क्या आपने भी जमीन खरीद ली है और उसे अब देखने नहीं जा पाते? अब सरकार ने उस पर बिना आपकी इजाजत के कब्जा कर लिया है। सरकार जब चाहे आपकी प्रॉपर्टी पर कब्जा कर सकती है? हाल में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला ऐसे ही एक मामले पर आया है। जहां, सरकार ने बिना मुआवजा और प्रोसेस के जमीन पर कब्जा कर लिया। आपको बता दें कि सरकार बिना आपकी सहमति के आपके जमीन नहीं ले सकती है। ऐसे मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि सरकार किसी भी व्यक्ति की प्राइवेट संपत्तिय या जमीन को जबरन अपने कब्जे में नहीं ले सकती, जब तक कि वह कानूनी प्रक्रिया का पालन न करे और उचित मुआवजा न दे। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सुख दत्त रत्र बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2022) मामले में ये फैसला सुनाया है कि ऐसा बिल्कुल नहीं किया जा सकता।
क्या है हिमाचल का ये पूरा मामला?
यह केस हिमाचल प्रदेश की एक जमीन से जुड़ा हुआ है जिसमें सरकार ने 1970 के दशक में सड़क बनाने के लिए सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया। कई सालों तक जमीन मालिकों को न तो मुआवजा मिला और न ही सरकार ने कोई कानूनी प्रक्रिया अपनाई। जब 2011 में जमीन मालिकों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया, तो सरकार ने दलील दी कि उन्होंने बहुत देर से मुकदमा किया है, इसलिए केस खारिज होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
निचली अदालत में केस खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की इस दलील को खारिज करते हुए साफ कहा कि समय बीत जाने से कोई अवैध कब्जा वैध नहीं बन जाता। भले ही व्यक्ति ने देर से न्याय की मांग की हो, उसका संपत्ति का अधिकार खत्म नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के दावे पर ये भी कहा कि लोगों ने मौखिक रूप से जमीन दे दी थी, कानूनी रूप से मान्य नहीं है। लिखित सहमति जरूरी होती है।
संविधान का अनुच्छेद 300-A क्या कहता है?
अनुच्छेद 300-A के तहत कोई भी व्यक्ति अपनी संपत्ति से तब तक वंचित नहीं किया जा सकता जब तक कि सरकार किसी कानून के तहत ऐसा न करे। 1978 में 44वें संविधान रिवीजन के बाद संपत्ति का अधिकार भले ही मौलिक अधिकार न रहा हो, पर अब भी यह एक महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार है।
अन्य मामलों का भी इस मामले में दिया गया रेफरेंस
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कई पुराने मामलों का हवाला दिया। इस मामले में Vidya Devi बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2020) – बिना मुआवजा दिए जमीन पर कब्जा असंवैधानिक है। Hindustan Petroleum बनाम Darius Shapur Chenai (2005) – सरकारी कार्रवाई कानूनी प्रक्रिया के तहत ही होनी चाहिए। Wazir Chand बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (1955) जबरन कब्जा कानून के खिलाफ है।
क्या मिला जमीन मालिकों को?
कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि वह 4 महीने के अंदर उचित मुआवजा तय करे और पेमेंट करें। Solatium यानी मानसिक और पैसे के नुकसान के लिए एक्स्ट्रा रकम दे। साथ ही लोगों को 2001 से लेकर 2013 तक का ब्याज दे। इसके अलावा 50,000 रुपये का कानूनी खर्च भी दे। साथ ही कोर्ट ने कहा कि कुछ लोगों को मुआवजा देना और कुछ को नहीं देना, पूरी तरह भेदभावपूर्ण और गलत है।
यह फैसला हमें यह सिखाता है कि भारत में कोई भी व्यक्ति अपनी एसेट्स से ऐसे ही नहीं निकाला नहीं जा सकता। उसका अधिकार इस तरीके से खत्म नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार को भी कानून के तहत काम करना होता है। चाहे जितना समय बीत जाए, अगर कब्जा गलत तरीके से हुआ है, तो व्यक्ति को न्याय मिल सकता है।