टेक कंपनियों की भारतीय फैक्ट्री में चाइनीज हाई टेक मशीनरी की सप्लाई अटकने का मसला धीरे-धीरे सुलझ रहा है। विदेश मंत्रालय के हस्तक्षेप के बाद यह मामला धीरे-धीरे सुलझ रहा है। सरकारी सूत्रों ने यह जानकारी दी है। सूत्रों के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने इस सिलसिले में विदेश मंत्रालय से मदद का अनुरोध किया था। विदेश मंत्रालय लगातार इस सिलसिले में चीन के अपने समकक्षों से बात कर रहा है और मुद्दे को सुलझाने की हरमुमकिन कोशिश की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि एपल, फॉक्सकॉन और लेनोवो जैसे बड़े खिलाड़ियों के एक्सपैंशन प्लान पर इसका असर नहीं पड़ने की संभावना है।
एक सीनियर सरकारी अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं किए जाने की शर्त पर बताया, ' विदेश मंत्रालय ने इस मसले को अपने चीनी समकक्षों के साथ उठाया है। विदेश मंत्रालय नियमित रूप से हालात से वाकिफ है और चीजें बेहतर हो रही हैं। हालात में धीरे-धीरे बदलाव हो रहे हैं। यह मसला पिछले 5-6 महीनों से चल रहा है और अगर स्थितियां फिर से खराब होती हैं, तो विदेश मंत्रालय फिर से कार्रवाई करेगा।'
मामले से वाकिफ एक इंडस्ट्री एग्जिक्यूटिव ने बताया कि प्रभावित कंपनियां इस सिलसिले में अपने प्रतिनिधियों के जरिये लगातार इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधिकारियों को इस बारे में सूचित कर रही हैं। जबकि सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय इस सिलसिले में विदेश मंत्रालय से बात कर रहा है। कई कंपनियों को चीन के बाहर मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स का विस्तार करने के लिए बड़े इक्विपमेंट की जरूरत होती है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस तरह की हाई-टेक मशीनरी भारत में उपलब्ध नहीं है और इसे चीन से इंपोर्ट करने की जरूरत है, ताकि क्षमता में बढ़ोतरी की जा सके।
पिछले साल यानी 2024 की दूसरी छमाही से चीन ने मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े बड़े इक्विपमेंट के एक्सपोर्ट पर पाबंदियां लगानी शुरू की हैं। इस कदम का मकसद एपल (Apple) और लेनोवो (Lenovo) जैसी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों के ग्लोबल एक्सपैंशन की रफ्तार पर ब्रेक लगाना है। बहरहाल, एक अन्य सूत्र का कहना है कि यह मुद्दा सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों तक सीमित नहीं है।