नौकरी छोड़ते ही कंपनी की ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी खत्म हो जाती है, जिससे अचानक मेडिकल आपातकाल में भारी खर्चा आपकी जेब से करना पड़ सकता है। लेकिन आप अपने ग्रुप प्लान को इंडिविजुअल या फैमिली फ्लोटर पॉलिसी में पोर्ट कर सकते हैं, ताकि पुराने वेटिंग पीरियड और लाभ बिना खोए जारी रहें। इसके लिए नौकरी छोड़ने से कम से कम 45 दिन पहले आवेदन करना होता है।
पोर्टिंग का मतलब है कि आप अपनी कंपनी की ग्रुप पॉलिसी से बाहर निकलकर किसी और इंश्योरेंस कंपनी की निजी पॉलिसी में शिफ्ट हो जाते हैं। नई कंपनी आपकी मेडिकल हिस्ट्री, उम्र और क्लेम रिकॉर्ड के आधार पर प्रीमियम तय करती है और स्वीकृति के बाद नई पॉलिसी पहले वाले से बिना ब्रेक के चालू हो जाती है।
पोर्टिंग से मिलने वाले फायदे
सबसे बड़ा फायदा वेटिंग पीरियड की क्रेडिटिंग है, यानी आपने पहले प्लान में जो वेटिंग अवधि पूरी की है, वह नयी पॉलिसी में भी गिनी जाएगी। इससे पुरानी बीमारियों पर दूसरी बार वेटिंग पीरियड पूरी करने की जरूरत नहीं होती। हालांकि, नई पॉलिसी के नियमों में कुछ बदलाव हो सकते हैं जैसे प्रीमियम अधिक हो सकता है या कवर कुछ सीमित हो सकता है।
पोर्टिंग करते समय ध्यान रखने वाली बातें
- नौकरी छोड़ने से 45-60 दिन पहले ही पोर्टिंग प्रक्रिया शुरू करें ताकि आप कवरेज बीच में न खोएं।
- पोर्टिंग के लिए पुराने दस्तावेज और क्लेम रिकॉर्ड सही रखें।
- नया कवर चुनते समय परिवार की जरूरतों के अनुसार ही कस्टमाइजेशन करें।
- मेडिकल टेस्ट और प्रीमियम में बदलाव संभव है, इसलिए समझदारी से निर्णय लें।
ग्रुप हेल्थ इंश्योरेंस से इंडिविजुअल पॉलिसी में पोर्टिंग एक जरूरी कदम है, जो नौकरी बदलने पर भी हेल्थ कवरेज जारी रखने का भरोसा देता है। सही समय पर और सही तरीके से पोर्टिंग करने से आपके स्वास्थ्य और वित्तीय सुरक्षा पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इसलिए नौकरी में बदलाव की योजना बनाते समय हेल्थ इंश्योरेंस की पोर्टिंग को मत भूलें।
यह सुविधा आज के तेजी से बदलते रोजगार क्षेत्र में वित्तीय सुरक्षा की मजबूत गारंटी बन चुकी है, जिससे आप और आपका परिवार बीमारियों और आकस्मिक खर्चों से सुरक्षित रह सके।