Share Markets: जीएसटी काउंसिल ने पिछले हफ्ते 3 सितंबर को बड़ा कदम उठाते हुए 12% और 28% के टैक्स स्लैब्स को खत्म करने की मंजूरी दी। इसकी जगह नए जीएसटी स्ट्रक्चर में अब सिर्फ 5% और 18% की दो मुख्य दरें होगी। इसके चलते कार से लेकर AC तक और बिस्किट से लेकर दूध तक सैंकडों उत्पादों पर इनडायरेक्ट टैक्स का बोझ कम हो गया। जीएसटी काउंसिल के इस ऐलान के बाद सोशल मीडिया और बिजनेस चैनलों पर तमाम फंड मैनेजरों और मार्केट एक्सपर्ट्स ने दावा किया कि इस कदम से शेयर बाजार में तेजी आ सकती है। लेकिन हकीकत में शेयर बाजार की लगभग सपाट रही।
यह पहला मामला नहीं है। इस पूरे साल शेयर बाजार ने लगातार ऐसी 'अच्छी खबरों' को नजरअंदाज किया है। फिर चाहे वो RBI की ओर से ब्याज दरों में कटौती की बात हो या फिर देश की जीडीपी आंकड़े के सभी अनुमानों को पीछे छोड़ते हुए 7.8 फीसदी तक पहुंचने की बात। इसके अलावा सरकार ने इस वित्त वर्ष में इनकम टैक्स में छूट को भी बढ़ाकर 12 लाख कर दिया है। ऐसे में यह सवाल बनता है कि आखिर इन अच्छे खबरों के बावजूद शेयर बाजार में उछाल क्यों नहीं आ रही है? मार्केट क्यों एक सीमित दायरे में ठहरा हुआ है? आइए इस पांच कारणों से समझते हैं-
1. उधार लेने की रफ्तार धीमी
2. मिडिल क्लास की मुश्किलें
हाल ही में कुछ ऐसे आंकड़े आए हैं, जो बताते हैं कि शहरों में मध्यमवर्गीय परिवार आर्थिक दबाव महसूस कर रहे हैं। क्रेडिट कार्ड बकाया जुलाई महीने के दौरान सिर्फ 5.6% बढ़ा, जो पिछले 11 सालों में सबसे धीमा विकास है। इतना ही नहीं, लोग बड़ी संख्या में सोने के गहनों के बदले लोन ले रहे हैं। अप्रैल से जुलाई 2025 के बीच गोल्ड लोन पिछले साल की तुलना में दोगुना हो गया। गोल्ड लोन में उछाल सोने की बढ़ती कीमतों से भी जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन यह आर्थिक तंगी की ओर भी इशारा करता है।
3. कंपनियों की अर्निंग्स ग्रोथ
भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून 2025) में 7.8 फीसदी रही। लेकिन कंपनियों की सेल्स ग्रोथ रफ्तार इससे कम बनी हुई है। एक आंकड़े के मुताबिक, करीब 3400 नॉन-फाइनेंशियल लिस्टेड कंपनियों की सेल्स ग्रोथ महज 3.8 फीसदी रही। यह भी एक बड़ी वजह है। शेयर बाजार कंपनियों की अर्निंग्स पर ही दांव लगाता है। एक कहावत भी है कि शेयरों की कीमतें अर्निंग्स की गुलाम होती हैं।' यानी अगर अर्निंग्स ठीक है, तो लंबी अवधि में उस कंपनी के शेयर भी ऊपर जाने तय माने जाते हैं। लेकिन अर्निंग्स कमजोर हो तो कोई भी तेजी टिकाऊ नहीं होती है।
4. विदेशी निवेशकों की बेचैनी
शेयर बाजार के ऊपर नहीं जाने के पीछे एक बड़ा रीजन विदेशी निवेशकों को भी माना जा रहा है। विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) भारतीय बाजारों से लगातार पैसा निकाल रहे हैं। जुलाई महीने से अब तक ही विदेशी निवेशकों ने करीब 1 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली की है। जुलाई में उन्होंने बाजार से 47,666 करोड़ रुपये निकाले थे। जबकि अगस्त में उन्होंने 46,902 करोड़ रुपये की बिकवाली की थी। सितंबर महीने में भी अब तक वे करीब 5600 करोड़ रुपये के शेयर बेच चुके हैं। इसके साथ ही विदेशी निवेशकों की भारतीय बाजार में हिस्सेदारी अब 13 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई। हालांकि इस दौरान घरेलू संस्थागत निवेशक और रिटेल निवेशक लगातार खरीदारी कर रहे हैं, जिन्होंने मार्केट को बड़ी गिरावट से बचाया है।
5. भारतीय रुपये में कमजोरी
रुपये की गिरावट भी बड़ी वजह है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हुआ है और 88 रुपये के भी नीचे चला गया है। इससे विदेशी निवेशकों को अपने डॉलर निवेश पर कम रिटर्न दिखाई दे रहा है। साथ ही अमेरिका की ओर से शुरु किए गए व्यापार तनाव और ग्लोबल सुस्ती का असर भी भारतीय बाजार पर पड़ रहा है।
वैसे अगर शेयर बाजार के रिटर्न को देखें तो, पिछले 30 सालों में निफ्टी 500 टोटल रिटर्न इंडेक्स ने औसतन 12-13 फीसदी सालाना रिटर्न दिया है। लेकिन यह रिटर्न हर साल नहीं मिला है। साल 1995 से 2003 तक बाजार लगभग ठहरा रहा। वहीं 2008 से 2017 के बीच इसने औसतन सिर्फ 7 फीसदी सालाना का रिटर्न दिया है। वहीं 2020 के बाद से इसमें सालाना 26 फीसदी की दर से उछाल दिखी। कुल मिलाकर, शेयर बाजार का सफर उतार-चढ़ाव से भरा हुआ रहता है और यहां मुनाफा धैर्य और लंबी अवधि के निवेश से बनता है।
डिस्क्लेमरः Moneycontrol पर एक्सपर्ट्स/ब्रोकरेज फर्म्स की ओर से दिए जाने वाले विचार और निवेश सलाह उनके अपने होते हैं, न कि वेबसाइट और उसके मैनेजमेंट के। Moneycontrol यूजर्स को सलाह देता है कि वह कोई भी निवेश निर्णय लेने के पहले सर्टिफाइड एक्सपर्ट से सलाह लें।