यूक्रेन (Ukraine) पर रूस (Russia) के हमले के छह महीने पूरे हो गए है। रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला शुरू किया था। रूस ने इसे कभी हमला नहीं माना। वह इसे 'स्पेशल मिलिट्री ऑपरेशन' (Special Military Operation) बताता रहा है। इस हमले में हजारों लोग मारे गए हैं। लाखों लोग बेघर हो चुके हैं। लाखों यूक्रेनी नागरिक पड़ोसी देशों में शरण लेने को मजबूर हुए हैं। शीत युद्ध के बाद पहली पार पूर्व और पश्चिम के रिश्तों में इतनी बड़ी खाई पैदा हुई है।
रूस के हमलों ने पूरी दुनिया के लिए मुश्किलें बढ़ाई हैं। ग्लोबल इकोनॉमी (Global Economy) और फाइनेंशियल मार्केट्स (Financial Markets) की सेहत बिगड़ी है। दुनियाभर में महंगाई ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। पेट्रोल-डीजल सहित कई कमोडिटी की कीमतें बढ़ गई हैं। यूरोप का मंदी में जाना तय लगता है, क्योंकि जून के बाद से वहां गैस की कीमतें तिगुनी हो चुकी हैं। यूरोप के लोगों और इंडस्ट्री के लिए गैस बहुत अहम है।
मंदी की आशंका के बावजूद यूरोप और इंग्लैंड के केंद्रीय बैंक इनफ्लेशन को कंट्रोल में करने के लिए इंटरेस्ट रेट बढ़ा रहे हैं। इंटरेस्ट रेट बढ़ने का असर आम लोगों और इंडस्ट्री पर पड़ना तय है। एनर्जी और फूड की कीमतों में उछाल की वजह से कई देशों में इनफ्लेशन 1970 के दशक के बाद पहली बार रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गया है। इसका असर बॉन्ड बाजार पर भी पड़ा है। इससे कर्ज लेना महंगा हो गया है। डिफॉल्ट का खतरा भी बढ़ा है।
इस साल अब तक यूरो में 12 फीसदी से ज्यादा गिरावट आ चुकी है। 1999 में यूरो की शुरुआत के बाद पहली बार उसमें इतनी गिरावट आई है। यूरोप को पाइपलाइंस के जरिए रूस से होने वाली गैस की सप्लाई करीब 75 फीसदी घट चुकी है। यूरोप के नेताओं ने रूस पर गैस को हथियार की तरह इस्तेमाल करने के आरोप लगाए हैं।
रूस के हमलों से यूक्रेन की इकोनॉमी बर्बाद हो गई है। यूक्रेन अपना कर्ज चुकाने में नाकाम रहा है। प्रतिबंधों की वजह से रूस ने भी पहली बार सॉवरेन डेट पर डिफॉल्ट किया है। रूसी कंपनियां भी अपना 25 अरब डॉलर का कर्ज नहीं चुका पाई हैं।
नाइकी, कोका-कोला, आइकिया और एपल जैसी दुनिया की 1000 दिग्गज कंपनियों ने या तो रूस में अपना कामकाज बंद कर दिया है या बिजनेस एक्टिविटिज घटाने का फैसला किया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि पिछले कई दशकों में आर्थिक गतिविधियां इतनी ज्यादा प्रभावित नहीं हुई थीं।