बैंक फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स खरीदने के लिए ग्राहकों पर किसी तरह का दबाव नहीं बना पाएंगे। इसके लिए रिजर्व बैंक (आरबीआई) सख्त नियम बनाने जा रहा है। केंद्रीय बैंक ने इस बारे में नई गाइडलाइंस बनाने का ऐलान किया है। इससे बैंकों की फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स की मिस-सेलिंग पर रोक लगेगी। RBI के डिप्टी गवर्नर एम राजेश्वर राव ने 7 फरवरी को इस बारे में बताया। उन्होंने कहा कि इससे उन प्रैक्टिसेज पर रोक लगेगी जिनसे ग्राहकों के हित को नुकसान पहुंचता है।
RBI के डिप्टी गवर्नर ने मिस सेलिंग के खतरों के बारे में बताया
उन्होंने यह भी कहा कि केंद्रीय बैंक फाइनेंशियल सर्विसेज सेक्टर के लिए एक समान मौके उपलब्ध कराना चाहता है। उन्होंने कहा कि RBI फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स की मिस-सेलिंग के मामलों को बर्दाशत नहीं करेगा। उन्होंने कहा कि बैंक अपनी सब्सिडियरी या संबंधित कंपनियों के जरिए इस तरह की गतिविधियों में शामिल होते हैं। इससे दो तरह की चिंता पैदा होती है। पहला, जब बैंक या उसकी सब्सिडियरी एक जैसे बिजनेस में होती हैं तो हितों का टकराव पैदा होता है। दूसरा, इससे रेगुलेशन के मामले में भी दिक्कत आती है, क्योंकि बैंकों के लिए अलग नियम हैं और एनबीएफसी के लिए अलग नियम हैं।
केंद्रीय बैंक को मिस सेलिंग की कई शिकायतें मिली हैं
उन्होंने कहा कि बैंकों को एनबीएफसी जैसे तौर-तरीके अपनाने की इजाजत देने के अपने खतरे हैं। आरबीआई के डिप्टी गवर्नर के इस बयान को काफी अहम माना जा रहा है। केंद्रीय बैंक को बैंकों के मिस-सेलिंग में शामिल होने के बारे में कई शिकायतें मिली थी। अक्सर बैंक अपने ग्राहकों पर ऐसे फाइनेंशियल प्रोडक्ट्स को खरीदने के लिए दबाव बनाते हैं, जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती है। इससे ग्राहकों को नुकसान होता है। दबाव की वजह से वे ऐसे प्रोडक्ट्स खरीद लेते हैं।
यह भी पढ़ें: इंटरेस्ट रेट घटने से आपके होम लोन की EMI कितनी कम हो जाएगी? यहां समझें पूरा कैलकुलेशन
बैंक दूसरी कंपनियों के प्रोडक्ट्स ग्राहकों को बेचने की कोशिश करते हैं
कई बैंक अपनी सब्सिडियरी कंपनियों के प्रोडक्ट्स अपने ग्राहकों को बेचने की कोशिश करते हैं। कई बार वे अपने डिस्ट्रिब्यूशन चैनल का इस्तेमाल दूसरे फाइनेंशियल कंपनियों के प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए करते हैं। बैंकों के एंप्लॉयीज के इसके टारगेट दिए जाते हैं। इससे उन्हें मजबूरन ग्राहकों पर ऐसे प्रोडक्टस को खरीदने के लिए दबाव बनाता पड़ता है। कई बार टारगेट पूरे करने के लिए ऐसे प्रोडक्ट्स को बेचने पर जोर दिया जाता है। इससे बैंकों को कमीशन के रूप में इनकम होती है।