इस फाइनेंशियल ईयर (2025-26) में कई सैलरीड टैक्सपेयर्स और पेंशनर्स के नई टैक्स रीजीम में स्विच करने की उम्मीद है। इनकम टैक्स की नई रीजीम में टैक्स स्लैब्स ज्यादा हैं, टैक्स के रेट्स कम हैं और सालाना 12 लाख रुपये तक की इनकम टैक्स-फ्री है। हालांकि, नई रीजीम में ओल्ड रीजीम की तरह डिडक्शंस और एग्जेम्प्शंस के फायदे नहीं हैं। हालांकि, कुछ डिडक्शंस और बेनेफिट्स नई रीजीम में भी हैं।
कॉर्पोरेट एनपीएस कंट्रिब्यूशन
यह ऐसा टैक्स बेनेफिट है, जिसका इस्तेमाल कम होता है। हालांकि, यह बेनेफिट Income Tax की नई और पुरानी दोनों रीजीम में उपलब्ध है। पुरानी रीजीम में एनपीएस में सेक्शन 80सी के तहत 1.5 लाख तक का डिडक्शन क्लेम किया जा सकता है। इसके अलावा सेक्शन 80CCD (1बी) के तहत 50,000 रुपये का डिडक्शन क्लेम किया जा सकता है। नई रीजीम में ये बेनेफिट्स उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन, एंप्लॉयी के एनपीएस अकाउंट में एंप्लॉयर के कंट्रिब्यूशन पर डिडक्शन की सुविधा नई रीजीम में उपलब्ध है।
किराए पर दिए घर के होम लोन इंटरेस्ट पर टैक्स बेनेफिट
इनकम टैक्स की नई रीजीम में भी किराए पर दिए घर के होम लोन के इंटरेस्ट पर टैक्स बेनेफिट लिया जा सकता है। हालांकि, सेक्शन 24(B) के तहत सेल्फ ऑक्युपायड प्रॉपर्टी के होम लोन के इंटरेस्ट पर एक साल में 2 लाख रुपये तक के डिडक्शन की इजाजत नई रीजीम में नहीं है।
इनकम टैक्स की ओल्ड रीजीम में हाउस प्रॉप्रटी से इनकम के कैलकुलेशन के लिए इंटेरेस्ट पर हुए खर्च को किराए से मिले पैसे (प्रॉपर्टी टैक्स और 30 फीसदी स्टैंडर्ड डिडक्शन के बाद) में से घटा दिया जाता है। इससे टैक्सेबल प्रॉपर्टी इनकम घट जाती है। इससे आपका कुल टैक्स भी कम हो जाता है। अगर इस कैलकुलेशन से आपको हाउस प्रॉपर्टी से इनकम की जगह नुकसान होता है और वह 2 लाख रुपये से ज्यादा नहीं है तो उसे दूसरी इनकम के साथ सेट-ऑफ किया जा सकता है। इसे टैक्स लायबिलिटी कम कम करने के लिए सेम (same) फाइनेंशियल ईयर में सेट-ऑफ किया जा सकता है। अगर रेंटेड प्रॉपर्टी से लॉस 2 लाख रुपये से ज्यादा है तो उसे कैरी फॉरवर्ड किया जा सकता है और अगले 8 फाइनेंशियल ईयर के दौरान क्लेम किया जा सकता है।
हालंकि, नई टैक्स रीजीम में इस टैक्स बेनेफिट के नियम थोड़े अलग हैं। हाउस प्रॉपर्टी से लॉस को सिर्फ हाउस प्रॉपर्टी से इनकम के साथ सेट-ऑफ किया जा सकता है। इसे किसी दूसरी इनकम के साथ सेट-ऑफ नहीं किया जा सकता।
ईपीएफ में एंप्लॉयर्स का बेसिक सैलरी का 12 फीसदी तक कंट्रिब्यूशन
आपका एंप्लॉयर आपके ईपीएफ अकाउंट में बेसिक सैलरी का 12 फीसदी कंट्रिब्यूट करता है। एनपीएस अकाउंट में एंप्लॉयर के कंट्रिब्यूशन की तरह यह अमाउंट भी टैक्स के दायरे से तब तक बाहर है जब तक एंप्लॉयर की तरफ से मिलने वाला एग्रीकेट रिटायरमेंट बेनेफिट एक साल में 7.5 लाख रुपये की सीमा को पार नहीं कर जाता।
इसके अलावा, ग्रेच्युटी पेआउट, लीव इनकैशमेंट और इंश्योरेंस पॉलिसी की मैच्योरिटी पर मिलने वाला पैसे को भी टैक्स से एग्जेम्प्शन हासिल है, लेकिन इसके लिए कुछ शर्तें तय हैं।