बुजुर्ग माता-पिता की सेहत का ध्यान रखना न सिर्फ दिल का मामला होता है, बल्कि आर्थिक रूप से भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है। भारत में मेडिकल खर्चों में लगातार बढ़ोतरी और धीमी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के कारण इस चुनौती का बेहतर समाधान जमीनी योजना से जुड़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि एक साल की व्यवस्थित योजना बना कर आप अपने माता-पिता की जरूरतों को मजबूत वित्तीय सुरक्षा और प्यार दोनों के साथ पूरा कर सकते हैं।
पहले तीन महीने माता-पिता की वर्तमान मेडिकल खर्चों का हिसाब लगाना जरूरी है। इसमें दवाइयां, टेस्ट, डॉक्टर की फीस और कोई भी नियमित ट्रीटमेंट शामिल करें। इसके साथ उनकी जीवनशैली जरूरतें जैसे फिजियोथेरेपी या घर पर देखभाल की भी योजना बनाएं। अगले तीन महीनों में उन्हें जल्दी से स्वास्थ्य बीमा दिलाना आवश्यक है क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ बीमा लेने में कठिनाई हो सकती है। इसके लिए बेसिक पॉलिसी के साथ सुपर टॉप-अप बीमा लेना फायदेमंद रहता है, जो बड़े खर्चों को कवर करता है। इसके साथ एक मेडिकल इमरजेंसी फंड बनाएं, जो कम से कम छह महीने के खर्च पूरे कर सके।
छठे से नौवें महीने तक सभी मेडिकल डॉक्यूमेंट, रिपोर्ट्स, बीमा कागजात और बैंक अकाउंट से जुड़े नॉमिनी अपडेट करें। एक पावर ऑफ अटॉर्नी तैयार करें ताकि आपातकाल में अस्पताल एवं बीमा से जुड़े काम आसानी से हो सकें। यदि परिवार में कई सदस्य जिम्मेदारी साझा कर रहे हैं तो स्पष्ट रोल बांटना जरूरी है ताकि देखभाल सुचारू रूप से हो।
आखिरी तीन महीनों में माता-पिता की रोजमर्रा की देखभाल और रोकथाम के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच, योग-व्यायाम, सामाजिक जुड़ाव और बेहतर भोजन की व्यवस्था करें। अगर आप दूर रहते हैं तो देखभाल सेवाएं लें और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें। सालाना समीक्षा से योजना अपडेट करते रहें और आवश्यकतानुसार बीमा या फंड बढ़ाएं।
इस तरह की व्यवस्थित योजना बनाकर आप न केवल अपने माता-पिता को बेहतर जीवनशैली दे सकते हैं बल्कि भावी मेडिकल संकटों में आर्थिक तनाव से भी बचा सकते हैं। बुजुर्गों की देखभाल को लेकर यह समझदारी भरा कदम परिवार को मानसिक और वित्तीय सुकून प्रदान करता है।