शेयर बाजार में सूचीबद्ध 20 फीसदी से ज्यादा सरकारी कंपनियों ने मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग के नियमों का पालन नहीं किया है। सेबी के नियम के मुताबिक, सूचीबद्ध होने के बाद कंपनी को तय समय के अंदर प्रमोटर्स शेयरहोल्डिंग को घटाकर 75 फीसदी से नीचे लाना जरूरी है। खास बात यह है कि इनमें कई ऐसी सरकारी कंपनियां शामिल हैं, जो कई दशक पहले लिस्ट हुई थी।
इस नियम की वजह से कंपनियां नियम के पालन में दिलचस्पी नहीं दिखाती हैं
मार्केट पार्टिसिपेंट्स का कहना है कि मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग नियम का पालन नहीं करने की वजह सिक्योरिटीज से जुड़ा एक नियम है, जिसमें कहा गया है कि सरकार सूचीबद्ध सरकारी कंपनियों को मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग नियम के पालन के लिए ज्यादा वक्त दे सकती है। 103 सरकारी कंपनियां शेयर बाजार में सूचीबद्ध हैं। इनमें से 20 फीसदी कंपनियां ऐसी हैं, जिनमें प्रमोटर शेयरहोल्डिंग 75 फीसदी से ज्यादा है।
इन कंपनियों में सरकार की हिस्सेदारी तय सीमा से काफी ज्यादा
प्राइम डेटाबेस के डेटा के मुताबिक, जिन सरकारी कंपनियों ने मिनिमम पब्लिक शेयरहोल्डिंग नियम का पालन नहीं किया है, उनमें LIC, MMTC, HMT, ITI, IRFC, Mazagon Dock Shipbuilding, Madras Fertilizers, New India Assurance, Mangalore Refinery और SJVN जैसी कंपनियां शामिल हैं। कई सरकारी बैंक भी ऐसे है जिनमें सरकार की हिस्सेदारी तय सीमा से ज्यादा है। इनमें IDBI Bank, Central Bank of India, Punjab and Sind Bank, Indian Overseas Bank, UCO Bank और Bank of Maharashtra शामिल हैं।
सरकार नियमों के पालन के लिए अतिरिक्त समय दे चुकी हैं
जुलाई 2024 में सरकार ने इन कंपनियों को नियम के पालन के लिए अतिरिक्त समय दिया था। यह दो साल का अतिरिक्त समय था, जो अगस्त 2026 में खत्म हो रहा है। सरकार ने समय तब दिया था, जब पहले दिया गया अतिरिक्त समय 1 अगस्त, 2024 को खत्म होने वाला था। कई ऐसी सरकारी कंपनियां है, जिसमें सरकार की हिस्सदारी 85 फीसदी से ज्यादा है। इनमें Madras Fertilizers, New India Assurance, Mangalore Refinery जैसी कंपनियां शामिल हैं।
यह भी पढ़ें: KIMS Stocks: एक साल में 55% चढ़ा है यह स्टॉक, अभी इनवेस्ट करने पर क्या होगी तगड़ी कमाई?
सेबी ने 18 जून को लिया था बड़ा फैसला
सेबी ने 18 जून को बोर्ड मीटिंग में बड़ा फैसला लिया। रेगुलेटर ने उन कंपनियों के लिए डीलिस्टिंग के अलग नियमों को मंजूरी दे दी, जिसमें सरकार की हिस्सेदारी 90 फीसदी से ज्यादा है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि चूंकि ये कंपनियां सरकार की हैं, जिससे इनके प्रमोटर्स भारत सरकार है। इसका मतलब है कि आम लोग इसके प्रमोटर हैं। इसलिए इन कंपनियों को नियमों में कुछ छूट देना जरूरी है।