBI ने साफ किया है कि महंगाई उसके लिए फिलहाल सबसे बड़ी प्राथमिकता है और इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि रिजर्व बैंक इस हफ्ते की अपनी बैठक में ब्याज दरों में और बढ़ोतरी करेगा। यह बढ़ोतरी कितनी होगी, यह जरूर बाजार के लिए एक सरप्राइज हो सकता है। लेकिन फेड के निर्णय के बाद जिस तरह की चाल बाजार ने दिखाई है, उससे छोटी अवधि में तेजी या मंदी का कोई अनुमान लगाना कठिन लग रहा है।
क्या कहते हैं टेक्निकल चार्ट?
टेक्निकल चार्ट की बात करें, तो निफ्टी ने क्लोजिंग बेसिस पर 17430 का महत्वपूर्ण समर्थन तोड़ दिया है तो ज्यादा संभावना यही है कि कम से कम रिजर्व बैंक के फैसले तक निफ्टी इस स्तर के ऊपर नहीं जाएगा। दूसरे शब्दों में यह स्तर छोटी अवधि के लिए एक रेजिस्टेंस का काम करेगा।
लंबी अवधि में भारतीय शेयर बाजारों के लिए एक लंबी तेजी के दौर का रास्ता बनता दिख रहा है क्योंकि पूरी दुनिया में सिर्फ भारत ही एक ऐसी अर्थव्यवस्था है, जो अगले 2-3 वर्षों में 6% से ज्यादा की वृद्धि दर से बढ़ेगी। तो दुनिया भर के निवेशक जो पिछले साल भर में भारतीय शेयर बाजारों से किनारा कर गए थे, उनके लिए वापस लौटने के अलावा ज्यादा विकल्प नहीं होंगे।
इसके संकेत मिलने भी लगे हैं। अप्रैल 2021 से जुलाई 2022 तक लगातार 16 महीनों तक भारतीय शेयर बाजारों में बिकवाली करने के बाद FII पहली बार अगस्त में निर्णायक तौर पर खरीदार बनकर उभरे हैं। सितंबर 2021 बीच में एक अपवाद महीना था, जिसमें 1000 करोड़ रुपये से भी कम खरीदारी FII ने की थी, लेकिन अगस्त 2022 का आंकड़ा 22000 करोड़ रुपए से ज्यादा की खरीदारी का है। सितंबर में हालांकि FII ने शुद्ध तौर पर बिकवाली ही की है, लेकिन जिस तेजी से फेडरल रिजर्व और RBI ने ब्याज दरें बढ़ाई हैं, उसे देखते हुए महज 2446 करोड़ रुपए की बिकवाली बहुत ज्यादा नहीं है।
लेकिन इसका यह मतलब कत्तई नहीं है कि छोटी से मध्यम अवधि में ट्रेडरों और निवेशकों के लिए भारतीय शेयर बाजारों में अब कोई संकट नहीं बचा है। पिछले हफ्ते की बैठक में फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में वृद्धि का जो आकलन प्रस्तुत किया है, उसके मुताबिक इस साल के आखिर तक अमेरिका में ब्याज दरें 4.4% तक पहुंच जाएंगी। अगले साल तक ये 4.75-5% के दायरे में पहुंच जाएगा, जिसके बाद आखिरकार फेड ब्याज दरों में कटौती की शुरुआत करेगा। ये सारे अनुमान इस बात पर निर्भर करेंगे कि महंगाई में कमी का फेड का अनुमान कितना सही होता है। जब तक परिदृश्य साफ नहीं होता, तब तक बाजार में निगेटिव बायस के साथ उतार-चढ़ाव चलता रहेगा।
इसलिए चाहे इरादा निवेश का हो या ट्रेडिंग का, विशेषज्ञ बुनियादी तौर पर मजबूत कंपनियों के शेयरों में ही दांव लगाने की सलाह दे रहे हैं। बाजार में फूंक-फूंक कर कदम रखिए क्योंकि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।
(लेखक कृषि और आर्थिक मामलों के जानकार हैं)
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