प्राइवेट नौकरी करने वाले ईपीएफओ की स्कीम के दायरे में आते हैं। इसमें एंप्लॉयी अपनी बेसिक सैलरी का 12 फीसदी हर महीने ईपीएफ अकाउंट में कंट्रिब्यूट करता है। इतना ही पैसा एंप्लॉयर हर महीने एंप्लॉयी के ईपीएफ अकाउंट में जमा करता है। इस पैसे का बड़ा रिटायरमेंट फंड में जाता है। दूसरा हिस्सा पेंशन फंड में जाता है। रिटायरमेंट फंड का पैसा एंप्लॉयी के रिटायर करने पर उसे मिल जाता है। पेंशन फंड में जमा पैसे से रिटायरमेंट के बाद हर महीने उसे पेंशन मिलती है। कुछ स्थितियों में रिटायरमेंट फंड में जमा पैसा निकालने की इजाजत है। आइए जानते हैं ये स्थितियां कौन-कौन सी हैं।
अगर कोई एंप्लॉयी कम से कम एक महीने तक बेरोजगार रहता है तो वह अपना 75 फीसदी पैसा निकाल सकता है। दो महीने या इससे ज्यादा समय तक बेरोजगार रहने पर ईपीएफ अकाउंट में जमा पूरा पैसा निकाला जा सकता है।
अगर ईपीएफ अकाउंट ओपन होने के 5 साल के अंदर पैसा निकाला जाता है तो उस पर टैक्स लगता है। हालांकि, अगर एंप्लॉयी 50,000 रुपये से कम विड्रॉल करता है तो उस TDS लागू नहीं होगा।
अगर आप नौकरी बदलने पर अपने पीएफ बैलेंस को दूसरे एंप्लॉयर के अपने पीएफ अकाउंट में ट्रांसफर नहीं कराना चाहते हैं तो आप अपना पैसा निकाल सकते हैं। यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (UAN) एक्टिवेट होने के बाद आप ट्रांसफर का प्रोसेस शुरू कर सकते हैं।
रिटायरमेंट के बाद विड्रॉल
एंप्लॉयी नौकरी से रिटायर करने के बाद अपने ईपीएफ अकाउंट से पूरा पैसा निकाल सकता है। प्राइवेट सेक्टर में रिटायरमेंट की उम्र 58 और 60 साल हैं। कुछ एंप्लॉयर 58 साल में एंप्लॉयी को रिटायमेंट देते हैं तो कुछ 60 साल की उम्र में देते हैं।
कोई एंप्लॉयी खुद, पत्नी, बच्चों और मातापिता के इलाज के लिए ईपीएफ में जमा पैसा निकाल सकता है। इसके लिए छह महीनों की बेसिक सैलरी की लिमिट तय है।
एंप्लॉयी खुद, बेटा/बेटी या भाई/बहन की शादी के लिए अपने ईपीएफ अकाउंट से पैसा निकाल सकता है। वह ईपीएफ अकाउंट में अपने कंट्रिब्यूशन का 50 फीसदी तक पैसा इस मकसद के लिए निकाल सकता है।
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अगर कोई व्यक्ति घर बना रहा है या घर खरीद रहा है तो वह ईपीएफ में जमा अपने पैसे का इस्तेमाल कर सकता है। इसके लिए वह 24-36 महीने तक की अपनी बेसिक सैलरी का पैसा ईपीएफ अकाउंट से निकाल सकता है।