फाइनेंशियल ईयर 2023-24 का अंत करीब आ गया है। इनकम टैक्स की पुरानी रीजीम का इस्तेमाल करने वाले टैक्सपेयर्स के लिए टैक्स-सेविंग्स की डेडलाइन 31 मार्च है। लेकिन, इस बार 31 मार्च को रविवार है। 29 मार्च यानी शुक्रवार को भी स्टॉक मार्केट्स और दूसरे ऑफिसेज में Good Friday की छुट्टी है। ऐसे में कुल तीन दिन की छुट्टी है, क्योंकि फाइनेंशियल कंपनियों के ऑफिसेज में शनिवार और रविवार को छुट्टी होती है। इसलिए अगर टैक्सपेयर्स म्यूचुअल फंड की टैक्स सेविंग्स यानी ELSS में टैक्स-सेविंग्स के लिए निवेश करना चाहते हैं तो 28 मार्च को करना होगा। इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80सी के तहत ELSS सहित करीब एक दर्जन इंस्ट्रूमेंट्स आते हैं।
टैक्स-सेविंग्स ऑप्शन में ELSS का रिटर्न सबसे ज्यादा
बैंक 30 मार्च यानी शनिवार को खुले रहेंगे। लेकिन, निवेशकों को फंड रियलाइजेशन और यूनिट एलोकेशन में दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा नए निवेशकों को KYC प्रोसेस से भी गुजरना होगा। इसलिए रिस्क लेने की जगह 28 मार्च को ईएलएसएस में निवेश करना सही रहेगा। सेक्शन 80सी के तहत इनवेस्टमेंट के जितने ऑप्शंस शामिल हैं, उनमें ELSS रिटर्न के लिहाज से नंबर वन है।
इनवेस्टमेंट प्लानिंग में भी हेल्पफुल
इनवेस्टमेंट एडवाइजर्स का कहना है कि ईएलएसएस में सिर्फ टैक्स-सेविंग्स के लिए निवेश करने की जगह इसे अपने इनवेस्टमेंट प्लानिंग का जरूरी हिस्सा बनाना चाहिए। टैक्सपेयर्स बच्चों की शादी, हायर एजुकेशन, अपनी रिटायरमेंट आदि के लिए भी ELSS में निवेश कर सकते हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि म्यूचुअल फंडों की यह स्कीम शेयरों में निवेश करती है। शेयरों में लंबी अवधि के निवेश पर शानदार रिटर्न मिलता है।
निवेश से पहले रिस्क को समझ लें
ईएलएसएस में टैक्स-सेविंग्स के लिए निवेश करने से पहले इससे जुड़े रिस्क को समझ लेना जरूरी है। चूंकि यह स्कीम निवेशकों का पैसा शेयरों में लगाती है, जिससे स्टॉक मार्केट्स में होने वाले उतार-चढ़ाव का असर ईएलएसएस के रिटर्न पर पड़ता है। मार्केट में तेज गिरावट आने पर ईएलएसएस की NAV में गिरावट आती है। इसलिए इसमें निवेश से पहले टैक्सपेयर्स को रिस्क लेने की अपनी क्षमता देख लेनी चाहिए। हालांकि, एक्सपर्ट्स का कहना है कि लंबी अवधि के निवेश में मार्केट के उतार-चढ़ाव का ज्यादा असर नहीं पड़ता है। इसकी वजह यह है कि मार्केट हर गिरावट के बाद चढ़ता है।
ELSS में लॉक-इन पीरियड 3 साल है। इसका मतलब है कि इसमें निवेश करने पर आप तीन साल से पहले अपने पैसे नहीं निकाल पाएंगे। टैक्स-सेविंग्स के हर इनवेस्टमेंट ऑप्शन में लॉक-इन पीरियड होता है। बैंक टैक्स-सेविंग्स एफडी में लॉक-इन पीरियड 5 साल है। पीपीएफ में तो 15 साल तक निवेश करना पड़ता है। हालांकि, कुछ पैसे निकालने की इजाजत पांच साल के बाद मिलती है।
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