अकसर लोग सोचते हैं कि निवेश शुरू करने के लिए भारी भरकम रकम चाहिए, जबकि हकीकत इसके उलट है। अगर आपकी आय अभी कम है या आप नौकरी की शुरुआत में हैं, तब भी छोटी-छोटी रकम से लंबी अवधि में अच्छा फंड बनाया जा सकता है। कुछ स्मार्ट ऑप्शन ऐसे हैं, जहां 500–1000 रुपये महीने से भी शुरुआत करके अच्छा रिटर्न पाया जा सकता है।
SIP से शुरू करें स्मार्ट निवेश
शुरुआती निवेशकों के लिए सबसे आसान और डिसिप्लिन वाला तरीका है म्यूचुअल फंड में SIP से शुरुआत करना। यहां आप हर महीने तय रकम (जैसे 500 या 1000 रुपये) किसी इक्विटी, हाइब्रिड या स्मॉलकैप फंड में लगाते हैं, जो लंबे समय में कंपाउंडिंग की ताकत से बड़ा कोष बना देता है। SIP की खासियत यह है कि मार्केट ऊपर-नीचे होने पर भी औसत खरीद कीमत संतुलित हो जाती है और रिस्क थोड़ा कम हो जाता है।
सुरक्षित पसंद वालों के लिए PPF, RD और एफडी
जो लोग जोखिम से बचना चाहते हैं, उनके लिए पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF), रिकरिंग डिपॉजिट (RD) और बैंक/एनबीएफसी की फिक्स्ड डिपॉजिट अच्छे विकल्प हैं। PPF में छोटी रकम से भी 15 साल के लिए निवेश कर टैक्स बेनिफिट और फिक्स्ड रिटर्न दोनों मिलते हैं, जबकि RD में आप हर महीने छोटी किस्त भरकर फिक्स्ड रेट पर सुरक्षित रकम जमा कर सकते हैं। कई संस्थान आज भी FD और सुरक्षित डेब्ट इंस्ट्रूमेंट पर प्रतिस्पर्धी ब्याज दे रहे हैं, जो कंजरवेटिव इन्वेस्टर्स के लिए ठीक है।
NPS, ELSS और हाइब्रिड फंड से लंबी अवधि की प्लानिंग
लंबी अवधि के लक्ष्य जैसे रिटायरमेंट या बच्चों की पढ़ाई के लिए NPS, ELSS और हाइब्रिड फंड बेहतर माने जाते हैं। NPS में इक्विटी और डेब्ट का मिक्स होता है, जिससे रिस्क थोड़ा बैलेंस रहता है और टैक्स में भी राहत मिल सकती है। वहीं, ELSS टैक्स सेविंग के साथ इक्विटी ग्रोथ देता है, लेकिन लॉक-इन पीरियड और मार्केट रिस्क समझकर ही एंट्री लेना जरूरी है। हाइब्रिड फंड शुरुआती निवेशकों के लिए अच्छा ‘मिडल पाथ’ हैं क्योंकि इनमें शेयर और बॉन्ड दोनों होते हैं, जिससे वोलैटिलिटी थोड़ी कम हो जाती है।
छोटे कदम, लेकिन लगातार चलना जरूरी
कम पैसे से निवेश शुरू करने की सबसे बड़ी कुंजी है नियमितता और धैर्य। शुरू में राशि छोटी हो तो भी ऑटो–डिडक्ट SIP या RD सेट कर देने से आदत बन जाती है और बाद में इन्वेस्टमेंट अमाउंट बढ़ाना आसान हो जाता है। फाइनेंशियल एक्सपर्ट यही सलाह देते हैं कि ट्रेंड देखकर अचानक पैसे न लगाएं, बल्कि अपने लक्ष्य, समयावधि और रिस्क प्रोफाइल के हिसाब से विकल्प चुनकर लंबे समय तक टिके रहें।