Business Idea: कमाने वाले कचरे से भी पैसा कमा रहे हैं। यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है। क्योंकि जयपुर के रहने वाले दो नव युवकों ने मुर्गे के पंख का बिजनेस शुरू किया और आज करोड़ों रुपए के टर्नओवर के मुकाम तक पहुंच चुके हैं। हजारों लोगों को इनके इस बिजनेस में काम मिल रहा है। राजस्थान के जयपुर के रहने वाले एक कपल मुदिता और राधेश मुर्गों के पंख से बने फैब्रिक का कारोबार कर रहे हैं। इसकी डिमांड विदेशों में बहुत ज्यादा है। आइए जाने इन के बिजनेस के बारे में।
मुदिता और राधेश को कॉलेज में एक आइडिया आया। जिससके बाद इन दोनों ने इस पर मिलकर काम करना शुरू किया। इन लोगों ने अपनी कंपनी का नाम मुदिता एंड राधेश प्राइवेट लिमिटेड रखा है। राधेश बताते हैं कि उन्होंने इस काम को 16,000 रुपये से शुरू किया था, लेकिन अब उनकी कंपनी करोड़ों का कारोबार कर रही है।
दरअसल, मुदिता और राधेश जयपुर के भारतीय शिल्प और डिजाइन संस्थान से एमए किया है। उन्हें पढ़ाई के दौरान कचरे से सामान बनाने का प्रोजेक्ट दिया गया था। उसी समय राधेश एक दिन पड़ोस में कसाई की दुकान के पास खड़े थे। राधेश ने वहां मुर्गों के पंखों को अपने हाथ से छुआ। राधेश ने कसाई से बात की और इस कचरे के बारे में विस्तार से चर्चा की। राधेश और मुदिता ने लंबी रिसर्च के बाद इसे ही अपना प्रोजेक्ट बना लिया जो बाद में इनके जीवन का लक्ष्य भी बन गया। आज यह कपल करोड़ों में कारोबार कर रहा है। मौजूदा समय में कंपनी का टर्नओवर करीब 2.5 करोड़ है।
मुदिता ने मीडिया को बताया कि अभी उनके पास बहुत बड़ी संख्या में ग्राहक नहीं है। इसकी वजह ये है कि इस समय भारत में लोग मुर्गों के पंख से बने फैब्रिक का इस्तेमाल करने से बचते हैं। लेकिन विदेश में इसकी काफी डिमांड है। इस फैब्रिक से बने प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल विदेश में किया जाता है।
राधेश और मुदिता ने बताया कि उनके पास करीब 1200 बुनकर है जो मुर्गे के पंखों से कपड़ा बनाने का काम कर रहे हैं। इन्हें 8000 से 12000 रुपये प्रति माह सैलरी दी जाती है। अब ज्यादातर काम मशीनों पर शिफ्ट किया जा रहा है, लेकिन यह दोनों ही ज्यादा से ज्यादा बुनकरों को अपने साथ जोड़कर उनको रोजगार देने का काम कर रहे है।
राधेश के मुताबिक, मुर्गे के पंख से बना ये कपड़ा दुनिया का 6वां प्राकृतिक फाइबर है। यह पश्मीना से भी मुलायम है। इस कपड़े ने रिंग टेस्ट भी पास किया है। कहने का मतलब ये हुआ कि ये कपड़ा एक अंगूठी में से पूरा गुजर जाता है। कॉटन या ऊन की तरह इसे बनाने में एक साल नहिं लगता है। ये 7 दिन के अंदर बनकर तैयार हो जाता है। यह पश्मीना के मुकाबले कई गुना सस्ता बिकता है।