Elon Musk's Starlink in India: एलॉन मस्क के स्टारलिंक के भारत में लाइसेंस की प्रक्रिया अब आगे बढ़ सकती है। इसकी वजह ये है कि सैटेलाइट ब्रॉडबैंड कंपनी स्टारलिंग सरकार के डेटा लोकलाइजेशन और सिक्योरिटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए राजी हो गई है। यह जानकारी मनीकंट्रोल को सूत्रों के हवाले से मिली है। यह ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी सरकार में मस्क को एक बड़ी जिम्मेदारी देने की बात कही है। चुनावी दौरे में एलॉन मस्क ने न केवल ट्रंप का समर्थन किया था, बल्कि उनके अभियान के लिए फंड भी जुटाया था। ट्रंप के साथ उनके गहरे संबंधों के चलते माना जा रहा है कि स्टारलिंक ने भारत के लिए सैटेलाइट इंटरनेट सर्विसेज के लिए जो योजना तैयार की है, उसे सपोर्ट मिल सकता है।
Elon Musk की Starlink ने एक साल पहले किया था अप्लाई
हाल ही में टेलीकॉम डिपार्टमेंट के साथ बैठकों में स्टारलिंक ने सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सर्विसेज लाइसेंस यानी जीएमपीसीएस लाइसेंस के लिए डेटा लोकलाइजेशन और सिक्योरिटी से जुड़े नियमों को लेकर हामी भरी है लेकिन अभी इसने एग्रीमेंट नहीं दाखिल किया है। ग्लोबल मोबाइल पर्सनल कम्यूनिकेश बाय सैटेलाइट सर्विसेज (GMPCS) लाइसेंस सैटेलाइट इंटरनेट के सेटअप की दिशा में पहला कदम है जिसके बाद मामूली एप्लीकेशन फीस देकर परीक्षण के लिए स्पेक्ट्रम हासिल किया जा सकता है।
सिक्योरिटी से जुड़े नियमों के मुताबिक देश में काम कर रही सैटेलाइट कम्यूनिकेशंस कंपनी को पूरा डेटा देश के भीतर रखना अनिवार्य है। स्टारलिंक को यह दिखाने की जरूरत पड़ सकती है कि अगर इंटेलिजेंस एजेंसियों को जरूरत पड़ी तो उन्हें डेटा कैसे मिलेगा। स्टारलिंक ने अक्टूबर 2022 में इस लाइसेंस के लिए अप्लाई किया था। इसके बाद कंपनी ने अंतरिक्ष नियामक इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर (IN-SPACe) से भी मंजूरी के लिए अप्लाई किया था। IN-SPACe के पास जो एप्लीकेशन है, वह भी आगे बढ़ चुका है लेकिन अंतिम स्वीकृति के लिए अतिरिक्त जानकारी मांगी गई है।
सैटेलाइट सर्विसेज में वार की तैयारी
भारत में सैटेलाइट ब्रॉडबैंड सेवाएं तब शुरू होंगी जब सरकार मूल्य निर्धारण और स्पेक्ट्रम आवंटन के नियम तय करेगी। यह प्रक्रिया तभी शुरू हो सकती है जब ट्राई अपनी सिफारिशें जारी करेगा, जिसके दिसंबर के अंत तक आने की उम्मीद है। सैटेलाइट सर्विसेज सेक्टर में रिलायंस जियो, भारती एयरटेल, वोडा आइडिया जैसी देशी कंपनियों की एमेजॉन और स्टारलिंग जैसी वैश्विक कंपनियों से भिड़ंत होगी।
पिछले सप्ताह एक ओपन हाउस सेशन के दौरान तीनों भारतीय कंपनियों के प्रतिनिधियों ने कहा था कि शहरी या रिटेल कंज्यूमर्स को सैटेलाइट से जुड़ी सर्विसेज देने के लिए सिर्फ नीलामी वाले सैटेलाइट स्पेक्ट्रम का ही इस्तेमाल होना चाहिए। वहीं स्टारलिंक ने इस मांग को लेकर कहा कि टेलीकॉम/जमीनी सेवाएं और सैटेलाइट कम्यूनिकेशंस सैद्धांतिक रूप से अलग हैं तो इनकी तुलना नहीं की जानी चाहिए। स्टारलिंक इंडिया के डायरेक्टर Parnil Urdhwareshe ने कहा कि अगर टेलीकॉम कंपनियों के बीच 5जी मोबाइल स्पेक्ट्रम साझा किया जाता है तो इसे नीलामी की बजाय प्रशासनिक तौर पर आवंटित किया जाना चाहिए। IN-SPACe का अनुमान है कि देश की स्पेस इकॉनमी 2033 तक बढ़कर 4400 करोड़ डॉलर हो सकती है और इसकी वैश्विक मार्केट में हिस्सेदारी अभी के करीब 2 फीसदी से बढ़कर 8 फीसदी के करीब हो सकती है।
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