अमेरिकी शेयर बाजारों ने अपने शिखर पर पहुंच चुके हैं और आने वाले समय में स्टॉक्स, ट्रेजरी बॉन्ड्स और डॉलर में करेक्शन यानी गिरावट संभव है। यह कहना है जेफरीज के इक्विटी स्ट्रैटेजी के ग्लोबल हेड क्रिस वुड का, जिन्होंने हाल ही में ब्लूमबर्ग को दिए एक इंटरव्यू में यह बात कही। वुड का मानना है कि मौजूदा हालात को देखते हुए ग्लोबल निवेशकों को अब अपने पोर्टफोलियो में भारत, चीन और यूरोप जैसे बाजारों की हिस्सेदारी बढ़ानी चाहिए।
उन्होंने साफ तौर पर कहा, “ज्यादातर ग्लोबल निवेशकों के पास भारत में कोई एक्सपोजर नहीं है। मैं कह रहा हूं कि उन्हें ऐसा करना चाहिए। जो लोग इमर्जिंग देशों के शेयर बाजारों में निवेश करते हैं, वे आमतौर पर भारत को शामिल करते हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि ग्लोबल फंड्स भी भारत में निवेश करें।”
वुड ने बताया कि दिसंबर में अमेरिकी शेयर बाजारों का मार्केट कैप, MSCI के ऑल कंट्री वर्ल्ड इंडेक्स की तुलना में अपने अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गया था। उन्होंने इसकी तुलना 1980 के दशक के अंत के जापानी शेयर बाजारों में देखे गए बुलबुले से की।
वुड ने कहा, “अमेरिका ने अब अपना ऑल-टाइम पीक देख लिया है।” उन्होंने कहा, “डॉलर ने लंबी अवधि की कमजोरी का रुख पकड़ लिया है, और इससे अमेरिकी शेयर बाजारों की वर्ल्ड मार्केट कैप में हिस्सेदारी घटेगी।”
इस बीच, अमेरिकी शेयर बाजारों में हाल ही में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियों के चलते उनके ऑलटाईम हाई से तेज गिरावट देखने को मिली थी। फिलहाल अमेरिकी मार्केट अपने 52-सप्ताह के निचले स्तर से रिकवरी की कोशिश में हैं।
टैरिफ से जुड़ी अनिश्चितताओं के चलते अमेरिकी डॉलर तीन साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है। वहीं 10-साल वाला 4.57% के उच्च स्तर तक पहुंच गया और सोने की कीमतें 3,500 डॉलर प्रति औंस से अधिक के ऑल-टाइम हाई पर जा पहुंचीं।
क्रिस वुड ने यह भी कहा कि ये अमेरिकी बाजार के नीचे जाने का सवाल नहीं है, बल्कि यह अब भारत, चीन और यूरोप जैसे बाजारों के ऊपर आने का सवाल है। इसीलिए उनका मानना है कि अगला बड़ा ग्रोथ भारत और दूसरे इमर्जिंग बाजारों से आएगा, और ग्लोबल निवेशकों को अब यहां अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने में देरी नहीं करनी चाहिए।
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