Home Loan: घर खरीदना हर किसी की लाइफ का बड़ा कदम होता है। भारत में घर खरीदने के लिए ज्यादातर लोग होम लोन का सहारा लेते हैं। यहां आपको बता रहे हैं कि होम लोन पर ब्याज कैसे तय होता है और कैसे कैलकुलेट किया जाता है। ताकि, आप आप अपनी EMI को मैनेज कर सकें। होम लोन लेते समय ब्याज की कैलुकलेशन के तरीकों को समझना, अपने बजट और फाइनेंशियल टारगेट के अनुसार सही ऑप्शन को चुनना बहुत जरूरी है। इससे न केवल आपका खर्च कम होगा बल्कि लोन चुकाने में आसानी होगी। बैंक और फाइनेंशियल इंस्टिट्यूट आमतौर पर ब्याज की कैलकुलेशन तीन तरीकों से करते हैं। पहला तरीका सालाना घटता हुआ तरीका, दूसरा मंधली घटता हुआ तरीका और तीसरा रोजाना घटता हुआ तरीका। यहां जानते हैं कैसे होता है कैलकुलेशन।
1. सालाना घटता हुआ तरीका (Annual Reducing Method):
होम लोन केब्याज की कैलुकलेशन हर साल के अंत में बैलेंस प्रिंसिपल पर की जाती है। साल के दौरान दी गई किश्तों का असर ब्याज पर नहीं पड़ता।
उदाहरण के लिए अगर आपने ₹30 लाख का लोन 8% सालाना ब्याज दर पर लिया है, तो ब्याज की कैलुकलेशन पूरे साल ₹30 लाख पर होगा। हालांकि, साल के अंत में की गई पेमेंट अमाउंट को प्रिंसिपल से घटाया जाएगा। यह तरीका अन्य की तुलना में ज्यादा ब्याज होम लोन लेने वालों के लिए खड़ा कर देता है।
2. मंथली घटता हुआ तरीका (Monthly Reducing Method):
इस तरीके में ब्याज का कैलुकलेशन हर महीने के अंत में अपडेट किए गए प्रिंसिपल पर लगता है।
उदाहरण के लिए अगर आपने ₹30 लाख का लोन 8% सालाना ब्याज दर पर लिया है, तो पहले महीने ब्याज की कैलुकलेशन ₹30 लाख पर होगी। पहली ईएमआई का पेमेंट करने के बाद, प्रिंसिपल घट जाएगा और अगले महीने ब्याज नए बैलेंस अमाउंट पर बेस्ट होगा।
3. डेली घटता हुआ तरीका (Daily Reducing Method):
इस तरीके में ब्याज का कैलुकलेशन रोजाना घटते प्रिंसिपल के आधार पर किया जाता है। जैसे ही आप पेमेंट करते हैं, ब्याज की कैलुकलेशन उसी दिन से घटे हुए प्रिंसिपल पर किया जाता है।
उदाहरण के लिए अगर आपने ₹30 लाख का लोन लिया और ₹1 लाख का पेमेंट किया, तो अगली ही दिन से ब्याज ₹29 लाख पर गिना जाएगा। यह तरीका सबसे अधिक सही है क्योंकि यह ब्याज कॉस्ट को कम करने में मदद करता है।
ब्याज दरों पर किनका पड़ता है असर
लोन की अमाउंट: बड़ी लोन अमाउंट पर ब्याज दरें अलग हो सकती हैं।
लोन पीरियड (टेन्योर): लंबे समय के लोन पर ईएमआई कम हो सकती है, लेकिन कुल ब्याज कॉस्ट ज्यादा होगी है।
क्रेडिट स्कोर: ज्यादा क्रेडिट स्कोर वाले उधार लेने वालों को कम ब्याज पर लोन मिल जाता है।
बैंक की नीतियां: अलग-अलग बैंक और फाइनेंशियल संस्थान अपनी नीतियों और बाजार की स्थिति के आधार पर ब्याज की दरें तय करते हैं।
फिक्स्ड बनाम फ्लोटिंग रेट: फिक्स्ड रेट वाले लोन में ब्याज दर स्थिर रहती है, जबकि फ्लोटिंग रेट बाजार की स्थिति के अनुसार बदलती रहती है।
होम लोन इंटरेस्ट और EMI कैलकुलेशन के लिए कौन सा तरीका है सबसे बेहतर?
डेली घटता हुआ तरीका: यह सबसे किफायती है, क्योंकि ब्याज लागत सबसे कम होती है।
मंथली घटता हुआ तरीका: यह आसान है और कॉस्ट के बीचे बैलेंस बनाकर रखता है।
सालाना घटता हुआ तरीका: यह तरीका आपकी जेब पर महंगा पड़ता है। आमतौर पर कम इस्तेमाल होता है।