अभी तक बाजार ने जिस थीम्स पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दिया उनमें इंफ्रा-रियल्टी का नाम भी शामिल है। लेकिन अब घरेलू इकोनॉमी के गति पकड़ने, सरकार की तरफ से इंफ्रास्ट्रक्चर पर फोकस और इंफ्रा कंपनियों के अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए निवेशकों का रुझान ऐसी कंपनियों की तरफ बढ़ रहा है जो प्योर इंफ्रा या प्योर रियल्टी न होकर इंफ्रास्ट्रक्चर और रियल्टी दोनों में एक्सपोजर रखती हैं। बाजार जानकारों का कहना है कि रियल्टी स्पेस में आ रही तेजी और इंफ्रास्ट्रक्चर के अपमूव का फायदा उठाने के लिए इंफ्रा-रियल्टी कंपनियों पर फोकस इस समय एक अच्छी रणनीति हो सकती है।
वेयर हाउसिंग कंपनियों की तरफ बाजार का रुझान
जानकारों का कहना है कि वर्तमान में ऐसी वेयर हाउसिंग कंपनियों की तरफ बाजार का रुझान बढ़ता नजर आ रहा है जो ना सिर्फ वेयरहाउस बनाती हैं बल्कि जो उनको लीज पर भी देती हैं । Welspun ग्रुप की एक शाखा Welspun लॉजिस्टिक्स पार्क कर्नाटका में वेयरहाउसिंग फेसिलिटी और लॉजिस्टिक्स पार्क की स्थापना के लिए 2000 करोड़ रुपये की योजना पर काम कर रही है। Welspun ग्रुप की इस कंपनी ने कहा है कि वह उत्तर भारत में अपने कारोबार का विस्तार पर फोकस करेगी और तमाम छोटे बाजारों में Grade A वेयरहाउसिंग की स्थापना के लिए सरकारी जमीन के उपयोग की संभावनाएं तलाशेगी।
एक इन्वेस्टमेंट फाइनेंस प्लेटफॉर्म Fisdom के हेड ऑफ रिसर्च नीरव करकेरा का कहना है कि वेयरहाउसिंग के अलावा इंफ्रा-रियल्टी में कोल्ड स्टोरेज, स्पेशलाइज्ड गुड्स ट्रांसपोर्टेशन और फ्रेट लॉजिस्टिक्स सर्विसेज भी शामिल होती हैं। उन्होंने आगे कहा कि इंफ्रा-रियल्टी एक ऐसा थीम है जो इंफ्रा और रियल्टी सेक्टर की प्योर प्ले के साथ संलग्न जोखिम से बचाव करते हुए कमाई की अच्छी संभावनाएं पेश कर रही हैं। इंफ्रा-रियल्टी सेगमेंट को इकोनॉमी से आ रही मांग, पीएलआई योजना के तहत मिलने वाली सुविधा और नेशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी के प्रावधानों का फायदा मिलेगा।
लॉजिस्टिक्स कंपनी V-Trans (India)ने कहा है कि अगले 3 साल में वह अपने वेयर हाउस पोर्टफोलियो में 5 गुना विस्तार की योजना पर काम कर रही है। कंपनी को उम्मीद है कि इंफ्रा-रियल्टी सेक्टर को गर्वमेंट की हाल में जारी नेशनल लॉजिस्टिक्स पॉलिसी से फायदा होगा।
प्योर इंफ्रा और प्योर रियल्टी की तुलना में इंफ्रा-रियल्टी क्यों है बेहतर?
सिर्फ इंफ्रा या सिर्फ रियल्टी में काम करने वाली कंपनियों की तुलना में इंफ्रा-रियल्टी एक्सपोजर रखने वाली कंपनियों में निवेश करना क्यों बेहतर है यह बताते हुए नीरव करकेरा ने कहा कि प्योर रियल एस्टेट कंपनियों को भारी पूंजी की जरूरत होती है। इसके अलावा प्राइस डिस्कवरी के मामले में भी इनको मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसी तरह प्योर इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां जो रोडवेज और पावरग्रिड बनाने का काम करती हैं उनको इकोनॉमिक साइकिल से जुड़े जोखिम का सामना करना पड़ता है । इसके अलावा इनकी प्रोजेक्ट कॉस्ट काफी ज्यादा होती है। उसके लिए भारी मात्रा में पैसे जुटाना एक मशक्कत का काम होता है। इसके अलावा प्योर इंफ्रास्टक्चर प्रोजेक्ट्स के पूरे होने की अवधि बहुत लंबी होती है। ऐसे में इनसे कमाई होने में काफी लंबा समय लगता है। इस तरह की तमाम मुश्किलें इंफ्रा-रियल्टी थीम में नहीं होती।
जानें किन शेयरों पर है जानकारों की नजर
बतातें चलें कि इंफ्रा-रियल्टी थीम से हमारा मतलब ऐसी कंपनियों से है जो देश के लिए तमाम तरह के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर काम करती हैं। इनमें वेयरहाउस, डेटा सेंटर और लॉजिस्टिक्स पार्क जैसे इंफ्रा सुविधाएं विकसित करने वाली कंपनियां शामिल हैं। इनमें निवेश करके निवेशक रेंट यील्ड के जरिए कमाई कर सकते हैं। बताते चलें कि इस रेट यील्ड का निर्धारण प्रोजेक्ट के निर्माण के पहले ही कर लिया जाता है। इस तरह के कंपनियों में Container Corporation of India, VRL, Gati और AllCargo के नाम शामिल हैं। इसके अलावा Delhivery और Blue Dart जैसी कंपनियां भी इसकी श्रेणी में आती है। जानकारों का कहना है कि इन कंपनियों पर निवेश के नजरिए से हमारी नजर रहनी चाहिए।
हेम सिक्योरिटीज के मोहित निगम का कहना है कि Larsen & Toubro एक ऐसी कंपनी है जो इंफ्रा-रियल्टी का अच्छा मिश्रण है। कंपनी की ऑर्डर बुक काफी मजबूत है। कंपनी ने सालाना आधार पर 12-15 फीसदी का अपना रेवेन्यू ग्रोथ रेट बनाकर रखा है। आगे आने वाली तिमाहियों में कमोडिटी की कीमतों में गिरावट का फायदा कंपनी के मार्जिन में सुधार के रूप में सामने आएगा।
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