इजरायल ने पिछले महीने (9 सितंबर) को कतर की राजधानी दोहा पर भीषण हवाई हमला करके विश्व की राजनीति में भूचाल ला दिया था। इस हमले के बाद कतर समेत मिडिल ईस्ट के तमाम देशों में अपनी संप्रभुता और सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई। वहीं इस हमले के बाद इजरायल के पीएम नेतन्याहू ने व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात। इसी मुलाकात के दौरान उन्होंने दोहा के प्रधानमंत्री को फोन किया और उनसे माफी मांगी। वहीं इसके बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने एक एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर हस्ताक्षर किए हैं जिसमें कतर की सुरक्षा की गारंटी दी गई है और कहा गया कि कतर पर हमला अमेरिका पर हमला माना जाएगा।
इजराइल ने कतर पर इस हमले को रणनीतिक सफलता बताया, लेकिन यह घटना एक ऐसा टर्निंग पॉइंट साबित हुई जिसने वाशिंगटन को शांति प्रक्रिया पर अपनी पकड़ और मजबूत करने के लिए मजबूर कर दिया।
ट्रंप ने हाल ही में व्हाइट हाउस से एक 20 पॉइंट पीस प्लान जारी किया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर हमास सभी बंधकों को रिहा कर देता है, तो युद्ध रोकने की दिशा में कदम बढ़ सकता है। रविवार तक की तय ‘डेडलाइन’ से पहले, हमास ने ट्रंप की एक अहम शर्त मान ली जो थी बंधकों को रिहाई। हालांकि उसने कहा कि ऐसा तभी होगा जब ‘ग्राउंड पर स्थितियां अनुकूल हों.’ वहीं इजरायल ने भी अपने सैनिकों को हमले रोकने को कहा है।
ट्रंप का नेतन्याहू पर दबाव
सिर्फ तीन हफ़्तों के भीतर, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू व्हाइट हाउस में साथ नजर आए। दोनों ने गाजा में लगभग दो साल से चल रहे युद्ध को खत्म करने के लिए अमेरिका की मध्यस्थता वाली शांति योजना का समर्थन किया। ट्रंप ने इस मौके को “सभ्यता के सबसे महान दिनों में से एक” बताया, जबकि नेतन्याहू ने ज़्यादा सावधानी भरे शब्दों में इसे ऐसी योजना कहा जो “हमारे युद्ध के लक्ष्यों को पूरा करती है।” इस मुलाकात से साफ संकेत मिला कि ट्रंप अब नेतन्याहू पर युद्ध समाप्त करने का दबाव बढ़ा रहे हैं, ताकि गाजा में शांति बहाल करने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकें।
दोहा हमले के बाद कूटनीतिक हलचल तेज
9 सितंबर के हमले के बाद, 15 सितंबर को दोहा में अरब और मुस्लिम देशों के नेताओं का आपातकालीन शिखर सम्मेलन बुलाया गया। बैठक में सार्वजनिक रूप से सभी नेताओं ने इजरायल की कड़ी निंदा की, लेकिन निजी बातचीत में उन्होंने सिजफायर की मांग रखी। इन मांगों में - इज़राइली सैन्य अभियानों को तुरंत रोकना, किसी भी क्षेत्र पर कब्जा न करना, और फिलिस्तीनियों के जबरन विस्थापन पर रोक लगाना शामिल था। कतर ने इन शर्तों को बाद में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान अमेरिकी अधिकारियों के सामने भी रखा। यह कदम इस बात का संकेत था कि मध्य पूर्व के देश अब गाजा में शांति बहाल करने और आगे की सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए एकजुट हो रहे हैं।
पीस डील में फिर सक्रिय हुए जेरेड कुशनर और विदेशी नेता
इसी दौरान, ट्रंप के दामाद और मध्य पूर्व के पूर्व दूत जेरेड कुशनर फिर से शांति वार्ता की मेज पर लौट आए। उनके साथ दूत स्टीव विटकॉफ और पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर जैसे अनुभवी नेता भी शामिल थे। उनका उद्देश्य था — ऐसी डील तैयार करना जिसे अरब देशों, हमास और इज़राइल – तीनों स्वीकार कर सकें। लेकिन यह आसान काम नहीं था, क्योंकि सभी पक्षों के बीच अविश्वास बहुत गहरा था। फिर भी, यह टीम क्षेत्र में शांति बहाल करने और सभी पक्षों को एक साझा समझौते पर लाने की दिशा में लगातार कोशिशें कर रही थी।
समझौते से पहले कई रुकावटें
इजराइली अधिकारी वार्ता में शामिल तो हुए, लेकिन वे अपनी प्रतिबद्धताओं को कमजोर करने की कोशिश कर रहे थे। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने प्रयास किया कि फिलिस्तीनी राज्य का ज़िक्र हटाया जाए, फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण को गाजा की सत्ता से दूर रखा जाए, और ऐसी शर्तें जोड़ी जाएं जिनसे इज़राइल की वापसी को धीमा या रोका जा सके। हालांकि, अमेरिकी वार्ताकारों ने इन बातों का कड़ा विरोध किया। खुद डोनाल्ड ट्रंप ने न्यूयॉर्क में नेतन्याहू के साथ कई लंबी बैठकें कीं — कभी उन्हें मनाने की कोशिश की, तो कभी कड़े शब्दों में चेतावनी दी कि अमेरिका का धैर्य सीमित है।
आखिरकार, नेतन्याहू संयुक्त घोषणा पर सहमत हो गए, लेकिन अरब देशों के राजनयिकों ने कहा कि अंतिम समय में किए गए बदलावों से योजना इज़राइल के पक्ष में झुक गई, जिससे वे निराश हुए। फिर भी, यह समझौता गाजा युद्ध खत्म करने और बातचीत को आगे बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
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