एंप्लॉयी प्रोविडेंट फंड के सब्सक्राइबर्स को पेंशन का बेनेफिट मिलता है। यह पेंशन एंप्लॉयीज पेंशन स्कीम (ईपीएस) के तहत मिलती है। प्राइवेट नौकरी करने वाले लोग ईपीएफ के तहत आते हैं। एंप्लॉयी के सैलरी का एक हिस्सा हर महीने उसके ईपीएफ अकाउंट में जमा होता है। एंप्लॉयर भी एंप्लॉयी के ईपीएफ अकाउंट में हर महीने बराबर अमाउंट कंट्रिब्यूट करता है। एंप्लॉयर एंप्लॉयीज की बेसिक सैलरी (प्लस डीए) का 8.33 फीसदी हर महीने ईपीएस में कंट्रिब्यूट करता है। इसकी मैक्सिमम लिमिट 15,000 रुपये है।
ईपीएस अकाउंट में जमा पैसे से मिलती है पेंशन
रिटायर करने पर एंप्लॉयी के EPS अकाउंट में जमा पैसे से हर महीने उसे पेंशन मिलती है। ईपीएस ईपीएफओ के तहत आती है। एंप्लॉयी को पेंशन तभी मिलती है जब 58 साल के होने पर वह रिटायर हो जाता है। इसके लिए शर्त यह है कि उसकी नौकरी कम से कम 10 साल की होनी चाहिए। एंप्लॉयी 50 साल की उम्र में भी पेंशन का हकदार है, लेकिन इसका अमाउंट एक्चुअल पेंशन से कम होगा। अगर कोई एंप्लॉयी 10 साल पूरे होने से पहले नौकरी छोड़ देता है तो वह मंथली पेंशन का हकदार नहीं होगा। उसके ईपीएस अकाउंट में जमा पैसा रिटायरमेंट पर उसे दे दिया जाएगा।
एक फॉर्मूला से तय होता है पेंशन अमाउंट
एंप्लॉयी की पेंशन का अमाउंट एक फॉर्मूला से तय होता है। पेंशनेबल सैलरी को पेंशनेबल सर्विस से गुणा किया जाता है। फिर, जो रिजल्ट आता है, उसे 70 से डिवाइड किया जाता है। पेंशनेबल सैलरी का मतलब आपके अंतिम 60 महीनों की बेसिक सैलरी से है। पेंशनेबल सर्विस का मतलब यह है कि एंप्लॉयी ने पूरे कितने साल नौकरी की है। इसका मतलब है कि कोई एंप्लॉयी जितना ज्यादा साल तक नौकरी करता है, उसकी पेंशन उतनी ज्यादा होती है।
नौकरी जितनी लंबी होगी पेंशन उतनी ज्यादा
एंप्लॉयी के निधन के बाद फैमिली पेंशन के तहत उसकी पत्नी को पेंशन मिलती है। इसका एंप्लॉयी के परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि एंप्लॉयी को अपना सर्विस पीरियड लंबा रखने की कोशिश करनी चाहिए। इसका मतलब है कि अगर कोई एंप्लॉयी नौकरी बदलता है तो उसे पुराने एंप्लॉयर के साथ अपने ईपीएफ का पैसा निकालने की जगह उसे नए एंप्लॉयर के पास ट्रांसफर करा लेना चाहिए। इससे पिछले एंप्लॉयर के साथ नौकरी के साल जुड़ जाने से कुल सर्विस पीरियड लंबा हो जाता है।