टैक्स बचत के लिए सैलरी को सही तरीके से री-स्ट्रक्चर करना बेहद जरूरी है। नया फाइनेंशियल हाफ (H2FY26) शुरू होते ही ज्यादातर कंपनियां कर्मचारियों से टैक्स-सेविंग डिक्लेरेशन मांगती हैं। इस मौका का सही इस्तेमाल करके आप अपने टैक्स बोझ को काफी हद तक कम कर सकते हैं।
पुराना और नया टैक्स रिजीम
पुराने टैक्स रिजीम में HRA, LTA, स्टैंडर्ड डिडक्शन और सेक्शन 80C जैसी कई छूटें थीं, जो टैक्स बचाने में सहायक थीं। नया टैक्स रिजीम स्लैब रेट्स को कम करके सरलता लाया है, लेकिन इसमें टैक्स छूटें कम होती हैं। आपके टैक्स बचत के लिए दोनों रिजीमों का चुनाव आपकी इनकम, खर्चे और छूटों पर निर्भर करता है।
सैलरी में बेसिक पे, DA, HRA, स्पेशल अलाउंस, बोनस और पर्क्स आते हैं। इनमें से कुछ हिस्से टैक्सेबल होते हैं तो कुछ छूट के दायरे में आते हैं। उदाहरण के लिए किराए के घर में रहने वाले कर्मचारी HRA के तहत टैक्स बचा सकते हैं, बशर्ते उचित किराया रसीदें हों। LTA आपको परिवार के साथ घरेलू यात्रा खर्चों पर टैक्स छूट देता है, जो हर चार साल में दो बार क्लेम हो सकता है।
कंपनी कार, रेंट-फ्री आवास, मील वाउचर जैसे पर्क्स कर्मचारियों को टैक्स बचाने में मदद करते हैं। 80C सेक्शन के तहत EPF, PPF, ELSS और लाइफ इंश्योरेंस जैसी निवेश योजनाओं पर सालाना ₹1.5 लाख तक की छूट मिलती है। हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर भी सेक्शन 80D के तहत छूट मिलती है, जो परिवार के लिए फायदेमंद है।
सही प्लानिंग से बढ़ाएं फाइनेंशियल सिक्योरिटी
सैलरी री-स्ट्रक्चरिंग की योजना बनाते समय अपनी वित्तीय जरूरतें और लक्ष्य स्पष्ट रखें। टैक्स एक्सपर्ट की सलाह लेने से आपको अधिकतम लाभ मिल सकता है। सही सैलरी स्ट्रक्चर से न सिर्फ टैक्स बचता है, बल्कि आपकी फाइनेंशियल सिक्योरिटी भी मजबूत होती है।