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PoK के गिलगित-बाल्टिस्तान में लोगों की जमीन हथियाने पर लगी पाकिस्तानी सेना, बिजली की कीमतों, भारी भरकम टैक्स के विरोध में सड़कों पर आए लोग

प्रदर्शनकारी नौ दिनों से विरोध कर रहे हैं, लेकिन स्थिति तब तनावपूर्ण हो गई, जब उन्होंने बिजली के पोल और बोल्डरों का इस्तेमाल कर एक सड़क को ब्लॉक कर दिया। इन लोगों ने प्रशासन के अधिकारियों और उनकी मशीनरी की आवाजाही को भी रोक दिया

अपडेटेड Jan 06, 2023 पर 6:13 PM
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PoK के गिलगित-बाल्टिस्तान में बिजली की कीमतों और भारी भरकम टैक्स के विरोध में सड़कों पर आए लोग

पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में पाकिस्तानी सेना (Pakistani Army) के जुल्म दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं। स्थानीय लोग सड़कों पर उतरकर इसके खिलाफ आवाज भी उठाने लगे हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान (Gilgit-Baltistan) में स्थानीय लोगों ने पाकिस्तानी सेना की तरफ से उनकी जमीन हथियाने (Land Grabbing) के साथ-साथ बिजली की कीमतों में कमी और भारी भरकम टैक्स को खत्म करने के लिए विरोध तेज कर दिया है। ये लोग स्कार्दू-कारगिल सड़क को खोलने के साथ-साथ राजनीतिक सशक्तिकरण और सब्सिडी की बहाली की भी मांग कर रहे हैं।

News18 के मुताबिक, प्रदर्शनकारी नौ दिनों से विरोध कर रहे हैं, लेकिन स्थिति तब तनावपूर्ण हो गई, जब उन्होंने बिजली के पोल और बोल्डरों का इस्तेमाल कर एक सड़क को ब्लॉक कर दिया। इन लोगों ने प्रशासन के अधिकारियों और उनकी मशीनरी की आवाजाही को भी रोक दिया।

पाकिस्तान का शक्तिशाली सैन्य प्रतिष्ठान गिलगित-बाल्टिस्तान के गरीब इलाकों की जमीनों और संसाधनों पर जबरदस्ती का दावा करता रहता है।


प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया है कि प्रशासन उन्हें 'खालसा सरकार' घोषित करके उनकी जमीन छीन रहा है। ये एक मुहावरा है, जिसका इस्तेमाल गिलगित-बाल्टिस्तान में अपनी कठपुतली सरकार के जरिए पाकिस्तान की जमीनों की पहचान करने के लिए किया जाता है।

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गिलगित-बाल्टिस्तान के स्थानीय लोग खालसा सरकार कानून का विरोध करते रहे हैं। ये उस समय का कानून है, जब इस इलाके पर डोगरा और सिख शासकों का शासन था। स्थानीय लोगों का मानना ​​है कि इस कानून का इस्तेमाल उनसे उनकी पैतृक संपत्तियों को छीनने के लिए किया जा रहा है।

ट्रेडर्स यूनियन की तरफ से जारी एक प्रेस रिलीज में कहा गया है कि गिलगित-बाल्टिस्तान की अवामी एक्शन कमेटी, अंजुमन-ए-इमामिया, अहल-ए-सुन्नत वल जमात और दूसरे संगठनों की तरफ से हड़ताल के आह्वान का समर्थन किया गया था।

स्कार्दू, गिलगित, हुंजा और घीजर में विरोध प्रदर्शन और रैलियां की गईं। इतना ही नहीं भीषण ठंड के बावजूद बड़ी संख्या में लोगों ने इसमें हिस्सा लिया।

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