सरकार द्वारा जारी 8वें वेतन आयोग के टर्म ऑफ रेफरेंस (ToR) को लेकर केंद्र सरकार के लगभग सभी कर्मचारी और पेंशनर्स संगठन नाराज हैं। मुख्य चिंता यह है कि ToR में लागू होने की तारीख का कोई उल्लेख नहीं है जिससे यह संशय पैदा हो गया है कि वेतन और पेंशन की सिफारिशें कब लागू होंगी। कर्मचारी संगठनों ने 1 जनवरी 2026 से आयोग की सिफारिशें लागू करने की मांग की है, जैसा पिछली चार वेतन आयोगों में होता रहा है।
भारत पेंशनर्स समाज (BPS) ने सरकार को पत्र लिखकर ToR में 'अनफंडेड कॉस्ट' शब्द हटाने की मांग की है क्योंकि यह शब्द पेंशन को बोझ के रूप में दर्शाता है, जो पेंशनर्स के लिए अपमानजनक है। उन्होंने एओपीएस, NPS सहित पेंशन योजनाओं की समीक्षा और बेहतर विकल्पों पर जोर दिया है। साथ ही ग्रामीण डाक सेवकों (GDS) को भी 8वें वेतन आयोग के दायरे में शामिल करने की मांग की गई है।
इंटरिम राहत और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार
महंगाई को देखते हुए BPS ने तुरंत 20% इंटरिम राहत देने की भी अपील की है ताकि कर्मचारियों और पेंशनर्स का मनोबल बढ़े। स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए CGHS वेलनेस सेंटर को अधिक जिलों तक बढ़ाने और कैशलेस इलाज की सुविधा सभी सरकारी कर्मचारियों को देने की भी मांग की गई है।
कर्मचारियों और अन्य संगठनों की प्रतिक्रिया
अखिल भारतीय रक्षा कर्मचारी महासंघ (AIDEF) और केंद्रीय कर्मचारियों के अन्य संघों ने भी ToR के कुछ हिस्सों को कर्मचारियों और पेंशनर्स के हितों के खिलाफ बताया है। उन्होंने प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री से ToR में संशोधन और पेंशनर्स के हितों की उचित देखरेख की मांग की है।
इस विवाद में कर्मचारी और पेंशनर्स संगठनों ने सरकार पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है ताकि वेतन आयोग की सिफारिशें समय पर लागू हों और पेंशनर्स की उपेक्षा न हो। वेतन आयोग का निष्पादन सरकारी कर्मचारियों के भविष्य और वित्त सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण है, इसलिए इसे लेकर चल रही बहस अभी जारी रहेगी।